गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 83 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 83

जीवन सूत्र 120 योग साधारण ज्ञान नहीं, एक रहस्य और साधना


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है,

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।

भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्।।4/3।।

इसका अर्थ है,हे अर्जुन!तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही पुरातन योग आज मैंने तुझसे कहा है; क्योंकि यह बड़ा उत्तम रहस्य है।

चौथे अध्याय के प्रारंभिक श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को योग विद्या के सृष्टि के प्रारंभ से होने की जानकारी दी जो, आगे बढ़ रही थी,लेकिन बीच में ही कहीं लुप्त हो गई थी। युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व मन में संशय और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने पर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस तरह निवेदन किया जैसे एक शिष्य अपने गुरु से मार्गदर्शन के लिए निवेदन करता है।श्री कृष्ण ने अर्जुन को सखा प्रेम प्रदान किया।वहीं अर्जुन के लिए भगवान श्री कृष्ण मार्गदर्शक, आराध्य, मित्र सभी की भूमिका निभाते रहे। भगवान कृष्ण से अपने मन के संदेह के निवारण के लिए अर्जुन ने उनसे कहा-शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्। अर्थात मैं आपका शिष्य हूं और मुझ शरण में आए हुए व्यक्ति को आप शिक्षा दीजिए।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने योग के रहस्य को उत्तम रहस्य कहा है और अर्जुन को अपना भक्त निरूपित करते हुए उस रहस्य को सार्वजनिक करने की बात कही।


जीवन सूत्र 121 योग सीखने के लिए गंभीरता और सर्वस्व समर्पण आवश्यक



यहां भगवान श्री कृष्ण गुरु की भूमिका में हैं और शिष्य के रूप में अर्जुन अपना सर्वस्व उन्हें समर्पित करते हुए मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं। यह सर्वस्व समर्पण, शिष्य भाव वीर अर्जुन में है।वे भावुक हैं,तो तार्किक भी हैं।


जीवन सूत्र 122 गुरु से कोई दुराव छिपाव ना रखें



गुरु और शिष्य का संबंध सभी संबंधों से इसलिए सर्वोपरि है क्योंकि गुरु और शिष्य के बीच ज्ञान प्राप्ति के समय कोई दुराव ,छिपाव शेष नहीं रहता।यही कारण है कि योग्य गुरु भगवान से भी बढ़कर होते हैं और महान संत कबीर ने बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय, कहा है।गुरु अपने शिष्य को वह सब प्रदान कर देना चाहते हैं जो उनके पास ज्ञान और विवेक के रूप में उपलब्ध है। वे अपने शिष्य के रूप में आने वाली पीढ़ियों तक इस ज्ञान को हस्तांतरित करते हैं। अर्जुन जैसे योग्य शिष्य और भक्त को पाकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उत्तम पात्र समझकर शिक्षा दी।


जीवन सूत्र 123 संवेदनशीलता को कायरता ना बनने दें


युद्ध छोड़कर चले जाने की इच्छा प्रकट करना अर्जुन की कायरता नहीं बल्कि संवेदनशीलता है।ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी धीर गंभीर वाणी में उन्हें समझाना शुरू किया। हम सब के जीवन में भी एक सच्चे मार्गदर्शक से मार्गदर्शन प्राप्त करने के क्षण आते हैं बशर्ते हममें उस मार्गदर्शक के प्रति श्रद्धा, विश्वास और सच्चे मन से लगाई गई पुकार हो।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय

(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय