जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 03) anirudh Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 03)

और फिर कुछ देर बाद वैभव और प्रिया घर के एक आलीशान से गेस्ट रूम में दिव्या के साथ कॉफी पीते नजर आते है......दिव्या बहुत ही ज्यादा खुश थी,उसने दिल से कई बार वैभव और प्रिया को इस इंटरव्यू के लिए थैंक्स किया था......ट्राईपॉड पर लगा कर अपने कैमकॉर्डर को रिकॉर्डिंग मोड़ पर लगाने के बाद दिव्या ने एक्साइटमेंट के साथ उन दोनों से रिक्वेस्ट की......"प्लीज मैम,प्लीज सर.....स्टार्ट कीजिये"

"अरे...पर स्टार्ट करना कहां से है....और हम में से किसको करना है....?."
दिव्या की उत्सुकता देखते हुए वैभव ने हंसते हुए उस से सवाल किया।

पर जबाब दिव्या से पहले प्रिया ने दिया....."अरे,यह भी कोई पूंछने वाली बात है.....जब हम फर्स्ट टाइम मिले थे वहीं से कर दो न शुरुआत.......अपने कॉलेज डेज से"

"ओके ओके श्रीमती जी.....जैसी आपकी मर्जी...पर थोड़ा सा खुद के बैकग्राउंड से भी इंट्रोड्यूस करा दूं साथ मे......"
वैभव ने अपना गला सही करते हुए कहा।

और इसी के साथ वैभव ने दिव्या को अपनी आप बीती सुनाना स्टार्ट किया।😀

तो बात उन दिनों की है जब मैंने बारहवीं के बाद पहली बार पुणे के 'पुणे इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट' में बीकॉम में एडमिशन लिया.......मेरे लिए यह बहुत बड़ा अचीवमेंट था......बारहवीं तक सरकारी स्कूलों में पढ़कर उन स्कूलों की नाममात्र की फीस भी अपने से जूनियर स्टूडेंट्स को ट्यूशन पड़ा कर जोड़ पाने वाला दुनिया के रहमोकरम पर जीने वाले एक बेघर बालक के लिए तो चमचमाते हुए विशाल कैम्पस वाले एक इतने प्रतिष्ठित कॉलेज में एंटर होना भी सपने जैसा ही था..........दरअसल अनाथ बच्चों को सपोर्ट करने वाले एक एनजीओ द्वारा एक शैक्षिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था,जिसमें प्रथम आने वाले छात्र की हायर एजुकेशन का सारा खर्चा वही संस्था उठाने वाली थी......और किस्मत व मेहनत से उस प्रतियोगिता का टॉपर मैं ही था।

टैलेंटेड बचपन से ही था.....दिल उड़ान भरने के सपने देखता था....पर दो वक्त की रोटी जुगाड़ करने वाले एक छात्र के लिए ऐसी उड़ान में बाधाएं बहूत थी.......जब दसवीं के एग्जाम में जिले में टॉप किया तो बहुत से लोगो ने अलग अलग सलाह दी....किसी ने कहा यूपीएससी की तैयारी करना ....आईएएस जरूर बनोगे......किसी ने कहा बेटा इंजीनियर बनना.....पर हमारे समाज की सच्चाई है कि मुफ्त की सलाह देने वाले लाखों और मदद करने वाले एकाध ही मिलते है......खैर.....असहाय,गरीबी,दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करने के फेर से बाहर निकल कर कुछ बहुत बड़ा करने का सपना लेकर मैं राजस्थान के धौलपुर से पुणे आया।

जीवन भर आभारी रहूंगा उस महान एनजीओ का जिसने कॉलेज की मोटी फीस के साथ साथ मेरे होस्टल एवं मैस का तीन साल का पेमेंट भी एक ही साथ कॉलेज प्रबंधन को कर दिया था.....तो अब पढ़ने व रहने,खाने का प्रबंध तो हो ही चुका था.......रोजमर्रा एवं अन्य छोटे मोटे खर्चो के लिए होम ट्यूटर का काम मैंने कॉलेज जॉइन करते ही स्टार्ट कर ही लिया था।

एकदम सब नया था मेरे लिए.....इस कॉलेज में आकर ऐसा लग रहा था कि एकदम दूसरी दुनिया में आए गया हूँ....चमचमाती हुई कारो और बाइक्स में सवार मंहगी ड्रेसेज और गैजेट्स के साथ आते जाते स्टूडेंट्स और उनकी चकाचौंध वाली लाइफस्टाइल देख कर दंग रह गया था मैं.....और फिर ऊपर से लटके झटके मारने वाली कॉलेज की वो रंग बिरंगी कन्याएं.... छोटे ग्रामीण शहरों के सरकारी स्कूलों में कहां देखने को मिलती है ऐसी वैरायटी......
मेरे बारे में सहपाठियों की राय पहले तो एक गरीब,देहाती की थी,तो कोई भी बात करना पसंद नही करता था....पर पढ़ाकू होने के कारण क्लास स्टार्ट होने के कुछ ही दिन में जब मेरा टैलेंट देखा तो उन्हें लगा कि बन्दा काम का है....सेमेस्टर में हेल्प कर सकता है.....इस तरह कुछ गिने चुने दोस्त भी बन गए...मेरी ही क्लास में एक और लड़की थी...प्यारी सी......जो हमेशा हर जरूरतमंद की हेल्प करती थी.....दिखने में जितनी सुंदर थी उस से कही ज्यादा वह दिल से सुंदर थी......नाम था प्रिया.......प्रिया चटखनी..😀......बड़ा अजीब सर नेम था उसका,.....इस वजह से क्लास के सभी लड़के लड़कियां मौका मिलते ही उसे चिढ़ाते जरूर थे....कोई कटखनी बोलता तो कोई पटखनी...😂 दरअसल इस सरनेम के पीछे एक बड़ा लॉजिक था.....प्रिया के दादाजी ने अपनी युवावस्था में लोहे एवं स्टील से बनी हुई घरेलु वस्तुओं की छोटी सी दुकान स्टार्ट की थी......धीरे धीरे उनका कारोबार बढ़ता गया पर लोग उनको दरवाजे पर लगने वाली चटखनी की बेहतरीन क्वालिटी के लिए जानने लगे.......वह भी अपने इस प्रोडक्ट से इतने प्रभावित हुए कि अपने नाम के साथ टाइटल के रूप में इसी शब्द को जोड़ लिया......फिर उनके सभी बच्चों के नाम के साथ भी इस टाइटल को जोड़ा गया......प्रिया की दादाजी की वह छोटी सी दुकान अब 'जय महाराष्ट्र स्टील्स लिमिटेड' के नाम से एक बड़ी कम्पनी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थी, और उनका वह टाइटल 'चटखनी' अब टाइटल की जगह सरनेम में परिवर्तित होकर बेचारी प्रिया के नाम के साथ जुड़कर......उसके दोस्तों को मजे लेने का मौका दे रहा था....😀

कहानी आगे भी जारी रहेगी