प्रेम पत्र... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम पत्र...

जीवन में किसी ना किसी को कभी ना कभी प्रेम अवश्य होता है और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इन्सान प्रेम पत्र का सहारा लेता है,जब आपको कोई चाहता हो और आपको ये मालूम हो जाएं तो उस समय आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी,ऐसा ही हुआ हमारी कहानी की नायिका नीलाक्षी के साथ.....

नीलाक्षी ने आज अपने स्कूल में ग्यारहवीं के एक बच्चे को अपनी ही कक्षा की लड़की को प्रेम पत्र देते हुए पकड़ लिया था,उस समय वो सोच रही थी कि वो क्या करें उस बच्चे के साथ ,उसे डाँटे या उसके घर उसकी शिकायत भेजे,कुछ समझ ना आने पर उसने वो मामला उस कक्षा की कक्षाध्यापक को सौंप दिया और अनमने मन से जब वो शाम को घर लौटी तो उसे अपने जीवन में घटने वाली वो घटना याद आ गई और वो अपने अतीत में डूब गई....

कितना अद्भुत व्यक्ति था वो,सभ्य शालीन,मैने कभी नहीं सोचा था कि उसके मन में मेरे लिए अपार प्रेम होगा,मैं उस समय नासमझ बच्ची थी और वो समझदार युवक,वो मेरा शिक्षक था और मैं उसकी छात्रा,अब मैं कई बार सोचती हूँ कि उन्हें मुझ जैसी लड़की से प्यार क्यों हुआ, जो दिखने में उतनी अच्छी नहीं थी, जिसमें प्यार की कोई समझ भी नहीं थी,उस समय दसवीं कक्षा के टेस्ट परिक्षाओं के बाद हमें बोर्ड की परिक्षाओं की तैयारी करने के लिए छुट्टियाँ मिली,अधिकांश ने स्कूल जाना बंद कर दिया, सभी घर पर रहकर पढ़ाई कर रहे थे,

वें मेरे शिक्षक थे,उनकी माँ नहीं थी, उनके पिताजी और छोटा भाई था,वह अत्यंत ही कुशाग्र रहें होगें,तभी तो उन्हें कम उम्र में ही अध्यापक के तौर पर कन्या विद्यालय में नौकरी मिल गई,विद्यालय की लड़कियाँ उन पर लट्टू रहतीं थीं,लेकिन मैं इस तरह की नहीं थी,तभी वो मुझे ज्यादा महत्व देते थे,मैं बहुत ही वाचाल प्रवृत्ति की थी और वें शांत स्वभाव के अंतर्मुखी व्यक्ति थे, उन्हें अपने आप को अभिव्यक्त करना भी नहीं आता था,शायद इसी कारण वें गणित के अध्यापक बने,मेरे पिता के कहने पर उन्होंने मुझे मेरे घर पर आकर ट्यूशन देना शुरू कर दिया,उस साल मैं बोर्ड की परिक्षाओं में अच्छे अंकों से पास हुई,मेरे परिवार को मुझ पर गर्व हुआ, उन्होंने मुझे पढ़ाने की कोई भी फीस नहीं ली थी,इसका कारण मुझे बाद में समझ आया,मेरे अच्छे अंको से पास होने पर वें पहली बार मंदिर गए थे,क्योंकि वें नास्तिक थे....

अब मैने दूसरे स्कूल में ग्यारहवीं में एडमिशन ले लिया था,इस कारण वें सर और स्कूल दोनों छूट गए थे, हर सुबह मेरी कक्षाएँ दस बजे शुरू हो जाती थीं, इसलिए मुझे घर से नौ बजे निकलना पड़ता था, मेरी एक सहेली ने मुझे एक शॉर्ट-कट रास्ता दिखा दिया था, केवल आधे घण्टे में गली से होते हुए मैं स्कूल पहुँच जाती थी,उस रास्ते से मेरा स्कूल जाना आसान हो गया था,कुछ दिनों के बाद स्कूल जाते समय मैने महसूस किया कि कोई मुझे दूर से देख रहा हैं,लेकिन मैने ध्यान नहीं दिया,पहला महिना मज़े से कट गया,हम एक-दूसरे को जानने लगे, पाठ्यक्रम की जानकारी हुई, स्कूल के अध्यापकों से परिचय हुआ और इसी तरह जुलाई का महीना बीत गया, बारिश का मौसम आया,उस दिन लगातार दोपहर बारह बजे से लेकर शाम को पाँच बजे तक मूसलाधार तेज़ बारिश हुई, लगातार बारिश से पानी का स्तर बढ़ता जा रहा था, बादलों की गड़गड़ाहट तेज़ हवाएँ, बिजली की चमक सभी एक क्रूर माहौल का निर्माण कर रहीं थीं, हम सभी ने अपने लंच बॉक्स खोलकर इनडोर पिकनिक मनाना शुरू कर दिया,शाम को पाँच बजे जाकर बारिश रुकी, हम सभी पानी में छपाक-छपाक करते हुए अपने-अपने घरों की तरफ़ जाने लगे,मेरे साथ और मेरी दो सहेलियाँ थीं,जो पहले और दूसरे मोड़ पर मुझसे अलग हो गईं और फिर मैने शॉर्टकट वाला रास्ता पकड़ा....

तब मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा पीछा कर रहा है,लेकिन हिम्मत करके मैने पीछे मुड़कर देखा तो सर थे और उन्हें देखकर मैने पूछा...

"सर"!आप यहाँ क्या कर रहे हैं?

“मैं यहीं रहता हूँ” सर बोले...

मैने कहा,...अच्छा
तब उन्होंने पूछा,पढ़ाई कैसी चल रही है?
अच्छी चल रही है,मैने जवाब दिया..
कुछ कहना था,वें बोलें...

तब मैने कहा.....

“सर, अँधेरा हो रहा ,अब मुझे जाना चाहिए....

तब उन्होंने एक किताब देते हुए मुझसे कहा ...

“कृपया मेरी बात सुन लो,कुछ भी सोचने से पहले इसमें रखें पत्र को एक बार जरूर पढ़ लेना,

तब उन्होंने मुझे एक किताब थमा दी और वह देकर वें अँधेरे में कहीं ग़ायब हो गए...

मैं उस किताब को अपने बैग में डालकर जल्दी से घर चली गई,घर पहुँचकर मैंने चाय का कप लिया और बैग लेकर सीढ़ियों पर चढ़ गई, मैं भी उस किताब के भीतर रखें पत्र को पढ़ने के लिए उत्सुक थी,मैंने अपना बैग खोलकर वो किताब निकाली और उस किताब को खोलकर मैने उस पत्र को निकाला...जब मैंने वो पत्र पढ़ा तो मुझे लगा...

ये सब क्या है? पत्र? प्रेम-पत्र?ये उस व्यक्ति ने लिखा है जिसने कभी कहानी तक नहीं पढ़ी हो? गणित विषय का ज्ञान रखने वाला इन्सान साहित्यिक भाषा का इतना अच्छा प्रयोग कैसें कर सकता है?

मैं पसीने से तर-बतर हो गई ,मेरे होंठ सूख गए थे,मैं बुरी तरह से घबरा गई....

सबसे पहली वाली पंक्ति में लिखा था.....

"प्रिय नीलाक्षी" !

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ,लेकिन मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई है तुमसे ये कहने की कि मैं तुम्हें चाहता हूँ,लेकिन आज मैने तुम्हें ये प्रेम पत्र आखिर दे ही दिया, तुम ईश्वर द्वारा निर्मित सबसे प्यारी कृति हो, तुम सर्वोत्तम हो, तुम्हें कोई भी इतना प्यार नहीं कर पाएगा, जितना कि मैं करता हूँ.....

इतना पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मैं अब और इससे ज़्यादा नहीं पढ़ सकती और ज़्यादा नहीं! फिर हिम्मत करके मैंने अन्तिम पंक्ति पढ़ी....

“मुझे बचाओ,मेरा उपचार करो या मार डालो,मैं और बोझ नहीं बर्दाश्त कर सकता , तुम नहीं जानती प्रिये! मैं तुम्हारा कितना आभारी हूँ! भोलेपन में, अनजाने में तुमने मुझे जीवन के बड़े-बड़े अध्याय सिखा दिए हैं , तुमने मुझे प्यार सिखाया, तुमने मुझे सच्चा मनुष्य बनाया, मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ ये नहीं बता सकता.....

इतना पढ़ने के बाद फिर मेरा मन बोला, मुझे और ज़्यादा नहीं पढ़ना चाहिए, जिससे मेरी दुनिया में उथल-पुथल हो जाए,कहीं ये धरती ना फट जाएँ और मैं उसमें समा जाऊँ...

इसलिए मैं जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से उतरकर नीचे पहुँची और माँ को सब बता दिया,

“माँ! सर ने मुझे ये दिया है।”

तब माँ ने पत्र पढ़ा और बोली...

“यह क्या है? पत्र? हे भगवान! अब क्या होगा,“ये तो बच्ची है,यह तो अच्छा हुआ कि इसने ये पत्र मुझे दिखाया, घर पहुँचते ही ये पत्र उसने मुझे दे दिया,

फिर एक हफ्ते तक मुझे स्कूल नहीं जाने दिया गया, फिर एक शाम को उन्हें घर बुलाया गया,मुझे कमरें से निकलने को मना किया गया ,उनके आने पर वो पत्र उनके मुँह पर फेंक दिया गया, शायद उन्हें भला-बुरा भी कहा गया,उनसे पिताजी ने कहा कि तुम एक बच्ची को भ्रमित कर रहे थे, तुम्हारी इतनी हिम्मत,हम तुम्हें पुलिस के हवाले कर देंगे,तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की?

मैं कान लगाकर सब-कुछ सुन रही थी ,फिर मैंने खिड़की से झाँककर देखा,तब मैंने उन्हें आखिरी बार देखा था,वें अपने सीने से उस प्रेमपत्र को चिपकाए हुए, चेहरा नीचे किए चले जा रहे थे ,फिर उन्होंने दूसरे दिन ही वह क़स्बा और अपनी नौकरी छोड़ दी......

आज इतने साल बीत चुके हैं,अब मैं ये सोचने लायक हो चुकी हूँ कि क्या सही था और क्या ग़लत? कौन सही था और कौन गलत? अब समझ सकती हूँ कि उनके हृदय की धड़कन औरों की धड़कनों से ज़्यादा गहरी रही होगी, किसी की साँसों से ज़्यादा जीवन रहा होगा उनमें,वें ओस की बूँदों के समान पारदर्शी रहीं होगीं,उनमें दीप सा प्रकाश और हवा सी ताजगी रही होगी,वो प्रेम पत्र नहीं था किसी की अन्तरात्मा का हिस्सा था....

तभी दरवाजे की घण्टी बजी और नीलाक्षी का ध्यान टूटा ,उसने दरवाजा खोलकर देखा तो उसके पति आँफिस से आ चुके थे....



समाप्त....

सरोज वर्मा....