स्कैच Yogesh Kanava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आसमान मे बादल उमड़ घुमड़ रहे थे और इधर नीलिमा के मन मे भी विचारों के बादल घटाएं बनकर छा रहे थे । अभी दो मिनट पहले अचानक ही किसी अनजान लड़की का फोन आया था । नीलिमा का नाम पूछकर कन्फर्म किया था उसने, फिर अपना परिचय दिया था ।

-मै लॉरेन्सिया बोल रही हूँ, आप डेविड को तो जानती ही है ना

-जी आप कौन है और किस डेविड की बात कर रही हैं ।

-नीलिमा जी मै उसी डेविड की बात कर रही हूँ जिसने आपको बीच सड़क से घर पहुँचाया था, आपको सलाह दी थी और --- और आपकी फेमिली लाइफ भी सैटल करवायी थी । हां वो कोई गुलज़ार हुसैन का भी जिक्र था ।

-कौन हो, सच बताओ और ये सब बातें कैसे जानती हो । ये सब तो केवल मै या डेविड ही जानते थे । अब डेविड तो इस दुनिया मे है नहीं फिर ये सब बातें ----?

-नीलिमा जी घबराइए मतम आपका कुछ भी बुरा नहीं करने वाली हूँ । मै तो आप तक आपकी पिछली कुछ यादें बता रही हूँ

-लेकिन हो कौन ये तो बताओ

-कहा ना लॉरेन्सिया बोल रही हूँ । मैं आज आपसे मिलना चाहती हूँ फिर आज ही वापस लौट जाऊँगी मैं । ये शहर मुझे रास नहीं आ रहा है । कब और कहां मिलोगी ।

-लेकिन

-लेकिन का समय नहीं है नीलिमा जी मैने कहा ना मैं आपका कोई बुरा नहीं करूंगी ।

-ओ.के. कोस्टा बीच रॉक नम्बर ट्वेल्व 4 ओ क्लॉक

-ओ.के.

और फिर फोन कट गया । वो सोचती रही ये कौन जो सब कुछ जानती है मेरे बारे में कहीं कोई डेविड की प्रेमिका या कोई फ्रेण्ड ना हो । लेकिन वो ये सब कैसे जान सकती है ये तो कोई अनहोनी सी है ---- कहीं डेविड की आत्मा तो नहीं है फिर दिल ने कहा - पागल है क्या कोई आत्मा भी फोन करती है क्या । उसने तुरन्त फोन उठाया और इसी नम्बर पर फिर से काल किया उधर से आवाज़ आई ।

-कोस्टा बीच रॉक नम्बर ट्वेल्व एंड फोर ओक्लॉक और फोन कट गया ।

नीलिमा अब वाकई परेशान हो गयी थी बाहर बादल गरज रहे थे और भीतर नीलिमा का दिल बस आशंकाओं से घिरा । बरसात होने लगी थी, कोस्टा बीच उसके घर से कोई एक-डेड़ किलोमीटर के करीब ही था लेकिन आज ये दूरी भी नीलिमा को हजारों किलोमीटर के जितनी दिख रही थी । उसने घड़ी देखी अभी दो बजे थे ठीक दो घण्ट बाद उसे पहुँचना था । कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, जाए या नहीं जाए । लेकिन जाना तो पड़ेगा उसको मेरे बारे में सब कुछ मालुम है यहां तक कि गुलज़ार हुसैन के बारे में भी, कहीं मुझे ब्लेकमेल तो नहीं करेगी ।

इस तरह के विचारों के बीच ही न जाने कब पोने चार बज गए, बरसात भी रूक चुकी थी उसने फोरन छाता उठाया और घर के ही कपड़ों में चल पड़ी कोस्टा बीच के लिए । एक बार सोचा टेक्सी कर लूं लेकिन फिर पैदल ही चल पड़ी । कोई चार बजकर सात मिनट पर वो रॉक नम्बर बारह के पास पहुँची । एक अत्यन्त आधुनिक युवती वहां खड़ी थी । शायद वो ही है लॉरेन्सिया । वो सीधे पहुँचकर बोलती इससे पहले ही वो बोल पड़ी

- नीलिमा जी ।

-जी

-आईए मैं केवल आपसे मिलने ही आई हूँ आप उत्सुक होंगी मेरे बारे में जानने के लिए । चलिए बताती हूँ ---- मैं डेविड की छोटी सिस्टर हूँ एरनाकुल्लम में रहती हूँ, मम्मी, पापा के साथ, दअसल डेविड की डेथ की ख़बर हमे बहुत लेट मिली थी, वो घर छोड़कर बिना बताये ही यहां रह रहा था, वो तो एक पुलिस वाले को न जाने क्या सूझी थी जो उसने हम लोगों को खोज निकाला था कोई छः महिने बाद । उसने जाकर ख़बर दी थी उस ख़बर से पापा एक दम टूट गए थे । हम लोग उम्मीद कर रहे थे कि डेविड एक दिन वापस आएगा लेकिन वो नहीं आया ----

उसकी आंखें नम हो गई थी । धीरे से नीलिमा ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वो टूट गयी नीलिमा के कंधे लगकर आज वो खूब रोई थी पहली बार डेविड की मौत के बाद । लॉरेन्सिया वैसे तो बहुत मजबूत लड़की थी लेकिन भाई की मौत ने भीतर ही भीतर उसे भी थोड़ा सा तो कमज़ोर बना ही दिया था । वो फिर बोली

-उस पुलिस वाले की ख़बर पर हम तीनो ही यहां आए और डेविड का सामान उसके आफिस से और कमरे से हम लोग लेकर चले गए थे । पापा ने डेविड के सामान को एक कमरे मे बन्द कर दिया था बस उस कमरे की तरफ देखकर उदास बैठे रहते हैं । एक दिन मैने हिम्मत करके डेविड के सामान को देखना शुरू किया । मेरे और डेविड की बहुत बनती थी लेकिन उसने मुझे भी नहीं बताया था कि वो घर क्यों छोड़ रहा है , अपनी वाइफ को क्यों छोड़ा, हमे किसी को नहीं मालुम था, हम लोक सोचते थे कि वो किसी और लड़की को चाहता है और उसके साथ कहीं सैटल हो गया है ।

इस बीच नीलिमा ने कहा ’

-लेकिन लॉरेनिसया मेरे बारे मे कैसे जानती हो ।

-सब बताती हूँ आज इतनी दूर मम्मी पापा को अकेला छोड़कर केवल यही सब बताने आई हूँ ताकि मेरे मन पर कोई बोझ ना रहे और आप तक वो पहुंच जाये जो आपके ही पास होना चाहिए ।

-बोझ मैं समझी नहीं ।

- सब समझ जाएंगी आप, पूरी बात सुन लीजिए ।

मन मे उमड़ते सवालों के बावजूद नीलिमा ने इस वक़्त केवल उसकी बात सुनना ही मुनासिब समझा, वो जानना चाहती कि आखिर ये सब कुछ कैसे जानती है ।

वो धीरे से फिर बोली

नीलिमा जी मुझे बहुत ज़ल्दी है मेरे फ्लाइट ठीक छः बजे है चैक इन भी करना है सो इट्स नाट पालिबल टू कंटिन्यू बट यू केन हैव दिस एण्ड विल नो एवरीथिंग ।

एक डायरी लॉरेन्सिया ने नीलिमा के हाथ मे थमा दी और बोली

आई एम सॉरी कान्ट स्टे

इतना बोलकर वो बहुत ही तेज क़दमों से चली गई । नीलिमा उसे जाते देखते रही । डायरी हाथ में थामे बड़ी देर तक वो वहीं खड़ी रही लेकिन डायरी को खोलने की हिम्मत न कर पा रही थी । बस असमंजस की स्थिति में ही वापस घर की ओर थके से कदमों से चल दी थी घर पहुँची तो ठी साढ़े पांच बज चुके थे । चाय की बड़ी तलब लगी थी लेकिन चाय बनाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी । वो जानती थी कि चाय बनाने कोई और नहीं आने वाला है । यूं ही सुस्ती मे बैठी रही । उठी और बालकनी में में आ गयी थी । बाहर बरसात हो रही थी शायद उसकी परेशानी और मनोदशा का भान बादलों को भी हो चला था । उसे थोड़ा ठण्ड का सा अहसास हुआ वापस भीतर आई और किचन में जाकर चाय चढ़ा दी । चाय का कप हाथ मे लेकर वो एक बार फिर से बालकनी मे आ गयी । उसके ख़यालों मे अभी भी लॉरेन्सिया ही बसी थी । इतनी खूबसूरत लड़की एरनाकुल्लम से यहां गोवा तक केवल मुझे यह डायरी देने आयी थी ।आखि़र क्या है इस डायरी में ? क्या लिख है डेविड ने इसमे ऐसा । शायद वे मेरे बारे मे ही होगा ये सब इसी डायरी के कारण ही जानती हो शायद । डेविड ने इस डायरी मे सब कुछ लिखा हो तभी उसके फोन की घण्टी बज उठी । वो मोबाइल पर अपने पति का नम्बर देखकर खुद को थोड़ा संयत करते हुए बोली ।

-हैलो

उघर से आवाज़ आई

-हैलो देखो अचानक ही मुझे एक ज़रूरी मीटिंग से मुम्बई जाना पड़ रहा है तीन चार दिन बाद ही लौटूंगा । तुम अपना ध्यान रखना ।

आखि़री लाइन जो उसके पति ने बोली वो उसके मन को छू गयी - सोचने लगी मैं भी मकड़जाल मे फंस गयी हूँ खुद का बुना हुआ ही तो है ये मकड़जाल एक तरफ पति दूसरी तरफ गुलज़ार हुसैन के प्रति मेरा प्रेम और डेविड --------

वो --- वो तो इन दोनो से अलग सच्चा प्रेमी, लेकिन पति भी तो अच्छा है ना । अब तो वो बहुत ही प्यार से बोलता है । रियली आइ मस्ट से थैंक्स टू डेविड फॉर दिस । लव यू डेविड ।

इस तरह मन ही मन वो डेविड का शुक्रिया अदा कर रही थी और मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी सहसा ही फिर से वही उदासी चेहरे पर आ गई । सोचने लगी गुलज़ार हुसैन के प्रति मेरा प्रेम तो सच्चा है लेकिन एक बार डेविड ने कहा था -

-देखना एक दिन तुम्हे यही गुलज़ार धोखा देगा । बस उस दिन तुम उदास मत होना क्यों कि यह तो एक दिन होना ही है । यही सोचकर वो दुखी होने लगी थी मै पूरे मन, तन और आत्मा से गुलज़ार को चाहती हूँ लेकिन अब सोचना तो यह है कि क्या वाकई गुलज़ार जी भी मुझे इतना ही प्रेम करते हैं । वो खयालों में खो गई । उसे याद आया एक दिन गुलज़ार ने मजाक में कहा था एक दिन देखना मैं कहीं तुम्हे छोड़कर बहुत आगे चला जाऊँगा । ये बात याद आते ही उसकी आंखे मे नमी के क़तरे उभर आये । कई दिनों से गुलज़ार बात नहीं कर रहा था , उसे लगने लगा था कि कहीं डेविड की बात सही न हो जाये

अंदेशा तो होने ही लगा था

वो उठी और एक बार फिर से किचन में चली गयी । सामने डायनिंग रूम की घड़ी पर नज़र पड़ी तो आठ बज रहे थे अनायास ही उसके मुंह से निकला ।

-अरे इतना टाइम हो गया । मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ, बिना वजह ही सोचे जा रही हूँ तभी भीतर से कोई आवाज़ आई ।

-नहीं नीलिमा बिना वजह नहीं डेविड ने कहा था ऐसा होगा ।

-लेकिन डेविड कोई ज्योतिषि थोड़े ही था ।

- वो जो भी था लेकिन एक एक हरफ तेरी ज़िन्दगी में सही निकला है अब तक जो उसने कहा था यह भी सही निकलेगा तेरा गुलज़ार धोखा देगा । अब तू ही जाने, तू ही समझे । वक़्त है अभी भी संभाल जा छोड दे उसको ।

बस मन और मस्तिषक का यह द्वन्द्व चलता रहा उसके हाथ चलते रहे कब दो रोटी सिक गई पता नहीं चला , उसे पता तो तब चला जब बिना रोटी के ही गर्म तवे पर उसने हाथ चला दिया ।

हाथ जल गया था, जलन हो रही थी । तेजी से उसने नल के नीचे हाथ रख दिया थोड़ा सा आराम मिला । कुछ देर बाद जलन कम हो गई थी । उसने खाना डाल लिया था थाली में, लेकिन मन मे अभी भी द्वन्द्व चल रहा था । अचानक ही उसे लॉरेन्सिया की दी डायरी फिर से याद आ गई । उसने तुरन्त खाना खाया, हाथ धोकर डायरी पढ़ने बैठ गई । डायरी का पहला पन्ना खोलते ही उसे मानो चार सौ चालीस वोल्ट का झटना लगा हो । पहले ही पन्ने पर लिखा था - “नीलिमा लव यू फॉर एवर”

उसकी आंखो से बरबस ही दो बड़े बड़े से मोती डायरी पर ही गिर पड़े थे मानो डेविड को सच्ची श्रृद्धांजली दे रहे हों । उसके विचारों मे एक तूफान सा आ गया था पन्ना दर पन्ना वो डायरी पढ़ती गयी और आंसू बहाती रही । डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखा था -

-तुझे पाकर भी ना पाने की कसक लिए इस जहाँ से जा रहा हूँ, अलविदा नीलिमा वन मोर थिंग इफ इट इज पॉसिबल प्लीज मीट माय पेरेंट्स इन एर्नाकुलम एंड टेक केयर ऑफ़ माय पेरेंट्स एंड माय लवली सिस ।

नीचे एर्नाकुलम का पता लिखा था

पूरी रात वो रोते रही, आज पहली बार उसे अहसास हुआ कि गुलज़ार हुसैन और डेविड में कितना बड़ा अन्तर है । एक तरफ डेविड जिसने अपनी आखिरी सांस तक भी प्यार की इज्ज़त को बनाए रखा और गुलज़ार तो आजकल केवल उसके तन का चाहने वाला, जब भी आता है बस केवल सेक्स । यह सच है कि गुलज़ार के साथ हम बिस्तर होने मे उसे बेहद सुकून मिलता है लेकिन डेविड के प्रेम ने तो आज मुझे आइना दिखाया है । सच्चे प्रेम के मायने बताये हैं ।

डेविड रियली यू आर ग्रेट, एण्ड नो डाउट यू आर द ग्रेटेस्ट लवर इन वर्ड ।

डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखी इबारत के बाद के चित्र ने तो मानो नीलिमा के दिल को नश्तर से बींध दिया हो, एक स्केच बनाया था डेविड ने एक तरफ नीलिमा थी नीचे की ओर थोड़ा सा ऊपर डेविड और ऊपर आसमान से एक हाथ डेविड को खींचता हुआ ।

 

योगेश कानवा,