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तेरे मेरे दरमियाँ..

फरवरी का मौसम,हल्की गुलाबी ठण्ड,मिस्टर गुप्ता और मिसेज गुप्ता दोपहर का भोजन करके धूप सेंकने बाँलकनी में बैठे हैं तभी मिस्टर गुप्ता ने मिसेज गुप्ता की फोटो खीचते हुए कहा...
"जरा इधर देखना"
"क्या ?आपको भी बुढ़ापे में मेरी फोटो खींचने का शौक चर्राया है",मिसेज गुप्ता बोलीं...
"मौहब्बत जताने की कोई उमर नहीं होती,विमला जी!,आप तो मेरे लिए अब भी वहीं हैं जो काँलेज के समय हुआ करतीं थीं",मिस्टर गुप्ता बोलें....
"आपका आशिकाना अन्दाज़ गया नहीं अब तक"मिसेज गुप्ता बोलीं...
"जब सामने आशिकी बैठी हो तो बेचारा ये आशिक क्या करे?,मिस्टर गुप्ता बोलें....
"देखो !मिस्टर आशिक !अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है,बगल वाले कमरें में पोते-पोती हैं,वें सुन लेगें तो क्या सोचेगें हमारे बारें में"मिसेज गुप्ता बोलीं....
"क्या सोचेगें भला? कुछ नहीं तो मौहब्बत करना जरूर सीख जाऐगें",मिस्टर गुप्ता बोलें...
"हटो जी!रहने भी दो ये चोचले",मिसेज गुप्ता बोलीं...
"चोचले नहीं!ये मौहब्बत है,जिसे तुम जरा भी तवज्जो नहीं देती",मिस्टर गुप्ता बोले...
"जो भी हो मुझे क्या लेना देना,आप मुझे मेरा स्वेटर बुनने दीजिए"मिसेज गुप्ता बोलीं...
"ठीक है भाई!बुनो अपना स्वेटर,अच्छा ये बताओ लेकिन तुम ये स्वेटर बुन किसके लिए रही हो"?,मिस्टर गुप्ता ने पूछा...
"सलोनी ने फोन किया था कि मम्मी अधिराज के लिए स्वेटर बुन दो,इसलिए उसके लिए ही बुन रही हूँ ये स्वेटर",मिसेज गुप्ता बोलीं....
"क्यों ?सलोनी की सास को स्वेटर बुनना नहीं आता क्या?,मिस्टर गुप्ता ने पूछा...
"तो क्या हो गया?,अगर मैनें स्वेटर बुन दिया अपने दमाद के लिए तो",मिसेज गुप्ता बोलीं....
"हुआ तो कुछ नहीं!,लेकिन सलोनी को पता है ना कि तुम्हें माइग्रेन है तब भी उसने तुमसे स्वेटर बुनने के लिए कहा,इसी तरह कल छोटी बहू तृप्ति ने कहा कि मम्मी जी आज आपके हाथ के आलू के पराँठे खाने का मन कर रहा है तो तुम कल आलू के पराँठे बनाने बैठ गई थी,तुम्हें या किसी और को ये क्यों नहीं समझ में आता कि अब तुम्हारा बुढ़ापा आ गया है,तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है और तुम बहुओं से काम के लिए मना नहीं कर सकती क्या?,तुम काम के लिए मना नहीं करती तभी तो वें तुमसे कोई काम करवाने के लिए संकोच नहीं करती"मिस्टर गुप्ता गुस्से से बोले....
"अरे!आप तो फालतू की बातों को लेकर गुस्सा कर रहे हैं",मिसेज गुप्ता बोलीं...
"विमला!ये फालतू की बातें नहीं हैं,तुम्हें याद है ना कि मैनें तुम्हें कितनी मुश्किलों से हासिल किया था,उस जमाने में प्रेमविवाह नहीं हुआ करते थे लेकिन तब भी मैनें सबके खिलाफ जाकर तुमसे प्रेमविवाह किया,वो भी अन्तर्जातीय , तुम्हें हो ना हो मेरी कदर लेकिन मुझे तुम्हारी बहुत कदर है,वैसे भी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं रहती और तुम ये फालतू के झमेले लेकर बैठ जाती हो,जरा अपनी तबियत का ख्याल भी रखा करो,अपने लिए ना सही मेरे लिए ही सही"मिस्टर गुप्ता बोले....
"आप तो भावुक हो गए जी!"मिसेज गुप्ता बोलीं...
तब मिस्टर गुप्ता बोले....
"भावुक ना हूँ तो क्या करूँ?,बच्चों को तो हम दोनों की कोई फिकर नहीं है,लेकिन हम दोनों तो एकदूसरे की फिकर कर लें,तुम्हें पता है ना कि मैं तुम्हारे बिन जीने की सोच भी नहीं सकता,मेरी जिन्दगी तुम बिन अधूरी है,तुम्हें याद तो होगा ना कि जब मैं तुम्हारे घर तुम्हारे पिताजी से तुम्हारा हाथ माँगने गया था तो क्या कहा था उन्होंने.....
"ना तुम्हारे पास नौकरी है और ना रहने का ठिकाना,मेरी बेटी को कहाँ रखोगे और क्या खिलाओगें?,ये इश्क़-विश़्क बस दो दिन का फितूर है ,जिस दिन इसके और अपने पेट की आग ना बुझा पाओगे ना तो यही प्रेमिका तुम्हारे लिए दुश्मन हो जाएगी और तुम इसके लिए दुश्मन हो जाओगें,ये इश्क़ मौहब्बत बस दो दिन के चोचले हैं,जिस दिन इश्क़ का खुमार उतरेगा ना तो असलियत सामने आ जाएगी,कहें देता हूँ कि धरती पर रहो आकाश में मत उड़ो,जिस दिन आसमान से गिरे तो जमीन पर धूल चाटते नजर आओगे,इसलिए यही बेहतर होगा कि तुम विमला को भूल जाओ"
तब मैं उनके सामने रोया था और गिड़गिड़ाया था कि अंकल प्लीज मुझे एक साल की मोहलत दे दीजिए,मैं नौकरी ढ़ूढ़कर रहूँगा,बस सिर्फ़ एक साल और अगर मैं एक साल तक नौकरी ना ढ़ूढ़ पाया तो आप अपनी मर्जी से विमला को कहीं भी ब्याह दीजिएगा,मुझे कोई एतराज़ ना होगा और फिर उस दिन के बाद मैं कड़ी मेहनत में लग गया और बड़ी मसक्कत के बाद मुझ सरकारी नौकरी मिल ही गई और वो एक साल हम दोनों ने एक दूसरे के बिना कैसें काटा था,तुम्हें याद है ना!इसलिए जो चींज बड़ी मुश्किलों से मिलती है उसकी कदर करनी चाहिए,तुम मुझे बड़े जतन के बाद मिली हो इसलिए तुम्हारी अहमियत मेरे लिए क्या है ये तुम कभी नहीं समझ सकती"....
मिस्टर गुप्ता की बात सुनकर मिसेज गुप्ता की आँखें भर आईं और वें बोलीं....
"इतना भावुक होने की कोई जरूरत नहीं है,पहले हम दोनों विमला और यशपाल थे और हम दोनों के दरमियाँ केवल प्यार ही प्यार था और शादी के बाद हमारे दरमियाँ बच्चे आए और गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ आईं,हम दोनों हैं तभी तो हमारा ये परिवार है,ये भी हमारे प्यार का एक हिस्सा ही है,बच्चों के बिना तो हमारी गृहस्थी अधूरी है,पहले हम प्रेमी-प्रेमिका थे,लेकिन अब माँ-बाप,दादा-दादी,नाना-नानी,बहुत से रिश्ते हमारे दरमियाँ आ गए हैं और हम इन रिश्तों को नकार नहीं सकते,यही जिन्दगी है,हम दोनों जीवन भर प्रेमी-प्रेमिका बनकर नहीं रह सकते,अब हमें दोस्त और एकदूसरे का हमदर्द बनकर रहना होगा,ये सारे रिश्ते नाते हमारे कारण हैं तो ये तो हमारे दरमियाँ आऐगें ही,ये सब हमसे हैं और हम दोनों इनसे"
तब मिसेज गुप्ता की बात सुनकर मिस्टर गुप्ता बोले....
"तुम शायद सही कह रहो हो,तेरे मेरे दरमियाँ अब हमारी गृहस्थी और परिवार है और हम दोनों अगल बगल की दीवारें हैं,जिसे एक तरफ से तुम मजबूती देती हो और दूसरी तरफ से मैं मजबूती देता हूँ,तभी तो ये परिवार सिमटा हुआ है,नहीं तो बिखर जाता"
तब मिसेज गुप्ता बोलीं....
"अब आप ठीक समझें"
"तो फिर हो जाए इसी बात पर एक सेल्फी",मिस्टर गुप्ता बोले....
और फिर दोनों पति पत्नी खुश होकर सेल्फी लेने लगे....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....


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