प्रिया पढ़ाई में एक औसत पर काफी सिंसियर स्टूडेंट् थी. .......और मैं एकदम किताबी कीड़ा....... फिर एक दिन अचानक से लाइब्रेरी में फर्स्ट टाइम मेरी बात प्रिया से हुई थी......जब उसने अपनी एक सब्जेक्ट रिलेटेड कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए मुझसे डिस्कशन किया था।
बस फिर क्या था..लाइब्रेरी में पहली बार शुरू हुआ बातचीत का वह दौर....कॉलेज का पहला साल खत्म होने तक अच्छी खासी फ्रेंडशिप में बदल चुका था।
हम चार-पांच फ्रेंडस का एक ग्रुप बन चुका था ,मैं,अनिकेत,मिहिर,सौम्या और प्रिया......क्लास में साथ बैठने से लेकर लाइब्रेरी में पढ़ाई और खाली समय मे थोड़ा बहुत कैंटीन में साथ बैठना....यही दिनचर्या थी हमारी।
हम पांचों दोस्तों में से अनिकेत,मिहिर और सौम्या तीनो ही अलग अलग शहरों की मिडिल फैमिलीज से थे.....अपनी खुद की स्थिति तो मैं बता ही चुका हूँ.....प्रिया पुणे से ही थी, उसे हम एक सामान्य से परिवार से ही समझते थे,क्योंकि उसका व्यवहार बेहद सरल,सामान्य एवं बेहद डाउन टू अर्थ था....पर जब एक दिन हम सभी उसके पेरेंट्स की मैरिज एनिवर्सरी पार्टी में शामिल होने उसके घर गये, तो वहां की शान शौकत देख कर दंग रह गए...तब पता चला कि वह महाराष्ट्रा के फेमस स्टील किंग की बेटी है.....इतनी रिच फैमिली से बिलॉन्ग करने वाली प्रिया मुझ जैसे गरीब अनाथ की फ्रैंड है,बड़ी मुश्किल से खुद को यकीन दिला पाया था तब मैं,इसे उस छोटी उम्र में भी प्रिया की समझ का ही नतीजा कह सकते है,कि उसने मुझ जैसे फटीचर की हालत और हालात से ज्यादा मेरे अंदर के टैलेंट और मेरे नेक दिल की पहचान करके मुझसे दोस्ती की थी .....लाइफ में दिखावा से कहीं ज्यादा महत्व सिम्पलसिटी का होता है...यह हम सभी दोस्तों ने प्रिया से ही सीखा है.......।
कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स के दिलों में सामान्य तौर पर लव,क्रश,गर्लफ्रैंड जैसी जो मायावी इच्छाएं जन्म लेती थी, वैसा कुछ मेरे साथ नही था.......मेरे दिलोदिमाग में तो बस पढ़ाई,और उसके बाद जॉब से ज्यादा कुछ चलता ही नही था.....और आखिर चले भी क्यों न, बचपन से ही तो पैसे की तंगी झेल झेल कर उसका महत्व समझ चुका था मैं।
यही वो वजह थी जो मुझे मेरे साथ के दूसरे फ्रेंडस से अलग बनाती थी....जहां एक ओर दूसरे लड़के छुट्टियों में मूवी,पिकनिक,पार्टी एन्जॉय करते थे, मैं खुद की पढ़ाई फिनिश करके क्लास के दूसरे अमीर छात्रों के लिए नोट्स,प्रजेंटेशन आदि तैयार करता था,जिसके बदले में वह लोग मुझे पैसे दिया करते थे......
सब ठीक ठाक चल रहा था.....फिर एक दिन मैं रोज की तरह लाइब्रेरी में बैठा पढ़ाई कर रहा था.....तभी अचानक से मिहिर भागता हुआ आया.…..
"वैभव,पता नही प्रिया को क्या हो गया है.....लगातार रोये जा रही है।"
हमेशा खुशमिजाज रहने वाली लड़की प्रिया के अचानक से रोने की बात सुनकर मैं भी हैरान था।
जाकर देखा तो सचमुच वह कॉलेज कैम्पस के बास्केटबॉल कोर्ट के पास खड़ी हुई फफक फफक कर रो रही है,...पास में खड़े अनिकेत और सौम्या उसे चुप कराने की लाख कोशिशे करने के बावजूद भी उसकी आँखों से निकलने वाले आंसुओ को बंद न करा सके......प्रिया को इस रूप में पहली बार देखा था....उसकी आँखों से बहते आंसू अब सूखने लगे थे....उसने चेहरे की उदासी और उन नीली प्यारी सी आंखों का सूनापन देख कर पता चल रहा था कि बाहर से सामान्य सी दिखने वाली प्रिया अंदर से काफी टूटी हुई है.......
थैंक्स गॉड, काफी देर की कोशिश के बाद हम सब मिलकर प्रिया को चुप कराने में सफल हो ही गए..अपनी मजाकिया हरकतों से हम सब मिलकर उसके उदास चेहरे पर मुस्कान लाने में भी कामयाब हो गए थे...पर अब हमारे लिए वह वजह जानने की उत्सुकता बढ़ गयी थी जिसके कारण प्रिया फूटफूटकर रो रही थी।
"ओए कटखनी ,अब बता भी दे न क्या बात थी.....नही तो कट्टी आज से तुझसे.....हम सब की तरफ़ से"
सौम्या ने मजाकिया लहजे में धमकी देते हुए प्रिया से कहा।
कहानी आगे भी जारी रहेगी।