गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 84 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 84

जीवन सूत्र 124 वर्तमान मानव देह हेतु अपने पूर्व जन्मों को दें धन्यवाद


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।

कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति।।4/4।।

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4/5।।

अर्जुन ने कहा -आपका जन्म तो अभी का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है;अतः आपने ही सृष्टि के प्रारंभ में सूर्यसे यह योग कहा था,इस बात को मैं कैसे समझूँ?

श्री भगवान ने कहा-हे परन्तप अर्जुन! मेरे और तुम्हारे बहुत-से जन्म हो चुके हैं।उन सबको मैं जानता हूँ,पर तू नहीं जानता।

पहले श्लोक में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से यह स्वाभाविक जिज्ञासा प्रकट करते हैं कि वर्तमान युग के श्री कृष्ण किस तरह सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य को योग का ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।गीता के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की हर जिज्ञासा का विस्तारपूर्वक समाधान किया है।एक संपूर्ण ज्ञान युक्त व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम्हारे और मेरे, दोनों के कई जन्म हो चुके हैं ;जिसे तुम नहीं जानते हो और मैं जानता हूं।


जीवन सूत्र 125 ज्ञान के मूल में स्वयं ईश्वर

इन पंक्तियों से बहुत सी बातें स्पष्ट होती हैं। ज्ञान के मूल में स्वयं ईश्वर तत्व हैं। जो सृष्टि के प्रारंभ में ज्ञान के इच्छुक सुपात्र को वह ज्ञान प्रदान करते हैं।श्री कृष्ण स्वयं ईश्वर है और उन्हें कृष्ण अवतार वाले अपने इस जन्म में भी वह संपूर्ण ज्ञान है जो वे अर्जुन को प्रदान करने में सक्षम हैं और अर्जुन के प्रश्न करने पर उनका उत्तर देते जाते हैं। प्राणी के एक से अधिक जन्म होते हैं।


जीवन सूत्र 126 अपने अच्छे कर्मों का संचय करते रहें


वह अपने वर्तमान क्रियमाण कर्म या इस जन्म के अच्छे कर्मों से भी मोक्ष न मिलने की स्थिति में भावी जन्मों के लिए संचित कर्म या इस जन्म के प्रारंभ में ही उसके लिए पूर्व जन्म से ही निर्दिष्ट हो चुके प्रारब्ध कर्मों को करता जाता है। मोक्ष के बदले उसके बार-बार जन्म लेते रहने का कारण भी यही है कि वह अपनी अनंत इच्छाओं, कामनाओं और सुख भोग की प्रवृत्ति से जीवन के आखिरी क्षण तक भी निवृत्त नहीं हो पाता है।


जीवन सूत्र 127 आत्मा को रखें मुक्त, निष्कलंक



ऐसी आत्मा अपने मूल स्वरूप में मुक्त होते हुए भी पूर्व जन्म के संचित संस्कारों को लेकर आगे बढ़ती है। अर्जुन को पूर्व जन्मों की स्मृति नहीं है और श्रीकृष्ण को है।इसका अर्थ यह है कि श्री कृष्ण उस ईश्वरतत्व को धारण किए हुए हैं,अपने इस जन्म और विशिष्ट कार्यों को संपन्न करने के लिए अवतार लेने के बाद भी वे अर्जुन जैसे उन जिज्ञासु प्राणियों का मार्गदर्शन और कृपा करने के लिए तत्पर हैं जो अपने भीतर झांककर ज्ञान प्राप्त करने के लिए सच्चा प्रयास करना चाहते हैं।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय

(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय