लहरों की बाांसुरी - 2 Suraj Prakash द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लहरों की बाांसुरी - 2

2

- एक बात तुमसे और शेयर करती हूं और तुम्‍हें यह जान कर खुशी होगी समीर कि लगातार तीसरे बरस का कंपनी का बेस्ट परफॉर्मर का एवार्ड तुम्‍हारी इस मित्र अंजलि को ही मिला है और मैं यह एवार्ड लेने ही गोवा जा रही थी। हंसी आ रही है, पैसे मिलते गोवा में और मैं खर्च कर रही हूँ दमन में। बस एक ही बात है, बेशक समंदर वहां भी होता, तुम न होते।

अचानक अंजलि रुकी हैं - और फिर तुमसे अपने खराब व्‍यवहार के लिए माफी भी तो मांगनी थी।

- किस बात की माफी? मैं हैरान होता हूं।

- जिस बात के लिए हमारा अबोला हुआ था। फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर को ले कर।

- अरे वो तो मैं कब का भूल चुका।

- लेकिन मैं कैसे भूलती। बहुत खराब लग रहा था कि मैंने ये क्‍या कर डाला है लेकिन कोई तरीका नहीं मिल रहा था पैच अप का। आज जब मुंबई की फ्लाइट का मौका मिला तो मुझे लगा ये सही मौका है।

मैं सिर्फ मुस्‍कुरा कर रह गया हूं। मामूली सी बात थी। फेसबुक पर वैसे भी किसी पोस्‍ट की उम्र कुछ घंटे होती है और किसी मुद्दे की उम्र बहुत हुआ तो दो दिन। बात इतनी सी थी कि एक महीना पहले मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था कि आज एक दुर्घटना जैसी हो गयी। रोज़ाना पाँच-सात मैत्री अनुरोध आते हैं। कई बार तो नर और नारी का ही पता नहीं चल पाता। तस्वीर की जगह फूल पत्ती, भगवान या पाकिस्तानी नायिकाएं। कुछ लोग हंसिका मोटवानी की तस्वीर लगा कर उस पर अहसान कर देते हैं। ये मैत्री प्रस्ताव किसी पार्टी के बैनर वाला था। बिना जांच पड़ताल के दोस्त बनाने के दिन लद गये। उनसे पहचान के लिए पूछा तो उन्होंने ताना मारा कि आपकी फ्रेंड लिस्ट में कई ऐसे लोग शामिल हैं जिन्होंने अपनी तस्वीर नहीं लगा रखी है तो हमीं पे ये शर्त क्यों। बात सही थी।

आगे लिखा था मैंने कि तब पहला काम यही किया कि बिना प्रोफाइल पिक्चर के कई दोस्त विदा किये। इस अभियान में परिचित लेकिन फूल पत्ती लगाये कई दोस्त शहीद हो गए। अभी ये काम बाकी है। वे दोस्त बेशक फेसबुक से विदा हुए, मेरे जीवन में बने रहेंगे।

इसी चक्‍कर में मैंने अंजलि को भी अनफ्रेंड कर दिया था। बेशक सिर्फ उन्‍हीं के इनबॉक्‍स में लिखा था कि आपके गुलाब के फूल को भी मेरी सूची से हटना पड़ना रहा है ताकि कोई मुझे ये न कहे कि अनफ्रेंड करने में भी भेदभाव बरता है। लिखा था मैंने कि आप मेरी दोस्‍त थीं, हैं और बनी रहेंगी। अब तक वे मेरी बेहतरीन फेसबुक फ्रेंड थी। बेशक हमने कभी एक दूसरे के बारे में न तो ज्‍यादा जानने और न ही बताने की ज़रूरत ही नहीं समझी थी। इतने दिनों में मैंने कभी नहीं पूछा कि वे किस कंपनी में हैं और क्‍या काम करती हैं।

हम बरस भर से फेसबुक मित्र थे और अक्‍सर चैट करते रहते थे और एक दूसरे के सुख दुःख के बारे में पूछते रहते थे। हम जब भी बात करते थे, दुनिया जहान की बात करते थे। मेरी पोस्‍ट अंजलि बहुत ध्‍यान से पढ़ती थीं और उस पर अक्‍सर चलने वाली बहसों में हिस्‍सा लेती थीं। हम दोनों ने कभी मोबाइल नम्‍बर एक्सचेंज नहीं किये थे। इस मुद्दे के बाद पता नहीं कहां से उन्‍होंने मेरा मोबाइल नम्‍बर खोजा था और मेरी अच्‍छी खासी लानत मलामत कर दी थी। मेरी एक नहीं सुनी थी और दोबारा भेजी गयी मेरी फ्रेंडशिप की रिक्‍वेस्‍ट को भी ठुकरा दिया था।

सारा मामला वहीं खत्‍म हो गया था। मैंने एक अच्‍छी दोस्‍त को खो दिया था। सम्‍पर्क का कोई ज़रिया नहीं रह गया था। धीरे धीरे मैं उनके बारे में भूल भी चुका था। और अब वे ही दोस्‍त न केवल मेरे सामने बैठी हैं बल्‍कि उस बात की भरपाई करने के लिए इतना शानदार न्‍यौता ले कर आयी हैं।

नाश्‍ता करने के बाद जब हम बाहर निकले हैं तो हमें फिर से यू टर्न ले कर गुजरात की तरफ जाने वाली सड़क पर जाना है। पूछ ही लिया है उन्‍होंने कि ऐसा क्‍यों है कि सारे बार सड़क के इस तरफ ही हैं।

मैंने बताया है - बहुत आसान सी बात है। ये सड़क गुजरात की तरफ से आ रही है। गुजरात ड्राइ स्‍टेट है। वहां से आने वाली गाड़ियों के ड्राइवर और पैसेंजर जैसे सदियों से प्यासे होते हैं। ये सब इंतज़ाम उन प्यासों की ज़रूरत के लिए है और हमारी तरफ वाली सड़क चूंकि गुजरात जा रही है तो ड्राइ स्‍टेट में पी कर जाने का रिस्‍क लेने वाले कम होते हैं इसलिए उस तरफ बार भी नहीं हैं।

अंजलि ने सलाम में हाथ उठाया है - मान गये उस्‍ताद। बलिहारी है पीने वालों की।

· 

गाड़ी अंजलि ही चला रही हैं। मैं अचानक सोच पड़ गया हूं। अंजलि की तरफ देख रहा हूं। लगातार तनाव में हूँ। मेरे साथ एक युवा, बिंदास और अपनी तरह से भरपूर ज़िंदगी जीने वाली महिला हैं जो तीन दिन की छुट्टी मनाने के लिए अपने साथ मुझे ले कर आयी हैं। हम बेशक फेसबुक पर एक दूसरे को जानते रहे हैं लेकिन आज अचानक पहली बार मिल रही हैं। महीने भर से चल रहे अबोले को खत्‍म करने चली आयी है। समझ नहीं आ रहा है कि अंजलि में क्या सोच कर अपनी इस यादगार ट्रिप के लिए मुझे चुना है। तीन घंटे पहले तय किया और बिना सोचे समझे चली आयीं। मैं न मिलता या मुंबई में ही न होता तो। ये तो और वो तो.........। तो.........। एक साथ तीन दिन और तीन रात रहना। जब नाश्‍ता ही बीयर से हो रहा है तो दमन में तो वक्‍त बेवक्त चलेगी। पता नहीं अंजलि जी के मन में क्‍या हो।

हम नानी दमन पहुंच गये हैं। कई बरस के बाद आ रहा हूं तो पता नहीं इस बीच कौन-कौन से नये होटल खुल गये हैं। चेक करने के लिए मोबाइल निकालता हूं लेकिन अंजलि जैसे अपनी ही धुन में कार चला रही हैं। कुछ ही देर में हम जजीरा होटल की लॉबी में हैं।

कार वेलेट पार्किंग के हवाले करके हम रिसेप्शन पर आये हैं। अंजलि ने मुझे बैठने के इशारा किया है।

पूछा है मैंने - इस होटल के बारे में कैसे पता था? पहले कभी आयी हैं?

- जी नहीं, हम आज यहां पहली बार आये हैं और तुमसे मिलने के बाद तुम्‍हारी कार में बैठे हुए ही मैंने ऑनलाइन बुकिंग की थी। मैंने राहत की सांस ली है। अंजलि की पसंद और सिस्‍टम से काम करने के लिए उनकी तरफ तारीफ भरी निगाह से देखता हूं।

कमरे में ही जा कर पता चला है कि अंजलि में कमरा न बुक कराके डीलक्‍स सुइट बुक कराया है। रूम सर्विस स्‍टाफ के जाते ही अंजलि में फिर से मुझे हग किया है और मेरे गाल चुटकियों में भरते हुए कहा है - ये पोर्शन मेरा और मास्‍टर बेडरूम आपका ताकि हम पास रहते हुए भी दूर रहें और दूर रहते हुए भी पास रहें।

मैं भोलेपन से पूछता हूं - जरा समझायेंगी इस दूर पास का मतलब?

- सिंपल। अगर तुम कमज़ोर पड़ गये तो मैं तुम्‍हें संभालूंगी और कमज़ोर नहीं पड़ने दूंगी और अगर कहीं मैं कमज़ोर पड़ गयी तो तुम मुझे संभाल लेना।

तभी मैंने अंजलि को दोनों कंधों से थामा है और उनकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा है- और अगर हम दोनों ही कमज़ोर पड़ गये तो?

अंजलि ने जवाब में मेरे कंधे दबाये हैं - मर्द हो ना, कमज़ोर होने की ही बात करोगे। ये क्‍यों नहीं कहते कि हम दोनों ही मज़बूत बने रहे तो कितनी बड़ी बात होगी। वे मेरा हाथ थामे मुझे सोफे तक लायी हैं। हम बैठ गये हैं। मेरे हाथ अभी भी उनके हाथों में हैं। वे मेरी आंखों में आंखें डाल कर कह रही हैं - समीर, मैं यहां कमज़ोर हो कर या कमज़ोर होने नहीं आयी हूं। मेरी पूरी फ्रेंडलिस्‍ट में अकेले तुम्हीं रहे जिसने कभी भी कोई लिमिट क्रास नहीं की वरना इस प्‍लेटफार्म पर ऐसे लोग भी भरे पड़े हैं जिनका बस चले तो फेसबुक पर ही पहले अपने और फिर सामने वाले के कपड़े उतारने में एक मिनट की देरी न करें। वे रुकी हैं। मैं उनके चेहरे की तरफ देख रहा हूं।

कहता हूं - कहती चलें।

वे आगे कह रही हैं - बस मुझे और कुछ नहीं कहना। आओ देखें खिड़की से समंदर का नज़ारा कैसा दिखता है। हमें आये हुए इतनी देर हो गयी और अब तक हमने समंदर से मुलाकात नहीं की।

तभी दरवाजे पर नॉक हुई है। दरवाजा खोलता हूं। तीन वेटर हैं। ढेर सारा सामान लिये। फ्रूट, बिस्‍किट, चॉकलेट्स, कुकीज और दो वाइन बॉटल्‍स। एक आइस बकेट में और एक रूम टेम्‍परेचर पर। होटल की तरफ से कम्‍पलीमेंटरी। बॉटल्‍स देखते ही अंजलि ने मुझे आँख मारी है।

हम दोनों कमरा देखते हैं। दो तरफ की दीवार पर पूरी खिड़की है। सामने हरहराता समंदर देख कर अंजलि की खुशी के मारे उनकी चीख निकल गयी है। सामने ठाठें मारता अनंत जल विस्‍तार है। होटल के गार्डन की दीवार से टकराती ऊंची ऊंची लहरें। हाइ टाइड होना चाहिये। अंजलि ने एक बार फिर मुझे अपने से सटा लिया है - हम कितने सही वक्‍त पर आये हैं ना। हाइ टाइड हमारी अगवानी कर रही है - लेट्स सेलिब्रेट।

और बिना एक पल भी गंवाये वे वाइन के गिलास भर लायी हैं।

वे खिड़की के सामने से एक पल के लिए भी नहीं हटना चाहतीं। समंदर को इतना पास और इतना खुश देख कर छोटी बच्‍ची बन गयी हैं। फटाफट वाइन खत्‍म की है। अब वे हड़बड़ाने लगी हैं – चलो, चलो जल्‍दी करो। अब नीचे चलते हैं। बाकी बातें बाद में।

वे पूछ रही हैं - स्‍विमिंग कॉस्‍टयूम लाये हैं ना?

मैं झल्‍लाता हूं - अंजलि जी, कपड़े रखने के लिए कहते समय आपने कहां कहा था कि हम कहां जा रहे हैं। लेकिन डोंट वरी। आप वाशरूम में जा कर चेंज करो। मैं हंसता हूं - मर्दों के लिए स्‍विमिंग कॉस्‍टयूम कहां होते हैं।

वे अपना कास्‍ट्यूम पहन कर उस पर बाथ रोब डाल कर तैयार हैं। वे छोटी बच्‍ची जैसी चपल हो रही हैं समंदर से मिलने जाने के लिए।

· 

अंजलि ने बहुत एन्‍जाय किया है। दो घंटे हो गये हैं, पानी से बाहर आने का उनका मन ही नहीं है। उजला फेनिल जल जब वापिस लौटने लगा है तब भी वे वहीं रहना चाहती हैं। मेरा हाथ थाम कर वे पानी से खूब अठखेलियां कर रही हैं। मेरे लिए भी आज का अनुभव एकदम नया और दिल के बेहद करीब है। हम दोनों पानी में जितनी मस्‍ती रहे हैं, लगता ही नहीं कि हम आज चार घंटे पहले ही ज़िंदगी में पहली बार मिले हैं।

हमने तय किया है कि खाना भी वहीं समंदर के किनारे गार्डन में ही खा लेंगे। नहाने की बाद में सोची जायेगी। बस एक बार दोनों ही फ्रेश वाटर का शावर ले कर आ गये हैं। हम दोनों अभी भी बाथ रोब में ही हैं। बाथरूम में शावर ले कर आते समय अंजलि बेहद खुश लग रही हैं। उनका चेहरा धूप से, नमकीन पानी की दमक से और यहां आने की, समंदर में नहाने की खुशी के मिले-जुले असर से इंद्रधनुष हो रहा है। इस बार मैं पहल करता हूं और दिन दहाड़े, सबके सामने और अरब महासागर को साक्षी बनाते हुए उन्‍हें गले से लगा लिया है मैंने। उनके गाल चूम लिये हैं। मन को तसल्‍ली दे लेता हूं कि इतने भर से हम दोनों कमज़ोर नहीं हो जायेंगे। वे इतरायी हैं। मेरी छाती पर मुक्का मारते हुए बोली हैं - यू नॉटी बाय।

लंच में अंजलि ने फिर से बीयर का ऑर्डर दिया है। जानता हूं, जब तक यहां हूं, पीने और समंदर से मुलाकातें करने का कोई हिसाब नहीं रखा जायेगा।

जब हम कमरे में आये हैं तो दोपहर के चार बजे हैं। बाथ लेने और चेंज करने के बाद मैं अंजलि से कहता हूं कि वे बेडरूम में सो जायें। इससे पहले कि वे अपना इरादा मुझ पर लादें, मैं पहले वाले रूम में सोफा कम बेड पर पसर गया हूं। लेकिन अंजलि ने मेरी एक नहीं मानी है और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बेडरूम में ले आयी हैं और बिस्‍तर पर धकेल दिया है - मिस्‍टर गेस्‍ट, ये आपके लिए है। मैं बाहर लेट रही हूं। और वे बाहर वाले कमरे में चली गयी हैं।

· 

अचानक कुछ सरसराहट से मेरी नींद खुली है। देखता हूं अंजलि डबल बेड पर एकदम मेरे पास अधलेटी लैपटॉप में तस्‍वीरें देख रही हैं। कमरे में बत्तियां जल रही हैं।

टाइम देखता हूं - आठ बजे हैं। मैं उठ बैठता हूं - तो इसका मतलब मैं चार घंटे तक सोता ही रहा। मुझे जागा देख कर अंजलि मुस्‍कुरायी हैं और मेरे हाथ पर हाथ रख कर बेहद प्‍यार से पूछती हैं - चाय या कॉफी? यहीं बनाऊं या रूम सर्विस से मंगाऊं?

- आपको कौन सी पसंद है? मैं पूछता हूं।

- देखो समीर, ये हो क्‍या रहा है। मैं सुबह से तुम्‍हें तुम कह रही हूं और तुम आप आप की रट लगाये हुए हो। हम इतने फार्मल नहीं रहे हैं दोस्‍त। मुझे नाम से पुकारो। अच्‍छा लगेगा।

मैं अचकचाया हूं – नहीं, वो क्‍या है अंजलि कि आपकी पर्सनैलिटी के साथ तुम शब्‍द फिट ही नहीं हो रहा। सुबह से कहना चाह रहा हूं लेकिन हर बार ज़बान तक आते-आते तुम अपने आप आप में बदल जाता है।

- ओके नो प्रॉब्लम। हम तुम्‍हारी मदद करते हैं। उन्‍होंने मेरा हाथ थामा है और कह रही हैं, मेरे साथ-साथ बोलो - अंजलि, चाय की तलब लगी है, चाय पिलाओ ना।

मैं हंसता हूं। अंजलि को छू कर पूछता हूं - अंजलि, तेरी चाय पीने की इच्‍छा है क्‍या, बोल, कौन-सी वाली पीयेगी। और ये कहते हुए मैं सचमुच चाय बनाने के लिए उठ खड़ा हुआ हूं।

मेरी इस हरकत से अंजलि बहुत खुश हो गयी हैं - चल समीर, आज की पहली चाय तेरी पसंद की।

अंजलि अभी भी लैपटॉप में उलझी हैं। अपनी चाय ले कर मैं भी अंजलि के पास सरक आया हूं और तस्‍वीरें देखने लगा हूं। वे पिकासा में तस्‍वीरें देख रही हैं। स्‍लाइड शो चल रहा है। वे लैपटॉप मेरी तरफ मोड़ देती हैं। तस्‍वीरें कुछ जानी पहचानी लग रही हैं। ध्‍यान से देखता हूं - अरे ये तो मेरी ही तस्‍वीरें हैं। अब मैं लैपटॉप को ध्‍यान से देखता हूं। ये मेरा ही तो लैपटॉप है।

अंजलि हंसती हैं - समीर, मैं 6 बजे ही जाग गयी थी। तुम गहरी नींद में थे। कुछ सूझा ही नहीं कि क्‍या करूं। पहले खिड़की के पास खड़ी रही। समंदर लो टाइड के कारण बहुत पीछे चल गया था। अच्‍छा नहीं लगा। फिर याद आया कि तुम्‍हें लैपटॉप लाने के लिए कहा था। बाकी सामान के साथ लैपटॉप भी कमरे में आ गया था। खोला तो पासवर्ड नहीं था।

- हमम, अकेले रहने वाले किसके लिए पासवर्ड रखेंगे। कौन से मुझे इस लैपटॉप से स्‍विस बैंक के खाते मैनेज करने हैं।

- हां ये तो है। मैंने इस बीच तुम्‍हारे म्‍यूजिक का, फिल्‍मों का और पिक्‍चर्स का सारा कलेक्‍शन देख लिया। म्‍यूजिक का कलेक्‍शन तुम्‍हारा बहुत अच्‍छा है। मैंने मार्क कर लिया है कि कौन-कौन सा लेना है। कुछ फिल्‍में भी। बेशक देखने सुनने का समय न मिल पाये लेकिन अहसास रहेगा कि तुमसे लिया है और मेरे पास है। ये कहते हुए अंजलि ने अपने पास ही मेरे लिए दो तीन तकिये रख दिये हैं। आओ समीर, अब जरा बताते चलो अपनी कहानी तस्‍वीरों की ज़ुबानी।