गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 115 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 115


जीवन सूत्र 271 श्रद्धा जाग्रत करना भी एक साधना


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है:-

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4/39।।

इसका अर्थ है,जो (ईश्वर में) श्रद्धा रखने वाला मनुष्य जितेन्द्रिय तथा (कर्मों में) तत्पर है,वह ज्ञानको प्राप्त होता है और ज्ञान को प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है।

हमारे मन में श्रद्धा का उत्पन्न होना अत्यंत कठिन है।मन तार्किक है वह अनेक बातों को ठोक बजाकर परख लेना चाहता है।उसके बाद ही मन में श्रद्धा उत्पन्न होती है।आज के युग में बहुत कम ऐसा अवसर आता है जब कोई कसौटी पर पूरी तरह खरा उतर जाए ऐसे में मन में कई बार अश्रद्धा के भाव आते ही हैं।श्रद्धा खंडित होती है।कई ढोंगी ज्ञानियों और धर्मगुरु के पाखंड को देखकर कभी मनुष्य इतना निराश हो जाता है कि उसे धर्म से ही विरक्ति होने लगती है।

ऋग्वेद में कहा गया है -श्रद्धे श्रद्धापयेह न:।

(हे श्रद्धा! हमें इस जगत में या कार्य में श्रद्धावान बना।)



जीवन सूत्र 272 कभी-कभी बुद्धि से अधिक कारगर होती है श्रद्धा


अगर मनुष्य अपने कर्मों में श्रद्धा नहीं रखे तो वह भली-भांति उसे संपन्न नहीं कर पाएगा। उसे अपने निश्चय के प्रति श्रद्धा है तो वह रास्ते में आने वाली कठिनाइयों और परेशानियों से नहीं डिगेगा। महात्मा गांधी के अनुसार जहां बड़े बड़े बुद्धिमानों की बुद्धि काम नहीं करती,वहां एक श्रद्धालु की श्रद्धा काम कर जाती है।….. जहां श्रद्धा है वहां पराजय नहीं……।

भगवान कृष्ण ने जिस परम ज्ञान की चर्चा की है,इसके लिए उन्होंने श्रद्धा,श्रम और संतुलन को आवश्यक बताया है। केवल श्रद्धा रखने से काम नहीं चलेगा।


जीवन सूत्र 273 श्रद्धा और उद्यम दोनों आवश्यक


साथ-साथ अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उद्यम करना होगा। परिश्रम करना होगा। हमने बस सोच लिया कि यह कार्य करना है।यह अच्छा कार्य है लेकिन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो ज्ञान कैसे प्राप्त होगा?


जीवन सूत्र 274 ज्ञान प्राप्ति के लिए जितेंद्रिय होना आवश्यक

ज्ञान प्राप्ति के लिए जितेंद्रिय होना बहुत आवश्यक है।इंद्रियों को नियंत्रित रखना तो कठिन है लेकिन निरंतर अभ्यास से यह सरल हो सकता है।जहां इंद्रियों के लुभावने विषय मन के सामने उपस्थित हुए और बुद्धि उसके समर्थन में तर्क लगाने लगे तो विवेक का प्रयोग कर भावी दुष्परिणामों की अगर हम कल्पना कर लें तो इंद्रियों के पीछे भागने वाला व्यवहार एक बड़ी सीमा तक नियंत्रित हो जाएगा।


जीवन सूत्र 275 भोग में आनंद ढूंढना गलत


अभी आनंद लें बाद का देखा जाएगा,इस दृष्टिकोण के बदले अगर यह कल्पना कर ली जाए कि बाद में करने के लायक कुछ शेष ही नहीं रहेगा,तो मनुष्य का मन सावधान हो सकता है।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय