जीवन सूत्र 312 अच्छे कर्म करें फिर बुरे कर्म का त्याग हो जाएगा आवश्यक
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है: -
संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति।5/6।
इसका अर्थ है,परन्तु हे महाबाहो!कर्मयोग के बिना संन्यास सिद्ध होना कठिन है।भगवान की प्रार्थना और भक्ति में मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही परब्रह्म परमात्मा के आशीर्वाद और कृपा को प्राप्त हो जाता है।
कर्म योग की महत्ता प्रतिपादित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म किए बिना उन कर्मों के त्याग का प्रश्न ही नहीं है,जो मानव के आध्यात्मिक मार्ग में बाधक हैं।योगी की असली परीक्षा जीवन के पथरीले और कंटकपूर्ण पथ पर है,जहां कदम-कदम पर बाधाएं, नकार,विरोध और असहमति है।
जीवन सूत्र 313 स्थितप्रज्ञ की असली परीक्षा संसार में
हमारे धैर्य, हमारी सहनशीलता और हमारी स्थितप्रज्ञता की असली परीक्षा भी संसार में रहकर ही संभव है। जब तक चीजें हमारे अनुकूल होती रहती हैं और हमारा काम तय योजना के अनुसार होता है,हम शांत बने रहते हैं और जहां हमारे पूर्व नियोजित कार्य में विघ्न पड़ा और स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर होती गई,तो हम आपा खो बैठते हैं।हमारे धैर्य की परीक्षा तो वहां है,जहां एक भीड़ भरे रास्ते से होकर हम गुजर रहे हैं और उस आपाधापी के वातावरण में भी शांतचित्त बने रह सकते हैं।वर्तमान दौर में अनेक मनुष्य इतने अधीर हैं कि रास्ते में अगर उनकी गाड़ी आमने- सामने खड़ी हो गई तो गाड़ी कौन पीछे हटाए या कौन एक तरफ करे,इसको लेकर विवाद हो जाता है।हमारे क्रोध,हमारी ईर्ष्या,हमारी असहनशीलता पर विजय स्वयं को जीत लेने के समान है।
जीवन सूत्र 314 जीवन निरंतर एक युद्ध
इसलिए जीवन पथ पर हर कदम पर एक निरंतर युद्ध है।अपने आप से युद्ध है।अगर इस कर्मक्षेत्र को छोड़कर दूर जाने का रास्ता अपना लें और केवल किसी संभाव्य टकराहट या असुविधा की स्थिति से बचने के लिए अनिवार्य कर्मों से भी संन्यास लेने के बारे में सोचें तो यह कायरता और पलायन है।
जीवन सूत्र 315 संसार एक बड़ी साधना स्थली
दूसरी ओर जो संन्यासी और तपस्वी है उन्होंने भी जनजीवन के बीच रहकर कर्मक्षेत्र में कड़ी परीक्षा दी होती है, तब वहां से कोई विशेष लक्ष्य लेकर विशेष साधना के लिए एकांतवास में जाते हैं।अन्यथा यह संपूर्ण संसार ही तपोभूमि है।इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने पुनः यह आश्वासन दिया है कि भगवान की भक्ति और आराधना में समर्पित कर्मयोगी उनके आशीर्वाद और कृपा को जल्द ही प्राप्त कर लेता है।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय