गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 165 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 165

जीवन सूत्र 506 छूटना कर्म के मोह बंधनों से


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-


शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।


संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।(9/28)।

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं - इस प्रकार जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यास योग से युक्त चित्त वाला तू शुभ अशुभ फल रूप कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा।


जीवन सूत्र 507 समस्त कर्म ईश्वर अर्पित करें


वास्तव में संन्यास का वास्तविक अर्थ कर्मों में कर्तापन के अभाव और फलों में आसक्ति के अभाव से होना चाहिए। ऐसा करना सहज नहीं है इसलिए हमें अपने सभी कर्मों को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए।


जीवन सूत्र 508 गृहस्थ भी कर सकते हैं चित्त शुद्धि

गृहस्थ धर्म का त्याग करने वाले संन्यासी और योगी तो उच्च कोटि के होते ही हैं, सामान्य मनुष्य भी इस तरह क्रमशः सहज कर्मों के अभ्यास के द्वारा चित्त की शुद्धि को प्राप्त कर सकता है। इसका एक और सरल उपाय अपने दैनिक कार्यों को करते हुए भी सदा परमात्मा का स्मरण बनाए रखना है। यह न सिर्फ हमें आलस्य, प्रमाद, अनावश्यक चिंतन और बुरे कर्मों से सचेत कर पहले ही बचाव का अवसर देता है, बल्कि सकारात्मक कार्यों को करने और हमेशा सकारात्मक चिंतन की प्रेरणा भी देता है।

अपने समस्त कर्मों को भगवान को अर्पित कर देने के एक श्रेष्ठ उदाहरण महापुरुष व देवतुल्य श्री रामकृष्ण परमहंस जी भी हैं। उनका कहना था कि उनका जीवन मां काली को समर्पित है और उनका चलना फिरना मां काली की प्रदक्षिणा होती थी। कुछ बोलना उनकी स्तुति होती थी और एक तरह से उनकी सभी क्रियाएं मां काली की पूजा के निमित्त होने वाली प्रक्रियाएं मात्र होती थीं। साधारण मानव के रूप में हम अपनी-अपनी आस्था और उपासना पद्धति के अनुसार पहला कदम तो बढ़ा ही सकते हैं।


डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय