जीवन सूत्र 426 ध्यान से समाधान
महर्षि पतंजलि ने कहा है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।वहीं कपिल मुनि के अनुसार मन के निर्विषय होने का नाम ध्यान है-ध्यान निर्विषयं मन:। सचमुच मन को विषय से रहित करना बड़ा कठिन काम है। गीता के अध्याय 6 के श्लोक 11 और 12 में भगवान कृष्ण ने ध्यान की विधि बताई है-
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः |
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ।।11।।
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः |
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ।।12।।
अर्थात योग के अभ्यास के लिए योगी एकान्त स्थान में जाए।भूमि पर कुशा बिछा दे और फिर उसे मृगछाला से ढँके। ऊपर से मुलायम वस्त्र बिछा दे। आसन न तो बहुत ऊँचा हो, न बहुत नीचा। यह पवित्र स्थान में स्थित हो।
जीवन सूत्र 427 आसन पर दृढ़तापूर्वक बैठें
।
योगी इस पर दृढ़तापूर्वक बैठ जाए।अब चित्त तथा इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में करते हुए,मन को एक बिन्दु पर स्थित(एकाग्र) करके हृदय की शुद्धि के लिए योगाभ्यास करे |
जीवन सूत्र 428 योग जोड़ता है
योग के बारे में कहा गया है- "युज्यते असौ योग:” अर्थात जो युक्त करे अर्थात् जोड़े वह योग है। वैसे तो योग का अंततोगत्वा लक्ष्य परमात्मा से ही स्वयं को जोड़ना है।
जीवन सूत्र 429 प्रारंभ में कम समय भी पर्याप्त है
अभी हम शुरुआत स्वयं से स्वयं को जोड़ने की करें और इसके लिए दिन भर में केवल 2 मिनट चुपचाप शांत चित्त होकर बैठने का अभ्यास करें।
जीवन सूत्र 430 आधुनिक समस्याओं का हल योग
ध्यान की शुरुआत यहीं से होती है। आधुनिक जीवन शैली के सभी तनावों,विक्षोभों,विचलनों व अशांति के निदान की सबसे बड़ी औषधि ध्यान ही है। कम से कम हम एक सिरे से इसकी शुरुआत तो करें।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपल अभ्यास अभ्यासब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय
प्रस्तुत श्रृंखला गीता के श्लोकों के उपयोगी अर्थ ढूंढने का एक प्रयास है