जीवन सूत्र 521 मन की एकाग्रता के अभ्यास
से ही होगा भावी पथ प्रशस्त
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।(12/9)।
इसका अर्थ है:- यदि तू मन को मुझ में अचल स्थापन करने के लिए समर्थ नहीं है तो हे अर्जुन, अभ्यास रूपी योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर। गीता में ईश्वर प्राप्ति के लिए ईश्वर के नाम और गुणों के श्रवण-कीर्तन,पठन-पाठन,श्वांस के द्वारा जप आदि को अभ्यास बताया गया है, जिससे ईश्वर की प्राप्ति होगी।
भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम अभ्यास शब्द को एक सूत्र के रूप में लेते हैं।
जीवन सूत्र 522 अपने मन को साधना पहले आवश्यक, मन को संकल्प युक्त करें
वास्तव में ईश्वर में मन लगाना हो या फिर अपने सांसारिक दायित्वों और कर्मों को करना हो, जब तक पहले हम मन को साधने का प्रयास नहीं करेंगे,तब तक न तो हम आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं,और न अपने जीवन में आवश्यक कर्मों को कर सकते हैं।समाज के लिए कुछ करने की बात तो बहुत बाद में आती है।
जीवन सूत्र 523 आलस्य का त्याग अनावश्यक
चाहे हम कोई भी कार्य सही तरह से करना चाहें, पहले अभ्यास तो आवश्यक है ही।अभ्यास के समय मोह का भी त्याग करना होता है।आलस्य का भी त्याग करना होता है। उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी को प्रातः उठकर ब्रह्म मुहूर्त में पढ़ाई करने के लिए बिस्तर त्यागने का अभ्यास आवश्यक है।एक डॉक्टर,वकील,इंजीनियर,अध्यापक,पत्रकार समेत विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर विशेषज्ञों के लिए अपने क्षेत्र में आने वाले नए ज्ञान और नई तकनीक से परिचित होना और उसका सतत अभ्यास करना आवश्यक है।एक उदाहरण क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर का ही लेते हैं।कहा जाता है कि आस्ट्रेलिया के महान स्पिन गेंदबाज शेन वार्न का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से क्रिकेट श्रृंखला शुरू होने के पहले उन्होंने 22 गज की पिच के बदले लगभग 18-20 गज पर ही स्टंप लगवा कर स्पिन गेंदबाजी को खेलने का कई दिनों तक कड़ा अभ्यास किया था।अपने खेल को उन्होंने अपनी पूजा माना था।अपने अभ्यास से उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा का सही उपयोग किया। क्रिकेट इतिहास का महानतम बल्लेबाज होने के बाद भी उन्होंने खेल के प्रति अपने पेशेवर रुख से कभी आलस्य और लापरवाही नहीं बरती।
जीवन सूत्र 524 सफल होने के लिए अनुशासन और समय का प्रबंधन दोनों आवश्यक
एक संगीतकार एक सफल धुन तैयार करने के लिए कई दिनों और कभी-कभी कई महीनों तक साधना करते हैं और तब कार्य में पूर्णता प्राप्त होती है।शायद अभ्यास छोड़ देने का मतलब है स्वयं को खो देना। मुझे तो यह भी स्मरण हो रहा है कि विश्वकप क्रिकेट के एक महत्वपूर्ण मुकाबले में अपने पिता की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अगले मैच को खेला और उसमें शतक लगाकर इसे उन्होंने अपने पिता के नाम समर्पित किया था।
जीवन सूत्र 525 लक्ष्य के प्रति समर्पण सफलता की कुंजी
कार्य के प्रति इस तरह का समर्पण कठिन तो होता है और कभी-कभी अव्यावहारिक भी होता है,लेकिन समाज को कुछ देने की योग्यता प्राप्त करने के लिए जरूरी होता है-आलस्य त्यागकर अभ्यास।मोह माया त्याग कर अभ्यास।स्वयं को भटकाने वाले मनोभावों पर इस सीमा तक नियंत्रण का अभ्यास कि मध्यम क्रम पर बल्लेबाजी के लिए बुलाए जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने सन 1994 में एक दिन आगे बढ़कर टीम प्रबंधन से स्वयं कहा -मैं ओपनिंग करना चाहता हूं ।मुझे अवसर दें और अगर इसमें सफल नहीं हो पाया तो इसके लिए दोबारा कभी नहीं कहूंगा।
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय