गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 140 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 140


जीवन सूत्र 396 परमात्मा को समर्पित व्यक्ति के कार्यों का विस्तार पूरी मानवता तक



भगवान श्री कृष्ण और जिज्ञासु अर्जुन की चर्चा जारी है।

जो केवल परमात्मा में ज्ञान रखने वाला है,वह योगी ब्रह्मरूप बनकर परम मोक्ष को प्राप्त होता है।

(24 वें श्लोक के बाद आगे का वार्तालाप)

परमात्मा को समर्पित व्यक्तियों के ध्येय,कर्म,गति और चिंतन सभी में परमात्मा होते हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं तक सीमित नहीं रह सकता है।वह अपने कार्यों का विस्तार मानवता के कल्याण हेतु करता है। इसे और स्पष्ट करते हुए भगवान श्री कृष्ण महायोद्धा अर्जुन से कहते हैं: -

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।

छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः।।5/25।।

हे अर्जुन!(जिनका शरीर मन-बुद्धि-इन्द्रियों सहित वशमें है) जिनके संपूर्ण कल्मष (दोष) नष्ट हो गए हैं,जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में मग्न हैं, जिनके सम्पूर्ण संशय मिट गए हैं,वे विवेकी मनुष्य परमात्मा में ध्यान लगाने वाले साधक निर्वाण ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।


जीवन सूत्र 397 तत्वज्ञान के बाद और कुछ पाना शेष नहीं



तत्व ज्ञान प्राप्त करने के बाद साधक मुझे और कुछ पाना शेष नहीं है,ऐसा जान लेने के बाद भी अपना कर्म नहीं छोड़ता।वह लोक कल्याण के दायित्वों से स्वयं को जोड़ता है। जनमानस को संस्कारित करना उसका काम होता है।समाज में सद्गुणों के प्रचार प्रसार के लिए वह स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करता है।


जीवन सूत्र 398 लोभ वाली संग्रहवृत्ति का त्याग करें


संग्रह वृत्ति का परित्याग करने के बाद ऐसा व्यक्ति न्यूनतम आवश्यकताओं पर निर्भर रहते हुए अपना समूचा जीवन ईश्वर की आराधना और उनसे प्राप्त प्रेरणा के आधार पर लोक कल्याण के कार्यो के लिए सुरक्षित रखता है। लोक कल्याण का कार्य कोई घाटे या फायदे का सौदा नहीं है कि वह इसको ध्यान में रखकर कार्य शुरू करे। उसे यह अपेक्षा भी नहीं रहती कि जब वह ज्ञान चर्चा शुरू करे या कहीं सार्वजनिक जीवन में कोई कार्य हाथ में ले तो उसकी सहायता के लिए और लोग सामने आए तथा उसकी बातों को गंभीरता से सुने।


जीवन सूत्र 399 अध्यात्म पथ की अगली कसौटी जन पथ



अध्यात्म पथ की अगली कसौटी जन पथ ही है। जनकल्याण के लिए संकल्प लेने वाला व्यक्ति पहले यह सुनिश्चित हो जाता है कि अब स्वयं उसका कुछ बाकी नहीं है।वह अनेक गृहस्थ साधकों की तरह अपने कार्यों में इतने प्रतिशत सेवाकार्य,इतने प्रतिशत संग्रह आदि के सांसारिक गणित के आधार पर कार्य नहीं करता।वह शुभ संकल्प लेकर संपूर्ण समर्पण के साथ कार्य शुरू करता है।


जीवन सूत्र 400 स्वयं की क्षमताओं का मूल्यांकन कर कोई कार्य हाथ में लें


स्वयं की क्षमताओं का मूल्यांकन करता है। वह लोगों के लिए आवश्यकता के अनुरूप जीवन उपयोगी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके आत्मिक कल्याण के लिए भी प्रेरक का कार्य करता है।वह अपने संपर्क में आने वाले लोगों के भीतर ज्ञान और चेतना की वह अंतः धारा प्रवाहित कर देता है,जो प्रत्येक व्यक्ति की आत्मिक उन्नति के मार्ग में सहायक सिद्ध होता है। ऐसा व्यक्ति अपना अनुयायी तैयार करने के स्थान पर ईश्वर को समर्पित मानवता के कल्याण का कार्य करने वाले स्वयंसेवक तैयार करता है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण लोकहित की ओर संकेत करते हुए अर्जुन को यह समझाना चाह रहे हैं कि व्यक्ति जब सार्वजनिक जीवन में होता है तो उसका कोई निर्णय स्वयं को ध्यान में रखकर नहीं होता बल्कि पूरी समष्टि के हित को देखकर होता है।


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय