जीवन सूत्र 136 ईश्वर को तत्व से जाने वाले का फिर जन्म नहीं होता
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है-
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4/9।।
इसका अर्थ है,हे अर्जुन ! मेरा जन्म और कर्म दिव्य है,इस प्रकार जो पुरुष मुझे तत्त्व से जानता है,वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता;वह मुझे(ईश्वर को) ही प्राप्त होता है।
गीता प्रेस के इस श्लोक के कूटपद के अनुसार ईश्वर को तत्व से जानने का अर्थ है- सर्वशक्तिमान सच्चिदानंदघन परमात्मा अविनाशी और सर्व भूतों के परम गति तथा परम आश्रय हैं।वे केवल धर्म की स्थापना करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योग माया से सगुण रूप होकर प्रकट होते हैं, इसलिए ईश्वर के समान सुहृद प्रेमी और पतित पावन दूसरा कोई नहीं है।
जीवन सूत्र 137 आसक्ति रहित व्यवहार और ईश्वर का निरंतर चिंतन उन्हें जानने में सहायक
ऐसा समझकर जो पुरुष परमेश्वर का अनन्य प्रेम से निरंतर चिंतन करता हुआ आसक्ति रहित इस संसार में बरतता है,वही उनको तत्व से जानता है।
जीवन सूत्र 138 ईश्वर सृष्टि के आदि, कारण, विस्तार सभी
वास्तव में ईश्वर को जानने का अर्थ है उस ज्ञान को जान लेना जो इस सृष्टि के मूल में है, जिसे सृष्टि का कारण,विस्तार,परिणाम सभी कहा जा सकता है।उस ईश्वर तत्व को जानने की जिज्ञासा मनुष्य में शुरू से रहती आई है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने धन और भौतिकवाद के बदले मंत्रों और ऋचाओं की रचना शुरू की।इसके लिए उन्होंने वनों,नदियों के तट पर और अन्य प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थानों पर जाकर उस ईश्वर तत्व की अनुभूति करने का प्रयत्न किया।वैदिक मंत्रों में इसीलिए प्रकृति का इतना दिव्य और ईश्वरीय वर्णन हुआ है। उपनिषदों में दर्शन का गूढ़ रहस्य है,जिसमें विभिन्न ऋषि मुनियों की ज्ञान प्राप्ति की खोज और उनके मन में उमड़ने - घुमड़ने वाले प्रश्नों के सटीक समाधान का विश्लेषण है। भगवान राम द्वारा समय-समय पर लक्ष्मण जी और अन्य लोगों को दिए गए ज्ञान में भी उच्च कोटि का चिंतन और जीवन दर्शन समाहित है। भगवान कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में कहे गए गीता के उपदेश को तो जीवन कौशल की सर्वोत्तम मीमांसा माना जाता है। महान सिद्धार्थ ने इसीलिए अपना राजमहल छोड़ा और ज्ञान प्राप्ति के बाद वे बुद्ध बने और दुनिया को उन्होंने जीवन जीने का वह मार्ग सिखाया जो बिना किसी टकराहट और कड़वाहट के मानव जीवन को सफलता और आंतरिक प्रसन्नता से भर देता है।
जीवन सूत्र 139 ईश्वर को जान एमना अर्थात सभी कामनाओं से मुक्त हो जाना
ईश्वर को ज्ञान रूप में जान लेने का अर्थ सभी तरह की कामनाओं से मुक्त हो जाना है और ऐसा व्यक्ति आत्म साक्षात्कार के बाद इस जीवन के पार जीवात्मा के रूप में पुनः जन्म ग्रहण करने के चक्र से मुक्त हो जाता है क्योंकि उसकी आत्मा परमपिता की दिव्य आत्मा में समाहित हो जाती है।कुल मिलाकर ईश्वर को जान लेने के प्रयास का अर्थ है स्वयं को अपनी आत्मा की दिव्यता के साथ जान लेना और फिर इस मानव जीवन के उद्धार और ईश्वर की ओर अभिमुख होने का प्रयत्न।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय