जीवन सूत्र 496 पिछले अच्छे काम दिलाते हैं जीवन में बढ़त
ईश्वर के साधना पथ पर चलने से साधक की पिछली उपलब्धियां व्यर्थ नहीं जातीं।
अर्जुन यह जानकर प्रसन्न हुए कि एक जन्म की साधना अगर अपनी पूर्णता को प्राप्त न हो सके तो जन्मांतर में भी जारी रहती है। वर्तमान देह के समापन के बाद आत्मा एक नई यात्रा शुरू करती है और केवल आत्मा ही नहीं सूक्ष्म शरीर भी अपने संचित संस्कारों के साथ आगे बढ़ता है और मोक्ष मिलने तक यह आत्मा इस सूक्ष्म शरीर के संस्कारों के साथ अनेक जन्म धारण करती है। लाक्षागृह अग्निकांड के बाद जब पांडव वन में यहां-वहां भटक रहे थे और उन्हें अपनी पहचान छिपाकर रहना पड़ रहा था तो जीवन में अनेक भीषण कष्टों का सामना होने के कारण पांडव कुमारो का धैर्य कभी-कभी जवाब दे देता था।
जीवन सूत्र 497 जीवन की परीक्षाओं से विचलित ना हों
दुर्योधन और महाराज धृतराष्ट्र के अन्य पुत्रों के प्रति भीमसेन क्रोध से भर उठते थे।ऐसे में माता कुंती उन्हें समझाया करती थी कि जीवन में पग -पग पर ली जा रही तुम्हारी परीक्षा वास्तव में तुम्हें एक श्रेष्ठ मानव के रूप में विकसित होने का दुर्लभ अवसर है। इस पर अर्जुन मां से पूछते थे।हमें इतने कष्ट मिल रहे हैं और ऐसे में इन श्रेष्ठ संस्कारों को लेकर हम क्या करेंगे?
जीवन सूत्र 498 स्वयं को जानने का अवसर न खो दें
इस पर माता कुंती ने समझाया था, अगर कड़ी परीक्षा से न गुजरना पड़े तो वह परीक्षा किस काम की अर्जुन? तुम राजकुमार हो लेकिन साधारण जनता अपने जीवन में किन कष्टों का सामना करती है, यह तुम्हें जानने का अवसर मिल रहा है। यह भविष्य में तुम्हारे लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
अर्जुन माता कुंती के वचनों और श्री कृष्ण के थोड़ी देर पहले गए कथन में कोई साम्य ढूंढने का प्रयत्न करने लगे कि योग मार्ग पर चलने वाला साधक अगर उदासीन भी हो जाए तो उसकी अब तक की गई साधना व्यर्थ नहीं जाती है।
जीवन सूत्र 499 अच्छे कार्यों के फल का काल की सीमा से परे स्थानांतरण
अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के मन की बात जान लेते हैं। श्री कृष्ण पूर्व जन्म के संचित संस्कारों को वर्तमान जन्म में प्राप्त करने पर आगे प्रकाश डाल रहे हैं।
श्री कृष्ण: अर्जुन!मैंने तुमसे सम बुद्धिरूप योग की चर्चा की।पूर्व जन्म की यह संतुलनावस्था संचित संस्कारों के साथ वर्तमान जन्म में अनायास प्राप्त हो जाती है।इससे योग के मार्ग पर चलते हुए परमात्मा को प्राप्त करने का भावी श्रेष्ठ प्रयत्न करना सरल हो जाता है।
जीवन सूत्र 500 वर्तमान मानव देह पूर्व जन्म के अच्छे कार्यों का प्रतिफल
अर्जुन: तो इसका अर्थ यह है कि इस जन्म में साधक को अधिक प्रयत्न नहीं करने पड़ेंगे?
श्री कृष्ण: साधना के उच्च स्तर को तो बनाए रखना ही होगा अर्जुन।साथ ही अपने प्रयत्नों में और श्रेष्ठता तथा तीव्रता लानी होगी।
आज का प्रसंग गीता के श्री कृष्ण के इस श्लोक पर आधारित है:-
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन।(6/43)।
( आगामी जन्म में) उस जन्म के पूर्व पहले शरीर में संग्रह किए हुए बुद्धि संयोग को अर्थात समबुद्धि रूप योग के संस्कारों को मनुष्य अनायास ही प्राप्त कर लेता है। हे कुरुनंदन! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्धि के लिए पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय