गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 107 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 107


जीवन सूत्र 241 संपूर्ण कर्म ईश्वर के स्वरूप ज्ञान को प्राप्त करने में सहायक


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है: -

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।

सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।4/33।

इसका अर्थ है,हे परन्तप अर्जुन ! द्रव्यों से सम्पन्न होने वाले यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। हे पार्थ !सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त होते हैं(ज्ञान का बोध उनका उत्कर्ष बिंदु है)।


जीवन सूत्र 242 मार्ग अनेक लेकिन एक दृढ़ निश्चय ईश्वर के पथ में

मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं और साधनों की प्राप्ति के लिए द्रव्य यज्ञ करता है। अनेक तरह की पूजा उपासना पद्धति,अनुष्ठान आदि का सहारा लेता है।श्री कृष्ण अर्जुन के सामने उनके संशय और भ्रम के निवारण के लिए अनेक तरह के विचारों को रखते हैं और मार्ग बताते हैं।


जीवन सूत्र 243 कर्म पथ पर अनेक सुझाव और सलाह मिलेंगे


अब जिस मार्ग पर चलना सुगम हो। कहा भी गया है-

मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः।

अर्थात जितने मनुष्य हैं,उतने ही विचार हैं।जिस तरह अलग-अलग कुएं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है।



जीवन सूत्र 244 स्वयं पर रखें भरोसा

श्रेष्ठ यही है कि मनुष्य अपने अनुसार आचरण करे और लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करे। किसी व्यक्ति को अपने मत का पालन करने के लिए रोक टोक व मनाही नहीं होना चाहिए और न ही यह कहा जाना सही रहेगा कि इसी एक मत और पद्धति के अनुसार चलने से कल्याण होगा।बस ध्यान यही होना चाहिए कि यह पूरी तरह सात्विक हो और किसी तरह के क्षोभ, विचलन, असंतोष और ईर्ष्या से युक्त ना हो।संत कबीर जैसे विचारकों ने बार-बार इस बात पर बल दिया है कि उपासना पद्धति में केवल बाहरी आचरण और विधियों पर ध्यान केंद्रित करने से यह केवल दिखावा बनकर रह जाता है।


जीवन सूत्र 245 सभी खोजों की पूर्णता ईश्वर की प्राप्ति में

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने का प्रयास किया है कि भौतिक वस्तुओं के उपयोग और समर्पण से किए जाने वाले द्रव्य यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है। आखिर मनुष्य के सारे कर्मों की पूर्णता पर जो एक गहरा संतोष होता है और जिस आनंद की अनुभूति का बोध होता है,वह उस परमसत्ता के अभिमुख करने वाला होता है,और यही ज्ञान है। सभी खोजें यहीं आकर पूर्णता को प्राप्त होती हैं।




(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय