गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 139 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

श्रेणी
शेयर करे

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 139


जीवन सूत्र 386 आवेंगों को सह जाने वाला योगी


भगवान श्री कृष्ण और जिज्ञासु अर्जुन की चर्चा जारी है।

इस मनुष्य-शरीर में जो कोई (मनुष्य) शरीर के समापन से पहले ही काम और क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ होता है,वह मनुष्य योगी है और वही सुखी है।

(23 वें श्लोक के बाद आगे का वार्तालाप)



जीवन सूत्र 392 परमात्मा सर्वोत्तम मित्र


सुख प्राप्ति के लिए यहां-वहां भटकने के स्थान पर आत्ममुखी होने और अपनी आत्मा में विराजमान उस परम आत्मा की प्रकृति को अनुभूत करने और उसके आनंद में डूबने का निर्देश देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं: -

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।

स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।5/24।।

इसका अर्थ है,जो मनुष्य केवल परमात्मा में सुखवाला है और केवल परमात्मा में रमण करनेवाला है तथा जो केवल परमात्मा में ज्ञान रखने वाला है,वह योगी ब्रह्मरूप बनकर परम मोक्ष को प्राप्त होता है।


जीवन सूत्र 393 आनंद का रहस्य हमारे भीतर है


योग की ओर प्रवृत्त होने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अपने काम और क्रोधजन्य सभी आवेगों को जीतते जाने में सक्षम बनता है।उसे इस बात का ज्ञान होता है कि आनंद का रहस्य स्वयं उसके भीतर है।


जीवन सूत्र 394 परमात्मा का ज्ञान केवल एक विश्वास से ,जिसका फल अनंत

हम अपना सुख बाह्य साधनों के बदले परमात्मा में देखें।संसार में यहां-वहां भ्रमण की स्थिति बनने पर भी हम मन में यह भाव रखें कि परमात्मा तत्व में ही विचरण कर रहे हैं और उसकी बनाई यह सृष्टि कितनी विविधताओं से परिपूर्ण है। हम केवल परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करें।ऐसे कार्य करने के पीछे कारण यह है कि यही सच्चा ज्ञान है।


जीवन सूत्र 395 परमात्मा के श्री चरणों में स्थान पाने की पात्रता


ऐसा व्यक्ति उस परमात्मा तत्व के चरणों में स्थान प्राप्त करने का अधिकारी बनकर मोक्ष की भी पात्रता अनायास प्राप्त कर लेता है।

आज की ज्ञान चर्चा में इस श्लोक का प्रसंग आने पर विवेक ने आचार्य सत्यव्रत से पूछा:-

विवेक: गुरुदेव आपकी इस विवेचना का तो यह अर्थ हुआ कि देश और दुनिया की सारी दौड़ केवल उस परमात्मा तत्व तक ही सिमट कर रह जाए अर्थात अगर कुछ करना हो तो परमात्मा के लिए,अगर ज्ञान प्राप्त करना हो तो वह भी परमात्मा का करें,ऐसे में यह दुनिया कैसे आगे बढ़ेगी और विकास कैसे होगा?ज्ञान - विज्ञान की नई संकल्पनाएं अपना रूप कैसे ग्रहण करेंगी?

आचार्य सत्यव्रत: ज्ञान- विज्ञान और ईश्वर की संकल्पना एक दूसरे की विरोधी नहीं है विवेक। ज्ञान और विज्ञान के ये रास्ते भी अंततः सत्य के मार्गों की ही खोज करते हैं,और इन मार्गों में कल्याण भाव सर्वोपरि रखने पर अंततः एक दिन परम सत्य को प्राप्त कर उसी ईश्वर तक पहुंचा जाता है। स्वयं कोई काम-धाम छोड़कर केवल भक्ति करने के लिए तो ईश्वर भी नहीं कहते अन्यथा स्वयं श्री कृष्ण अर्जुन से शस्त्र उठाकर युद्ध करने के बदले रथ में बैठ चुके अर्जुन से केवल भक्ति भाव में डूब जाने के लिए कहते। ईश्वर के ध्यान में डूबना कर्मों को गति और त्वरण प्रदान करने में सहायक है,किसी के वर्तमान कार्य की गति को रोकने और उसे आलसी तथा भाग्यवादी बनाने के लिए नहीं है।

विवेक: अच्छा,इसका अर्थ यह है गुरुदेव कि परमात्मा के स्वरूप को जानना अगर ज्ञान है तो उसका एक मार्ग पूरे मनोयोग से ईश्वर का काम समझकर श्रद्धापूर्वक कर्म करते हुए हर क्षण उस परमात्मा तत्व का स्मरण रखना भी है, जो कोई कार्य करते हुए भी उस महाआनंद तत्व के संपर्क में हमें रखता है।


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय