गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 69 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 69

भाग 68 जीवन सूत्र 84 , 85


जीवन सूत्र 84 :किसी को रोकने- टोकने के पहले रखें विकल्प


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-

प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।

तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्।।3/29।।

इसका अर्थ है,"प्रकृतिजन्य गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए अज्ञानी मनुष्य गुणों और कर्मों में आसक्त रहते हैं।उन पूर्णतया न जान पाने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जान लेने वाले ज्ञानी मनुष्य विचलित न करे।"

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण प्रकृति और माया के वशीभूत होकर कर्म करने वाले लोगों की स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। अपनी समझ के अनुसार ऐसे लोग विशिष्ट फल और कामना के उद्देश्य से कर्मरत रहते हैं। उन्होंने विभिन्न भौतिक उपलब्धियों, यश, समृद्धि आदि की प्राप्ति को अपने जीवन का उद्देश्य बना रखा है। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वे कई तरह के नियमों और अनुष्ठानों का पालन भी करते हैं। तकनीकी रूप से वे शास्त्र युक्त आचरण भी कर रहे होते हैं।यहां वास्तविकता यह रहती है कि वे प्रकृतिजन्य माया के गुणों से प्रभावित होने के कारण कार्य करते हैं।


जीवन सूत्र 85: निषेध के बदले नए रास्ते की अच्छाई बताएं

अब ऐसे व्यक्तियों को एकाएक आसक्ति को त्याग कर, फल की इच्छा को त्याग कर और इस त्रिगुण माया के प्रभाव से मुक्त रहते हुए कर्म करने को कहा जाए तो एकाएक उनके सामने एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो जाएगा।जिन लक्ष्यों (सांसारिक ही सही) की प्राप्ति के लिए वे एक तरह से अनुशासन,परिश्रम और एकाग्रता का पालन कर रहे हैं, वह एकाएक टूट जाएगा। यह तो इस तरह हो जाएगा कि किसी व्यक्ति को जो ट्रेन पर सवार है और एक गंतव्य की ओर जा रहा है,उसे अचानक ट्रेन से उतरने के लिए कह दिया जाए।तब बीच रास्ते में उतरकर वह जाएगा कहां?


ज्ञानी मनुष्य ऐसे अल्प बुद्धि लोगों को बिना उनके कार्य का खंडन किए ही आसक्ति को त्याग कर और ईश्वर अभिमुख कर्म करने की अच्छाई बता सकते हैं, रास्ता सुझा सकते हैं और स्वयं उस रास्ते पर चलकर अन्य लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।किसी व्यक्ति को लोक संग्रह के कार्यों में प्रेरित करने के लिए यही सबसे अच्छा तरीका है। इससे आगे यह स्थिति बनेगी कि वह व्यक्ति स्वयं सोचेगा कि मैं जिस ट्रेन में यात्रा कर रहा हूं और मुझे यह जिस लक्ष्य की ओर ले जा रही है,वह वाकई कल्याणकारी है या नहीं और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि वह अगले स्टॉपेज पर उतर कर सही ट्रेन में बैठने की कोशिश करेगा।

(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय