लहरों की बाांसुरी - 4 Suraj Prakash द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लहरों की बाांसुरी - 4

4

हम दिन भर खूब घूमे हैं। पैदल। एक एक दुकान में जा कर झांकते रहे। अंजलि ने ढेर सारी चीज़ें खरीदीं और सारी चीज़ें आखिरी दुकान में दे दीं कि होटल पहुंचवा दें।

खाना भी हमने एक सरदार जी के ढाबे में खाया है। सबसे ज्‍यादा वक्‍त वहीं गुज़ारा। वहां बिछी चारपाई पर पसरे रहे और अंजलि सरदार जी से घर परिवार की बातें करती रही। पता चला कि सरदार जी की पचास बरस पहले यहीं पर स्‍पेयर पार्ट्स की दुकान थी। लेकिन जब देखा कि नार्थ इंडियंस यहां आकर खाने के लिए बहुत परेशान होते हैं तो पंजाब से अपने एक परिचित कुक को बुलवा कर ये ढाबा खोल लिया। अंजलि ने जब पूछा कि अपने घर से इतनी दूर घर वालों की याद नहीं आती तो बुजुर्ग सरदार जी मुस्‍कुरा कर बोले - ना जी, रब्ब की मेहर है। दमन और सिलवासा के ज्‍यादातर ढाबे मेरे बच्‍चों और भाइयों के ही हैं। एक एक करके सबको यहीं बुला लिया है। सुन कर हम खूब हंसे हैं। इसे कहते हैं असली इंटरप्रेनुअरशिप।

· 

हम चार बजे वापिस पहुंचे हैं। कमरे में आते ही अंजलि पलंग पर पसर गयी हैं। उनका खरीदा सारा सामान आ चुका है। मैं फ्रिज खोल कर देखता हूं कि पीने के लिए नॉन एल्‍होकोलिक क्‍या रखा है। मैं अपने लिए रेड बुल का कैन निकालता हूं। अंजलि से पूछता हूं - लोगी? वे चिढ़ जाती हैं - क्‍या लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हो। कुछ बीयर शीयर हो तो दो। मैं उन्‍हें स्‍ट्रांग बीयर का कैन थमाता हूं।

वे हंसती हैं। क्‍या ज़माना आ गया है। मर्द लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हैं और लेडीज बेचारी... च्‍च्‍च..। मैं उन्‍हें आंखें दिखाता हूं - बताऊं क्‍या?

वे हंसती हैं - क्‍या खा के और क्‍या पी के बताओगे श्रीमन?

हम दोनों समंदर को निहार रहे हैं। हाइ टाइड आ कर जा चुकी। लेकिन महासागर का विस्‍तार हमेशा बांधता ही है। जितनी देर देखते रहो, कभी ऐसा नहीं लगता कि हम और न देखें। अंजलि गुनगुना रही हैं।

पूछती हैं - कुछ सुनोगे?

मैं कहता हूं - नेकी और पूछ पूछ। हम बहुत अच्‍छे श्रोता हैं, बस हमें बदले में कोई गाने के लिए न कहे।

अंजलि सचमुच बहुत अच्‍छा गा रही हैं। बहुत सारे ऐसे पुराने और बीते दिनों के गीत गाये हैं कि मैं हैरान हूं कि ये सारे गीत अंजलि की स्‍मृति का हिस्‍सा कब और कैसे बने होंगे। अंजलि तीस बत्तीस बरस की, या बहुत हुआ तो चौंतीस बरस की होंगी। लेकिन वे जो गीत गा रही हैं, सब के सब छठे सा सातवें दशक के हैं। उनके गीत सुनते सुनते कब शाम ढल गयी, पता ही नहीं चला।

· 

आज डिनर के लिए अंजलि ने लॉंग स्‍कर्ट पहना है। समझ सकता हूं। वे घर से तो गोवा के लिए निकली थीं, वहां के हिसाब से कपड़े रखे होंगे। गोवा तो गोवा में ही रह गया, मंजिल दमन बन गयी।

हम गार्डन रेस्‍तरां में ही बैठे हैं। समंदर ज्‍यादा दूर नहीं है। हाथ बढ़ा कर छू लो। अंजलि ड्रिंक्‍स के लिए मीनू देख रही हैं। मैं उन्‍हें देख रहा हूं। वे मीनू देखते हुए भी मेरा देखना ताड़ गयी हैं।

ड्रिंक्‍स के लिए ऑर्डर देने के बाद उन्‍होंने मेरी तरफ देखा है - अब क्‍या है?

- कुछ खास नहीं, बस एक रिक्‍वेस्‍ट है।

- कह डालो।

- कल रात की तरह समंदर से सीधे मुलाकात करने आज मत जाना।

- बस यही या और कुछ?

- यही मान लो तो बंदा जनम जन्मांतर के लिए आभार मानेगा।

- तो श्रीमान आप इसके बदले मुझे कुछ कहने की इजाज़त देंगे?

- कहो ना।

- इस तरह से मना करने की वजह? वैसे इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।

-  मना करने की कोई खास वजह नहीं। तुम्‍हें इस तरह से हाइ टाइड की लहरों में घुसते देख कर डर गया था। कहीं कुछ हो न जाये।

- हां वैसे भी तुम इतने नशे में थे कि मुझे बचाने के लिए पानी तक आने की सोच भी नहीं सकते थे। कुर्सी से उठ तक नहीं पाये। भूल गये कि कमरे तक भी मैं ही लायी थी।

मुझे अंजलि ने फिर मेरी ही बातों में फंसा लिया है। कम्‍बख्‍त हर बात की काट है इनके पास। क्‍या जवाब दूं।

अंजलि ने ही बात संभाली है - दरअसल तुम अचानक सोच ही नहीं पाये थे कि मैं कुछ ऐसा भी कर सकती हूं। सुबह से एक के बाद एक झटके दे रही थी और ये झटका तुम्‍हारे लिए इतना बड़ा था कि तुम्‍हारे होश ही उड़ गये। एक परायी शादीशुदा और पहली ही मुलाकात में क्या क्‍या खेल दिखा रही है।

बात तो अंजलि सही ही कह रही है। मैं सुबह से मिल रहे झटकों में ही डूब उतरा रहा था और रात वाला झटका तो मेरी नसों तक में उतर गया था।

मैंने अंजलि को मनाने की कोशिश की है - अब रात गयी बात गयी। अपनी बात पूरी करो ना।

- दरअसल मुझे समझ नहीं आ रहा कि शुरू से शुरू करूं। अपनी बात आज से शुरू करके वहां तक पहुंचाऊं जहां से ये दौड़ शुरू की थी या पीछे से आज तक की यात्रा करूं। बात लम्‍बी है और पूरी बात करने में समय लगेगा।

- कहीं से भी शुरू करें, शाम अपनी है।

- ओके, दरअसल मैंने तुम्‍हें अपने बारे में बहुत कम बताया है। तुम्‍हें क्‍या, किसी को भी मेरे बारे में कुछ भी नहीं पता। कल से तुम एक चुलबुली, बेलौस, खिलंदड़ी और एक्‍स्‍ट्रा मॉड लड़की से ही मिल रहे हो जो नेशनल हाइ वे पर चलती गाड़ी में अपनी ब्रा उतार सकती है, खूब पीती है, बीयर के साथ ब्रेकफास्‍ट करती है। फाइव स्‍टार होटल में ठहरते हुए एक पराये मर्द के सामने समंदर में नंगे बदन उतर जाती है और इसी तरह की हरकतें करती रहती हैं और हां, अपने फेसबुक फ्रेंड के साथ अपनी पहली ही मुलाकात में यादगार हॉलीडे मनाने के लिए दमन तक चली आती है और एक ही कमरे में ठहरती है।

- हां जितना देखा और जाना है उससे तो यही इमेज बनती है।

- तुम्‍हें पता है ना समीर कि मैं गोवा जाने वाली थी। एक दिन हमारी ऑफिशियल मीट रहती और दो दिन हमारे मज़े मारने के लिए इंतज़ाम था। कम से कम 100 लोग होते वहां लेकिन मैं अगली सुबह यानी मीट के अगले दिन ही गायब हो जाने वाली थी और सीधे कलंगूट बीच पर पहुंच जाती। तुम जो जानते ही हो कि कलंगूट बीच पर दुनिया भर से आये लोग दिन रात बीच पर ही नंग धड़ंग पड़े रहते हैं। मन होता है तो पानी में उतर जाते हैं और फिर आ कर बीच पर लेट जाते हैं। मैं भी यही करने वाली थी लेकिन वहां नहीं जा पायी और यहां आ गयी। जितना कर सकी, किया और आज भी करती लेकिन अब तुमने आज के लिए मना कर दिया तो यही सही। आखिर मर्द जात हो ना, कैसे सहन कर पाते।

- कहती चलो।

- दरअसल ये एक तरीका होता है। नेचर से, प्रकृति से सीधे इंटरेक्‍ट करने का। सीधे साक्षात्कार करने का। प्रकृति को इन्‍वाइट करो कि वह पूरी शिद्दत के साथ, पूरी खूबसूरती के साथ अपने सारे कीमती उपहार आपको सौंपे। आपके पोर पोर को निहाल कर दे। ये काम मैंने कई बार किये हैं समीर। धूप के साथ, बरसात के साथ, चाँदनी के साथ। मंद मंद बहती ठंडी हवा के साथ। मैंने कई कई रातें झिलमिल तारों की संगत में नंगे बदन गुजारी हैं।

- वाह। वो कैसे भला?

- अपने घर की छत पर। मैंने अपने घर की एक छत ऐसी बनवा रखी है जहां कोई नहीं झांक सकता। चारों तरफ के घरों से सबसे ऊंची छत, जहां मैं होती हूं और खुला आसमान होता है। मेरा रूफ गार्डन है। मेरी पसंद के दुनिया भर के बेहतरीन फूलों का साथ होता है वहां। ये आसमान मेरा अकेलेपन का बेहतरीन दोस्‍त है। सर्दियों में वह मुझे भरपूर धूप का उपहार देता है, बरसात में पवित्र जल का उपहार मुझे मिलता है और कई बार ऐसा भी हुआ है कि मैंने चांदनी रात में पूरी पूरी रात चाँदनी को अपने नंगे बदन का स्पर्श करने दिया है। तब मैं होती हूं और मेरे ऊपर खुला आसमान होता है। मैं बहुत लकी हूं कि मुझ पर नेचर खुले हाथों अपना खजाना लुटाती है और जब मैं छत से नीचे आती हूं तो पहले से और अमीर हो जाती हूं।

- ग्रेट। लेकिन अंजलि, तुमने ये सब सीखा कहां से? मेरठ जैसे शहर में मैं सोच भी नहीं सकता कि तुम इतनी ऐय्याशी का जीवन जी रही हो।

हमारे ड्रिंक्‍स आ गये हैं। आज अंजलि ने वोदका मंगायी है। चीयर्स करते हुए अंजलि कह रही है - अरे मुझे ये सब सीखने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ा। बस होता चला गया। बेशक यहां तक की यात्रा बेहद मुश्‍किल और इतनी तकलीफों से भरी रही कि तुम सुनोगे तो दांतों तले उँगली दबा लोगे।

- यात्रा के बारे में बाद में बताना, जो बता रही हो, ज्‍यादा रूमानी है। वही बताती चलो।

- तो सुनो एक शब्‍द होता है सेल्‍फ एक्‍चुअलाइजेशन। हिंदी में इसे पता नहीं क्‍या कहेंगे। लेकिन मैंने अपने जीवन में इसकी सारी अच्‍छी अच्‍छी बातों को उतार लिया है। ये ही मेरी जीवन शक्ति है। इस अकेले शब्‍द ने मेरी ज़िंदगी बदल कर रख दी है। वरना मैं कहां थी, ये सोच के ही मेरी रूह कांप जाती है।

- मैंने इसके बारे में कभी गहराई से जानने की कोशिश नहीं की। बेशक तुम्‍हारी वॉल पर इस तरह की चीजें अक्‍सर नज़र आती थीं और हमेशा और ज्‍यादा जानने की इच्‍छा रही। कभी हो नहीं पाया। देखो आज कितना अच्‍छा मौका मिला है, तुम खुद बता रही हो।

- ज्‍यादा चमचागिरी करने की ज़रूरत नहीं। जो मिला है उससे ज्‍यादा कुछ मिलने वाला नहीं और जो नहीं मिला है, वह मिलने वाला नहीं। वे इतरायी हैं।

- अरे तुम तो बातों को फालतू में गलत मोड़ दे रही हो। इस अरब महासागर की कसम खाता हूं कि मेरी नीयत बिलकुल साफ है और अगले कई दिन तक साफ ही रहने वाली है।

- बनो मत और बको मत। मेरे सामने जब पहली बार ये शब्‍द आया तो मैं इसका मतलब नहीं जानती थी। डिक्‍शनरी में ज्‍यादा मदद नहीं मिली। तब घर पर कम्प्यूटर या नेट नहीं था। ये शब्‍द था कि मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहा था। कुछ था इस शब्‍द में जो मुझे इन्‍वाइट कर रहा था। जानो मुझे। आखिर मैं एक साइबर कैफे में गयी तो गूगल और विकीपीडिया से इसके बारे में विस्‍तार से पता चला। सब कुछ नोट किया, समझा और उस पर खूब मनन किया। फिर तो जहां से भी इस शब्‍द के बारे में जो भी मिला, उसे समझने की कोशिश की।

अंजलि बात करते करते जैसे अतीत में चली गयी हैं - इस फिलासफी की एक एक बात को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की और आज मैं जो भी हूं, इस अकेले शब्‍द की माया की वजह से हूं।

मैं हंसा हूं - थोड़ा सा गुरू ज्ञान इधर भी दें भगवन ताकि हमारा जीवन भी संवर जाये। कब से भटक रहे हैं।

- सेल्‍फ एक्‍चुअलाइजर वह व्‍यक्‍ति होता है जो अपने जीवन को रचनात्मक तरीके से, क्रिएटिवटी के साथ जीता है और अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्‍तेमाल कर बेहतर तरीके से जीने की कोशिश करता है। वह ऐसी सोच रखता है कि वह जो काम कर सकता है, उसे ज़रूर करे।

- वेरी इंटरेस्‍टिंग। कहती चलो।

- इस बात की कई परतें हैं जो एक एक करके खुलती हैं। मैं बहुत थोड़े शब्‍दों में बताऊंगी। अंजलि ने वेटर को अपना गिलास भरने का इशारा किया है। मैं हैरान हूं कि कल मैं जिस अंजलि का रूप देख रहा था, उससे बिल्‍कुल अलग रूप में अंजलि मेरे सामने बैठी शराब की चुस्कियां लेते हुए जीवन के गूढ़ रहस्यों पर इतने अधिकार के साथ बात कर रही है।

अंजलि ने बात आगे बढ़ायी है - ये मेरे इंटरप्रेटेशनंस हैं। शब्‍दों का हेर फेर भी हो सकता है। मैंने जिस रूप में समझा और अपने जीवन में ढाला, वही बता रही हूं।

- मैं समझ रहा हूं।

- जैसे वास्तविकता को सही नज़रिये से समझना और स्‍वीकार करना, अपने को, दूसरों को और सबसे बड़ी बात प्रकृति को, नेचर को सहज भाव से स्‍वीकार करना। जो जैसा है, उसे वैसे ही स्‍वीकार करना। ये सबसे मुश्‍किल होता है लेकिन एक बार सध जाये तो क्‍या कहने।

- वाह, क्‍या खूब। आगे।

- अपने अनुभव और जजमेंट पर भरोसा करना।

- हमम।

- जो करो सहज तरीके से करो और बिना आगा पीछा सोचे हुए करो। जिसे स्‍पांटेनियस कहते हैं। खुद के प्रति ईमानदार रहो।

- जैसे?

- साफ है कि जब हम किसी को धोखा देते हैं तो दरअसल खुद को धोखा दे रहे होते हैं। हम वही करें जो हमें रुचे। हम ये न देखें कि लोग क्‍या कहेंगे।

मैं हंसा हूं - मैं समझ रहा हूं। कल से देख ही रहा हूं।

- जो भी करें, पूरे मन से और पूरी तरह से डूब कर करें।

- हर हाल में अपने स्‍व को बचाये रखें, तारीफ में कंजूसी न करें। जो भी संबंध बनायें इतने गहरे हों कि बस। एकांत का मजा लेना सीखें। एकांत बहुत सुकून देता है। आपमें गजब का सेंस ऑफ हयूमर होना चाहिये। उससे किसी को हर्ट न करें। जो भी अनुभव लें, वे खांटी हों, बेहतरीन हों। पूरी तरह डूब कर अनुभव बटोरें। सामाजिक रूप से आप स्वीकार्य हों। एक कहावत है मेक यूअर प्रेजेंस ऑर एबसेंस फैल्‍ट। आप इन्‍सान तो हैं ही आपमें इन्‍सानियत भी हो। और सबसे आखिरी और अहम बात, आपके थोड़े से दोस्‍त हों। वे आपके इतने करीब हों कि आप उनके साथ हों तो कम्‍फरटेबल हों। दोस्‍तों के नाम पर भीड़ जमा करने का कोई मतलब नहीं होता।

- तो बंधु ये ही वे बातें हैं जिन्‍हें मैंने अपने जीवन में ढालने की कोशिश की है और अपने आपको कई कई बार मरने से बचाया है।

- बहुत खूब। मैं अपनी जगह से उठा हूं और अंजलि के पास जा कर उसे उठने का इशारा किया है। मैंने अपनी तरफ से उन्‍हें पहली बार गले लगाया है।

- अंजलि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्‍हें जिस रूप में देख रहा था, दस मिनट की इस बातचीत ने तुम्‍हारा एक नया ही चेहरा मेरे सामने पेश किया है। मैं बेशक तुम्‍हें पिछले एक बरस से तो जानता ही रहा होऊंगा लेकिन फेसबुक पर तुम्‍हारा ये रूप कभी सामने नहीं आया था।

- फेसबुक चैट की एक सीमा होती है समीर। वहां आप थोड़ी देर के लिए, मन बहलाव के लिए, रोज़ाना की तकलीफ़ों से निजात पाने के लिए या रूटीन से बदलाव के लिए आते हैं। जीवन के गूढ़ रहस्यों की बात करेंगे तो आप इतने शानदार सोशल मीडिया प्‍लेट फार्म पर भी अकेले रह जायेंगे।

- सही है। शायद इसी वजह से हमारी से मुलाकात इतनी शानदार और यादगार रहने वाली है। एक बात बताओ अंजलि, थोड़ी देर पहले तुमने कहा था कि बेशक यहां तक की तुम्‍हारी यात्रा बेहद मुश्‍किल और इतनी तकलीफों से भरी रही कि मैं सुनूंगा तो दांतों तले उँगली दबा लूंगा। तो मोहतरमा, ये दांतों तली उँगली दबाने का मौका आज मिलेगा या कल के लिए रिज़र्व रखें इसे?

- समीर सच कहूं तो मैंने अपनी ज़िंदगी की किताब कभी भी किसी के सामने नहीं खोली है। कोई ऐसा मिला ही नहीं जिसे ये सब बताती। जिसे भी बताती वह मुझ पर तरस ही खाता जो मुझे मंजूर नहीं है। अब शायद तुम्‍हारे सामने ही ये किताब खुलेगी लेकिन अभी नहीं। ड्रिंक्‍स और डिनर के बाद हम कल की तरह रेत पर कुर्सियां डाल कर बैठेंगे। नो कैंडिल लाइट। तब हम तुम्‍हें अपनी कहानी सुनायेंगे। अँधेरा मेरी मदद करेगा। और उन्‍होंने अपना ड्रिंक रीपीट करने का इशारा किया है।