खेल खौफ का - 5 Puja Kumari द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खेल खौफ का - 5

रात को डिनर के लिए हम सब साथ में इकट्ठा हुए. "सुनयना मासी ... आप सच में बहुत ही टेस्टी खाना पकाती हैं." मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा.

अंकल कोवालकी (खाना खाते हुए) - अवनी .... आशीष ... तुम दोनों कुछ अपने बारे में बताओ ताकि हम लोग तुम्हारी पसंद नापसंद को जान सकें.

इससे पहले कि मैं कुछ बोलती एक चमगादड़ उड़ता हुआ वहां आ घुसा. और बेहद फुर्ती से यहां वहां उड़ने लगा. मैंने घबरा कर आशीष को कस कर पकड़ लिया. मगर मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रह जब मैंने देखा अंकल कोवालकी ने बड़ी ही आसानी से हवा में हाथ घुमाया और उसे पकड़ लिया.

सुनयना - से एखोन एरा साथे कि कोरबे? अनदर कलेक्शन?

अंकल कोवालकी - हम्म... जस्ट कमिंग!

"कलेक्शन? " मैंने उनके जाते ही हैरानी से पूछा.

सुनयना (हंसते हुए) - हम्म... आर्टिस्ट्स कुछ भी कर सकते हैं. उनके आर्ट वर्क में इन चीजों को इस्तेमाल खूब होता है. पतंगे, बटरफ्लाई, बेट वगेरह.

मुझे सच में यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी होता है.

आशीष (मुंह बनाते हुए) - मुझे बेट नही पसंद.

सुनयना (उसके नाक खींचते हुए) - अच्छा... आगे से हम ध्यान रखेंगे कि हमारे आशु के पास कोई बेट न आ पाए.

5 मिनट के अंदर अंकल वापस हमारे साथ बैठे डिनर कर रहे थे.

अंकल कोवालकी - हां तो हम कहाँ थे?

मैंने बहुत ज्यादा डीपली जाने के बजाय उनको अपनी डेली लाइफ एक्टिविटीज के बारे में बताया जैसे म्यूजिक, स्पोर्ट्स, बुक्स वगैरह.

सुनयना - और आशु तुम्हारा?

आशीष - मुझे तो दी के साथ लुकाछुपी खेलना पसंद है.

ये सुनते ही मैंने देखा अंकल कावोलकी के चेहरे पर एक पल को गुस्सा झलक आया था.

सुनयना (मुस्कुरा कर आशीष को देखते हुए) - हम्म... मगर ये घर तुम्हारे लिए लुक छुपी खेलने के लिए बहुत बड़ा है. और फिर देखो यहां पर कितने सारे कीमती शो पीस रखे हैं ना . खेल खेल में कुछ नुकसान हो जाये तो ...या फिर किसी को चोट लग जाये तो ? आई एम श्योर हमारा आशु बहुत समझदार है. तो वो ऐसी कोई भी गेम यहां नहीं खेलेगा.

मुझे उनकी ये बात बेहद बुरी लगी. इतना चीप एक्सक्यूज एक गेम के लिए? आशीष का उत्तर चेहरा देखकर मुझे उनपर और भी गुस्सा आने लगा था. मगर मैं बस गुस्से का घूंट पीकर रह गयी. शायद अब मुझे आशीष के लिए कोई और अच्छी सी गेम सोचनी पड़ेगी ताकि वो यहां बोर न हो. हमारे रूम्स तैयार हो चुके थे. वाकई रूम बेहद खूबसूरत भी था और बड़ा भी . मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मुझे इतने बड़े और आलीशान घर में रहने का मौका मिलेगा. मगर इसका भी क्या फायदा था जब हम यहां अपनी मर्जी से कुछ कर ही नहीं सकते थे. आज मुझे मां पापा की बेहद याद आ रही थी. मां भले ही घर में खेलने पर सामान बिखरने से नाराज़ होती थी मगर फिर भी उन्होंने कभी आशु को उसका फेवरेट गेम खेलने से मना नहीं किया. काश कि वो जिंदा होते . मुझे अब अपना वही छोटा सा दो कमरों का घर याद आ रहा था. बड़ा और खूबसूरत न सही. मगर हम वहां आजादी तो थी.

मैं अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी करवटें बदल रही थी. अंकल आंटी ने मेरे और आशीष दोनों के ही कमरों में हमारी पसंद के हिसाब से इंटीरियर कराया था. आशीष के कमरे में डायनासॉर और बर्ड्स शेप के पिलो बेडशीट कवर्स और दीवारों पर वाइल्ड लाइफ पेंटिंग्स बनाई गई थी. मेरे रूम का कलर पूरी तरह पिंक था. कबर्ड में मेरे लिए जरूरत का सारा सामान था. साथ ही मेरी फेवरेट बुक्स के साथ कुछ डायरीज भी वहां मौजूद थी. ड्रेसिंग टेबल के पास जरूरी कॉस्मेटिक्स और एसेसरीज थी जो मैं हमेशा यूज करती थी. इतना सब कुछ तो मैंने अपने बारे में अंकल को बताया भी नहीं था. अचानक मेरे रूम का दरवाजा हिला और मैंने देखा वहां कोई खड़ा है.

"कौन है वहां? आशु?"

आशीष - दी मुझे अपने रूम में अकेले डर लग रहा है. आप प्लीज मेरे साथ आकर सो जाओ न.

उसने दरवाजे पर खड़े खड़े ही जवाब दिया.

"आशु यहीं आ जाओ न मेरे पास.."

मगर मेरी बात पूरी होने से पहले ही वो पलट कर जा चुका था. हमेशा की तरह आज भी लाइट नहीं थी. बाहर अंधेरा था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था. मैं फुर्ती से बाहर की तरफ बढ़ी.

"आशु...कहाँ हो तुम? "

मैंने देखा वो अपने कमरे के अपोजिट डायरेक्शन में चला जा रहा था. आगे चलकर गलियारा खत्म होकर सीढियां शुरू हो रही थी. मैंने 2..3 बार आशीष को आवाज दी मगर वो मेरी आवाज जैसे सुन ही नहीं पा रहा था. शायद वो नींद में चल रहा था. इससे पहले की वो सीढ़ियों तक पहुंचता मैंने फुर्ती से आगे बढ़कर उसे पकड़ लिया. मुझे उसका चेहरा भी क्लियर नही दिख रहा था जिससे पता चल सके कि उसकी आंखें खुली हैं या बंद. सो मैंने डिसाइड किया कि जो भी हो उसे अपने साथ अपने ही रूम में सुला देती हूँ. वैसे भी उसे रात को अकेले सोने की आदत नहीं थी.

"आशु तुम्हारे हाथ इतने ठंडे क्यों हैं? " उसका हाथ पकड़ते ही मैंने चौंकते हुए पूछा. मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया न ही कोई हरकत की. तो मैंने उसे लगभग झकझोरते हुए पूछा,

"आशु तुम मेरी बात सुन भी रहे हो? क्या तुम नींद में चल रहे हो?"

आशीष - नहीं ... मुझे बदला चाहिए...

उसकी आवाज सुनकर मैंने घबरा कर उसका हाथ छोड़ दिया. ये मेरा भाई नहीं हो सकता. उसकी आवाज बेहद अजीब सी थी. मुझे लगा जैसे मैंने किसी बूढ़ी औरत की खड़खड़ाती हुई सी आवाज सुनी हो...या शायद दो औरतों की आवाज.

मैं घबराहट में दो कदम पीछे हटी. ठीक उसी समय अंधेरे में 2 आंखें चमक उठी. सुर्ख लाल सी ये सुलगती आंखें एकटक मुझे गुस्से से घूर रही थी. मेरी सोचने समझने की ताकत खत्म होती जा रही थी. मैं पीछे हटती रही और वो आंखें लगातार मेरी तरफ बढ़ती गई. जब वो मेरे बेहद करीब आ गयी तो मुझे लगने लगा अब मैं अपने होश खो दूंगी. घबराहट में मेरे मुंह से एक जोरदार चीख निकली. और मैं वहीं गिर गयी.

To be continued...