सोई तकदीर की मलिकाएँ - 56 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 56

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

56

 

भाभियों और बच्चों को सौगातों में उलझा छोङ कर जयकौर बाहर निकली और कुछ देर गली में आस पङोस में घूमती रही । सभी घरों में उसकी खूब आवभगत हुई पर उसका मन उचाट हो गया था , उचाट ही रहा । वह कहीं भी टिक नहीं रहा था । वह दो दो चार चार मिनट बैठती और अचानक चौंक कर उठ जाती । पङोसने उसे रुकने का आग्रह करती रही । वे उससे उसकी ससुराल के किस्से सुनने के लिए अधीर हो रही थी पर जयकौर मौन रह कर मुस्काती रहती और फिर उठ कर चल देती । इस तरह सबसे मिलते मिलाते आखिर वह सुभाष के घर पहुँची । सामने कोई नहीं था तो वह घर की दहलीज लांघ कर अंदर जा पहुँची । सरोज दाल को तङका लगा रही थी । उसने इधर उधर देखा । कोई भी दिखाई न दिया । उसे यूं ताका झांकी करते देख सरोज हँसी – आओ बीबी , किसी को ढूंढ रही हो ।
वो ताई दिखाई नहीं दे रही कहीं । उन्हीं को देख रही थी ।
तब तक उसकी आवाज सुन कर सुभाष की माँ बाहर चली आई थी ।
आ बिटिया , मैं तो अभी थोङी देर पहले ही उठ कर भीतर गई थी । यहाँ शाम को मच्छर बहुत हो जाता है । तू सुना, तेरा क्या हाल है ? तू खुश है न ससुराल में । सरदार तेरा ध्यान तो रखता है न ?
जी ताई ।
सुना है , तेरा घरवाला बङा अमीर है । बङी लंबी चौङी जमीन जायदाद है । ढेर सारे नौकर चाकर हैं ।
सही सुना है आपने । वहाँ किसी चीज की कोई कमी नहीं । परमात्मा का दिया बहुत कुछ है । बीस परिवार पलते है हवेली के सहारे ।
शुकर है परमात्मा का जो तेरे दिन फिरे । बिन माँ बाप की यतीम बच्ची थी । बङी तकलीफें झेली , चल अब जिंदगी थोङी आसान हो जाएगी ।
दस मिनट बैठ कर वह उठ गई । सरोज पुकारती रह गई।
अरे बैठ न । कोई चा पानी । रोटी का टैम हो रहा है । दो टुकङे खाती जा पर वह बिना मुङे घर पहुँच गई । दोनों भाभियाँ अपने अपने चूल्हे तपा कर रोटी सेक रही थी । दोनों ने उसे अपने चौके पर खाने का न्योता दिया पर जयकौर ने यह कह कर रोटी खाने से मना कर दिया कि भाभी अभी थोङी देर पहले तो रोटी खाई है और दो तीन घरों ने जबरदस्ती चाय पिला दी । इसलिए अब बिल्कुल भूख नहीं है । थोङा थक गई हूँ । नींद भी बहुत आ रही है । सो जाऊँगी तो ठीक लगेगा ।
और वह कोठरी में जाकर वहाँ बिछी चारपाई पर लेट गई । लेटते ही सुबह का सारा घटनाक्रम उसके सामने घूमने लगा । डाक्टर के कहे अनुसार उसके पेट में पल रहा गर्भ इस समय तेरह या चौदह सप्ताह का हो चुका । अगर रिपोर्ट से यह बात सही साबित हो गई तो वह क्या करेगी । दोनों भाई और भाभियाँ तो उसे जीने नहीं देंगे । वह खुद भी यहाँ गली में कैसे मुँह दिखाएगी । कलंक लेकर कहाँ जाएगी । सरदार सुनेगा तो उसे जिंदा ही नहीं छोङेगा । अपनी कृपाण से उसका गला रेत डालेगा । हर जगह थू थू होगी । लोग हँसेंगे उस पर । सौ लाहनत मलानत होगी । कैसे सहेगी वह ये सब । अभी शादी को डेढ महीना नहीं हुआ और वह तीन महीने से अधिक का गर्भ लिए बैठी है । कौन सुनेगा उसकी बात । कौन करेगा उस पर विश्वास । प्रेम का ऐसा परिणाम हो सकता है , यह तो कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा था । ऐसे में क्या सुभाष उसका साथ देगा । आज डाक्टर के यहाँ से निकलने के बाद से उससे बात ही नहीं हो पाई । वह भी बेचैन तो होगा और कुछ घबराया भी । आखिर वह बच्चे का बाप बनने वाला है पर उनकी शादी तो हुई ही नहीं । आगे होने की संभावना भी नहीं है । जिससे शादी हुई , उसके साथ तो इस एक महीने में एक ही बार उसका मेल हुआ था , वह भी बङे बेमन से । दोनों ही इस मेल के लिए उत्सुक नहीं थे । भोला तो उसके पास लेटा हुआ भी बसंत कौर के ख्यालों में ही खोया होगा और वह पूरा समय सुभाष को याद करती रही थी । अगर सुभाष मान जाय तो वह भोला सिंह को छोङ कर उसके साथ कहीं भी भूखे पेट रह लेगी । हर तकलीफ झेल जाएगी । पर पहले सुभाष क्या सोच रहा है , यह तो पता चले । वह तो डाक्टर के क्लीनिक से निकलने के समय से ही चुप सा हो गया ।
सोच सोच कर करवट बदल बदल कर जब वह थक गई तो चारपाई से उठ कर बाहर आ गई । आसमान में तारे झिलमिला रहे थे । अंधेरा पक्ष चल रहा था तो चाँद नहीं निकला था । उसने तारों की स्थिति देख कर अनुमान लगाया । रात अभी आधी ही बीती थी । आधी रात कैसे बीतेगी जबकि पहली आधी रात ही बङी मुश्किल से बीती है । उसने धीरे से सांकल खोली और गली में निकल आई । गली दूर दूर तक सूनी पङी थी । कहीं किसी पंछी तक के होने का अहसास नहीं हो रहा था । बस रह रह कर कुत्तों के भोंकने की आवाजें आ रही थी । उसे अपने पागलपन पर झुंझलाहट हो आई । वह इस अंधेरी रात में कैसी बेवकूफी करने जा रही थी । वहाँ सुभाष के घर पर भी तो इस समय सब सो रहे होंगे । दरवाजे को कुंडी लगी होगी । दरवाजा खुलवाने के लिए कुंडी खटकाएगी तो सारे जाग नहीं जाएंगे फिर वह उनके सवालों के जवाब दे पाएगी क्या और आधी रात को आने का क्या कारण बताएगी । उसने अपने सिर के पिछले भाग पर जोर से तमाचा जङा – बेवकूफ किसी जहान की और वापस लौटी और नल चला कर पानी पीने लगी । नल चलने की आवाज सुन कर आँखे मलता हुआ शरण बाहर आया – आधी रात को यहाँ क्या कर रही है तू ?
कुछ नहीं भाई , प्यास लगी तो पानी पीने उठी थी ।
अभी दिन निकलने में दो ढाई घंटे बाकी है । तब तक चुपचाप सो जा । वह हिदायत देता हुआ दोबारा सोने चला गया ।
जयकौर भी अपनी कोठरी में जाकर लेट गई । मन ही मन उसने वाहेगुरु का शुक्रिया कहा कि शरण के उठने से पहले ही वह वापस लौट आई , वरना कोई अनर्थ हो जाता । उसने अपने आप से कहा – सो जा जयकौर , सुबह तुझे सुभाष से मिल कर वापस जाने का प्रोग्राम बनाना है । धीरे धीरे उसकी पलके मुंदनी शुरु हो गई । आसमान में सप्तऋषि अपनी मंजी उठा कर आसमान के दूसरे छोर में ले जा रहे थे ।

 

बाकी फिर ...