प्रिया के साथ बात करना,उससे मिलना पहले काफी सामान्य सा लगता था,और अब पिछले कुछ दिनों से, जब से दिल में उसके प्यार का अंकुर फूटा था......ये मुलाकात ,बात चीत काफी स्पेशल सी लगने लगी थी.......पर कैसे भी मैं खुद पर लगाम लगा के इस प्यार के अंकुर को विशाल पेड़ में परिवर्तित होने से खुद को रोकने का पूरा प्रयास करने में जुटा था......क्योंकि मुझे पता था कि मुझ जैसे गरीब अनाथ की तुलना प्रिया जैसी एक अरबपति बिजनेस टाइकून की बेटी से नही की जा सकती थी।
पर हमारा जो दिल होता है वह कमबख्त पता नही कैसे इन सब बन्धनों से मुक्त होता है....उसमें दिमाग नही होता न इसलिए.....बस जो उसे अच्छा लगता है उसी में शिद्दत से जुट जाता है।
"क्या सोचा है अब?"
सामने बैठी प्रिया के उस सवाल ने मुझे उसी के ख्वाबों से बाहर निकाला।
मैं- "अभी तो बस यहीं सोच पाया हूँ, कि जॉब नही अपना ही कुछ करूंगा......पर कैसे ,और क्या करना है यह सब नही सोच पाया।"
प्रिया-"सबसे पहले तो यह सोचना जरूरी है...कि क्या करना है....कैसे करना है यह बाद में सोचेंगे।"
मैं- "पर समस्याए बहुत है.....बिना इन्वेस्टमेंट के कोई बिजिनेस स्टार्ट नही किया जा सकता....और इन्वेस्टमेंट के नाम पर कुछ भी नही मुझ पे...और फिर अकेले बिजिनेस स्टार्ट करना काफी चैलेंजिंग होगा"
प्रिया- "ये तुमसे किसने कहा कि तुम अकेले कर रहे हो स्टार्ट .....मैं भी पार्टनर हूँ इस बिजिनेस में.....समझे.....हम दोनों मिलकर कुछ स्टार्ट करेंगे.....मैं भी अपनी खुद की एक अलग पहचान बनाना चाहती हूँ....डैड की हेल्प लिए बिना.....और हां कुछ पॉकेट मनी और दूसरे एसेस्ट है मेरे पास,जिनसे हम शुरुआत कर सकते है।"
बिजिनेस करना क्या है....यह तय किये बिना ही प्रिया मेरी बिजिनेस पार्टनर बन चुकी थी........और उसके साथ होने के अहसास मात्र से ही मेरी उम्मीदों को मानो पंख लग गए हो.....काफी पॉजिटिव फील कर रहा था मैं.....सच में मुझ जैसे अंधेरों में डूबे इंसान को उजाले के समंदर में लाने के लिए हर कोशिश कर रही थी वह।
तभी अचानक से कॉलेज की उस सुनसान सी होती जा रही कैंटीन में वह हुआ...जिसकी हमने उम्मीद ही न की थी......
एक बड़ी सी लग्जरी कार कैंटीन के सामने रुकी........और उसमें से निकल कर हमारी ओर बढ़ता हुआ दिखाई दिया.....सम्राट......उसके साथ 2-3 लड़के और भी थे......सम्राट के हाव भाव, उसके इरादे नेक नही लग रहे थे.......वह बिना कुछ सोचे समझे प्रिया की ओर बढ़ रहा था......किसी अनिष्ट की आशंका से मैंने फुर्ती के साथ खड़े होकर उससे माजरा पूंछना चाहा....पर उसने मुझे जोर का धक्का दिया.....जिस से मैं पास रखी हुई टेबल पर जा गिरा।
एग्जाम के बाद कॉलेज के अधिकांश स्टूडेंट्स घर जा चुके थे, इसलिए कैम्पस में सन्नाटा पसरता जा रहा था..हम लोग भी बस अपने घरों को निकलने ही वाले थे,कि ये लोग आ धमके.....कैंटीन पर काम करने वाले एकमात्र बुजुर्ग मोहन बाबा को सम्राट के साथियों ने धमका कर बाहर भगा दिया था.....
प्रिया इस से पहले कुछ समझती,उस दरिंदे ने उसके बालो को जकड़ कर पकड़ लिया ।
"सम्राट...छोड़ दो मुझे....नही तो अंजाम बहुत बुरा होगा"
प्रिया चीखी।
"अंजाम की फिक्र तो उसी दिन खत्म हो गयी थी...जब तूने मुझे सरेआम बेइज्जत किया था....खून का घूंट पीकर रह रहा हूँ तभी से......चाहता था कि तुझसे शादी करके तेरा जीवन बर्बाद कर दूं...तुझे दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दूं......झूठ बोला था अपने बाप से मैंने कि प्यार करता हूँ तुझसे.......पर तूने शादी के लिए मना करके मेरे सारे प्लान पर ही पानी फेर दिया .....अब देख मैं क्या करता हूँ......बहुत घमंड है न तुझे तेरे गोरे जिस्म पर..अपने खूबसूरत चेहरे लर...अपने कैरेक्टर पर......आज इस चेहरे को मैं ऐसा बना दूंगा कि तू आईने में भी खुद को देख कर डर जाए.....तेजाब से जला कर नष्ट कर दूंगा तेरे घमंड को आज मैं"
वहाशियत की हदें पार करते हुए सम्राट ने अपने कपड़ों में छिपी हुई तेजाब से लबालब भरी बोतल को बाहर निकालते हुए प्रिया के सामने अपने खतरनाक इरादे बयां कर डाले।
उफ्फ...सच में दरिंदा था सम्राट तो......एक बार प्रिया की किस्मत ने सही साथ दिया था उसका,जो उसके शादी रूपी जाल में फंसने से बच गयी.....पर इस बार वह उस हैवान के हाथों से खुद को छुटाने के लिए छटपटा रही थी...।
(कहानी जारी रहेगी)