धनजी के परिवार में आज बहुत खुशियां मनाई जा रही थी पूरे 55 बरस की उम्र में आज उनके बेटा हुआ था बहुत मन्नते मांगी मजार मजार मंदिर मंदिर दरगाह सब जगह सब जगह मन्नत का डोरा बांधा लेकिन भरी जवानी से लेकर अब तक कोई उम्मीद नहीं दिखी थी गांव में एक साधु बाबा आए थे उन्होंने क्या कहा क्या कुछ किया एक मंत्र बोला और एक डोरा बांधा दोनों पति पत्नी को और बस वहीं से उम्मीद बंधी और अब पूरे 55 बरस की उम्र में धन जी के बेटा हुआ । बड़े लाड से उन्होंने उसका नाम मनजी रखा । दोनों ऐसे खुश होते थे मानो किसी डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया हो किसी ऐसे आदमी को एक उम्मीद बंध गई हो जहां जीने की उम्मीद खत्म हो जाती है कुछ ऐसा ही था धनजी के साथ धीरे धीरे मनजी बड़ा होने लगा धनजी के पास 4 बीघा जमीन डूंगरपुर जिले का सीमावर्ती गांव। एक छोटा सा रास्ता वहां से 2 किलोमीटर दूर धनजी का खेत ,धनजी मन लगाकर काम करता था और धनजी अपने खेत में बरसात इसमें सीजन में मक्का बोता था और साथ में कभी-कभी कुछ और भी बो लिया करता था और जैसे ही सर्दी का सीजन शुरू होता है मक्का कटती उसके बाद सरसों देता। बीच-बीच में ख्याल आता कुछ भी बो लो । एक बार सोचा अफीम बो ली जाए लेकिन सरकार से पट्टा नहीं मिल पाया था। सरकार की अनुमति के बिना अफ़ीम की बुआई नहीं कर सकते है इसलिए उसने वो इरादा छोड़ दिया । अब जो मक्का उसके खेत में होती उस मक्का से पूरे साल भर का गुजारा हो जाता था और सरसों को बेचकर दूसरी जरूरतों का काम भी पूरा होता और साथ ही साथ पैसे बच भी जाते। पूरी जिंदगी भर की कमाई के पास कितनी हो गई थी कि अपनी जात बिरादरी में पैसे वालों में गिना जाता था धनजी की जांच भी कोई बहुत बड़ी नहीं थी छोटा सा गांव गांव में करीब 200 लोग और धनजी के पैसे , ईमानदारी और उसकी बातों के कारण पूरी जात बिरादरी ने उसको अपना मुखिया चुना था । धनजी के भाई अलग मिजाज के थे मक्कारी और बेईमानी उनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी। धन जी बोलते थे भाई ईमानदारी पर रहो इमानदारी पर चलो तो सब बरकत होती है ऊपर वाला भी भला मानता है लेकिन तीनो भाई कब सुनते थे । रोजाना कुछ ना कुछ , नई से नई तीनो भाई तिकड़म लगाते थे और टिकड़म ऐसी कि उसका जवाब लोगों के पास नहीं होता था । धनजी मुखिया थे इसलिए उन तीनों भाइयों के कई बातें पूरे मोहल्ले में पूरे गांव में अनसुनी कर दी जाती थी। धनजी को बहुत दुख होता था उनकी इन हरकतों पर लेकिन अब भाइयों को समझा समझा के धनजी भी थक चुके थे । अब उम्र बढ़ती रहती है मन जी धीरे धीरे 12 साल का हो गया था जाहिर है 67 साल के हो गए थे । वो और उनकी पत्नी बहुत मेहनत करते हैं आप जानते हैं जहां सुविधाएं नहीं हैं जहां पर जीवन बहुत कष्ट में हो वहां उम्र बहुत ज्यादा लंबी नहीं जाती है एक रात धनजी खाना खाकर सोए तो सुबह नहीं उठे , धन जी को पत्नी ने जगाया नहीं जगे और अंततः रोना-धोना शुरू हुआ धनजी चले गए थे इस दुनिया को छोड़ कर । धनजी की पत्नी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाई और कहते हैं ना दो जिस्म एक जान कुछ कुछ ऐसा ही था धनजी और उनके पत्नी के साथ । थोड़ी ही देर बाद धन जी की पत्नी के भी प्राण पखेरू उड़ गए। घर में मातम का माहौल एक साथ दो दो लाशें घर से उठा दो अर्थियाँ और दो अर्थी को कंधा देते लोग । एक ही बात सबकी जुबान पर थी क्या होगा अब मनजी अभी इतना छोटा है कि वह कुछ कर नहीं पाएगा, कैसे होगा कैसे उसका बचपन अभी आगे बढ़ेगा क्योंकि गांव भर के लोग जानते थे कि धनजी के तीनों छोटे भाई धूर्त किस्म के हैं इसलिए सब को आशंका थी कि मन जी का बचपन अब कुछ संकट में होगा। आशंका गलत भी नहीं थी क्योंकि तीनों भाइयों में से एक से बढ़कर एक धूर्त चालाक और मक्कार । कुछ हुआ भी ऐसा ही बारवें के दिन ही तीनों भाइयों ने ऐलान किया कि वह मनजी को अपनी शरण में पूरी तरह से रखेंगे और वह पालेंगे । जात बिरादरी को लगा हां शायद अब इनमें कुछ ना कुछ जिम्मेदारी का भाव आ गया होगा पर यह बात बहुत जल्दी ही गलत साबित हो गई गलत साबित हुई । एक बरस के भीतर ही उन्होंने कोई 3 कोस दूर गंदोरी गांव की एक लड़की से मनजी का रिश्ता तय कर दिया । रिश्ता भी क्या एक सौदा किया सौदा इस तरह का था । मनजी को घर जमाई उन्होंने उसी गंडोरी गांव में रखने की तय कर दी। एक तीर से दो निशाने साध लिए थे ,जैसे ही वह घर जमाई बनकर गंडोरी जाएगा उसकी सारी जमीन को और घरों को हड़प जाएंगे । यही उनकी पूरी तरह की सोच थी और अपनी सोच में वह कामयाब हुए बहुत जल्दी ही उन्होंने गंडोरी के तानाजी की लड़की से मन जी का ब्याह कर दिया। मन जी को अभी 13 बरस की उम्र में ब्याह के मायने कुछ ज्यादा समझ नहीं आते थे कुछ मालूम नहीं था बस ब्याह का मतलब था मिठाई खाना और खेल खिलौनों की तरह गुड़िया मिलकर दोनों खेलना । मनजी और लाड़की बस खेलते।
धनजी ने अपने जीवन में मनजी को पास के गांव में भेज कर पांचवी पास करवाई थी लेकिन उसके बाद उसको आगे नहीं पड़ा पाए उधर तानाजी की लाडकी भी इतनी ही पढी हुई थी। तानाजी आधुनिक सोच के थे पूरे जात बिरादरी के विरोध में आकर उन्होंने अपनी लड़की को पढ़ाना शुरू किया था और उसका परिणाम यह हुआ की तानाजी को जात बाहर कर दिया था । इसलिए मनजी और लाड़की के ब्याह में कोई नहीं आया था गांव बस्ती का। बस मनजी के तीनों चाचा चाची जो उसी गांव में जाकर ब्याह करके आए थे यानी गंडोरी गांव में जाकर और तीनों इसलिए खुश थे कि एक आफत उनके गले जो बंधी थी मन जी के रूप में वह निकल गई । मनजी अब गंडोरी में घर जमाई था । उम्र बढ़ती गई खेलकूद में और खेलकूद के साथ-साथ उसने अपनी जिम्मेदारियां निभाना शुरू किया खेत में जमकर काम करता था उसकी मेहनत और लगन देखकर तानाजी बहुत खुश होते थे। तानाजी को लगता था उसकी लाड़की अब सही हाथों में है तानाजी की पत्नी बहुत पहले ही गुजर चुकी थी उसने दूसरी शादी नही की थी , तानाजी और लाड़की दो ही थी उस घर में और तीसरा प्राणी आया और तीनों बहुत खुश अपने खेत में काम करना खूब अच्छे से रहना यही क्रम था । तानाजी और मन जी सुबह उठते ही अपने खेत में चले जाते हैं और लाड़की उनके लिए खाना बना कर अपने सर पर छाबड़ी ऊंच कर उसमें खाना ले जाती है । इठलाती बलखाती से चलती है 16 बरस की हो गई थी लाडकी ,और जो 16 बरस की इस उम्र में लाड़की के मन में बहुत सारे अरमान अंगड़ाइयां लेते थे। उमंगे ऐसी जो बस सोलवें सावन में किसी लड़की के जो ख्याल होते हैं जो सपने होते हैं वह सब लाड़की के मन में भी आते थे । लाडकी अब मनजी को अपना खेलने का साथी नहीं मानती थी अब सचमुच में वह उसे अपना पति जीवनसाथी और जवानी का सहयोगी मानती थी ।
दूज का चांद दिख रहा था थोड़ा सा मुस्कुराता सा थोड़ा सा टेढ़ा सा । दोनों बहुत खुश आज पहली बार दोनो एक साथ सोने जा रहे थे लेकिन हां एक बात मन जी बहुत अच्छे से समझ चुके थे , अभी कोई बच्चा नहीं इसलिए उसने पास के गांव की एएनएम बहन जी से सलाह ली थी उसने उसे कुछ कंडोम और जरूरी सलाह एहतियात बरतने की बातें सब बताइए अब मन जी बेचारा उन सब बातों को सुन सुनकर शर्म के मारे नजरें नीचे झुकाए बैठा रहा उसे बहुत शर्म आ रही थी एक औरत एएनएम बहन जी उसे ऐसी बातें समझा रही थी जो वह आपस में दोस्तों के साथ करते थे । उसे लग रहा था कैसी बेशर्मी की बातें हो रही है लेकिन अब आया तो खुद ही था ना भाग भी नहीं सकता था इसलिए उसने सारी बातें ध्यान से सुनी भी नहीं शर्म आ रही थी लेकिन फिर भी बातें जो ध्यान से सुनी और चुपके से सारे कंडोम उठाकर उसने अपने धोती की एक लांग में बांध लिया और चुपचाप वहां से चला गया। निकला भी ऐसे जैसे कोई चोरी करके निकल रहा हो। बस इधर-उधर सब जगह देख कर गांव में घुसने से पहले भी उसने एक चोर की निगाहों से इधर-उधर सबको देखा कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है और जब वह इस बात से मुतमईन हो गया कि हां किसी ने नहीं देखा तो चुपचाप घर चला गया। घर में लाडकी उसकी बाट जो हो रही थी घर में चोरों की तरह गुस्सा चुपचाप और अपने छप्पर के एक कोने में छान में उसने वह पैकेट छुपा दिए उसे लग रहा था कि आज उसने कोई बहुत बड़ा गलत काम कर लिया है पर यह भी जरूरी था कि जल्दी बच्चे नहीं हो इसलिए साधन अपनाना भी था । लाड़की ने पूछा भी कहां गए थे उसने यूं ही इधर-उधर की बातों में टाल दिया । लाड़की ने ज्यादा जोर नहीं दिया । बस उसको निहारे जा रही थी और इधर दूज का चांद मुस्कुरा रहा था दोनो के मिलन की सोच कर ।
कई बार अब मन जी खेत में नही जाता था बस लाड़की के पास ही रुक जाता था आज भी वो खेत नहीं गया था लाडकी उसे खाना खिलाकर बाप के लिए खाना लेकर वह खाना लेकर गई खेत पहुंची तो नजारा कुछ और ही था । तानाजी बेसुध से पडे एक पेड़ की छाया में न जाने उनको क्या हुआ था घबरा रहे थे पसीने आ रहे थे । लाडकी ने जल्दी से अपने लुगड़ी से बापू का पसीना पोंछा और पानी पिलाया लाड़की के हाथों से पानी पिया और फिर बेशुद्ध से पड़ गए ऐसा लग रहा था कि तानाजी केवल लाड़की के हाथों से पानी पीने का ही इंतजार कर रहे थे । तानाजी लाड़की को छोड़ कर जा चुके थे । लाड़की जोर जोर से चिल्लाने लगी आसपास के खेतों से लोग आ गए कोई दौड़कर मन जी को भी खबर देने गया तानाजी नहीं रहे तानाजी नहीं रहे । मन जी दौड़ता सा खेत पहुंचा तो देखा तानाजी बेसुध पड़े थे । लाड़की रोए जा रही थी बुरा हाल था लाड़की को अपने बापू की अलग कर अपने कंधे पर उठाए जोर से भागा उसी ए एन एम बहन जी के पास लेकर गया । उसने देखा और एक ही बात कही अब नहीं रहे। अब क्या करेगा कच्ची उम्र में पूरी तरह से अनाथ हो गया था पहले मां बापू और अब पिता समान ससुर चले गए , क्या करूं । सारी व्यवस्थाएं गांव वालों ने मिलकर की तानाजी की शमशान ले गए और अंतिम संस्कार किया । उसके लिए पूरी दुनिया वीरान हो चुकी थी । उसको समझ नहीं आ रहा था अब वह कैसे रहेगा कैसे करेगा सब जिम्मेदारियां कैसे निभाएगा । यही कुछ हाल था लाडकी वह भी बस रोए जाती, उसकी आंखें रो-रोकर सूज गई थी लेकिन होनी को कौन टाल सकता है किसने रोका है होनी को आज तक, जो हो गया वह सब नियति थी इसलिए नियति का खेल मानकर धीरे-धीरे दोनों ने संभालना शुरू किया। मेहनत मजदूरी करने लगे खेत में और लगन से अपना खेत बोते फसल भी अच्छी होती थी । मन जी थोड़ा सा पढा हुआ था इसलिए पास के गांव में कृषि पर्यवेक्षक से भी उसने सलाह ली थी । मिट्टी की जांच भी करवाई थी खेत में क्या अच्छा रहेगा और पर्यवेक्षक की सलाह के अनुसार उसने खेत में आधी जोत सोयाबीन की कर दी और आधी जोत मक्का की रखी । दो ही तो प्राणी थे 2 प्राणियों के लिए 10 बीघा खेत में मक्का खूब थी 5 बीघा में सोयाबीन और 5 बीघा में मक्का बहुत अच्छी फसल हुई है। मेहनत लगन रंग लाई थी दोनों की और अब सोयाबीन बेचकर बहुत अच्छा पैसा कमाया। हर साल अब उसने बदल बदल के शुरू किया जिस रकबे में मक्का बोई थी उसमें उसने सोयाबीन बो दी और जिस रकबे में सोयाबीन बोई थी वहां पर अबकी बार उसने मक्का लगाई । पर्यवेक्षक ने भी यही सलाह दी थी कि फसल बदल बदल कर बोने से पैदावार बहुत अच्छी मिलती है। यही कुछ हुआ इस बार और भी ज्यादा अच्छी फसल हुई और उसी के हिसाब से कमाई भी । लाड़की और मनजी की जिंदगी बहुत अच्छे से चल रही थी या यूं कहें कि बेहद हसीन लम्हों के साथ गुजर रही थी दोनों की जिंदगी । बहुत खुश बहुत खुशहाल रूपए पैसे, घर बार सब कुछ बहुत अच्छा। लाड़की अपने आप को सबसे बड़ी सौभाग्यशाली समझ रही थी दुनिया की मन जी को पा कर । पर कहते हैं ना समय एक साथ नहीं रहता है कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ छोटी-छोटी बातें ही बहुत कुछ अनचाहा कर जाती हैं एक दिन की बात है खेत में काम करना बहुत जरूरी था और लाड़की की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए लाड़की ने कहा तुम खेत जाओ दोपहर तक मैं ठीक होकर खाना लेकर आऊंगी। मन जी ने मना किया था खाने के लिए कि नहीं खाने की कोई बात नहीं दोपहर तक मैं खुद ही आ जाऊंगा पर लाडकी नहीं मानी । मनजी खेत में चला गया खेत में काम कर रहा था जैसे तैसे करके खाना बनाया और मनजी के लिए खाना एक पोटली में बांध लिया लेकिन सोच रही थी जाऊं तो कैसे आज हाथ पैर साथ नहीं दे रहे थे तभी लाडकी के बगल वाले खेत की मालकिन रूड़की ने आवाज लगाइए आवाज लगाई लाड़की को खेत में चल रही है क्या आजा चलते हैं। लाड़की ने कहा अरे तू आ गई अच्छा हुआ आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है एक काम कर मन जी का खाना भी तू ही लेती जा । मैं थोड़ा सा आराम कर लेती हूं और खाने की पोटली रुड़की को पकड़ा दी । अक्सर लाड़की और रुड़की में बातें हो जाए करती थी सहेलियां तो नहीं थी वह क्योंकि रूड़की गांव में थोड़ी सी बदनाम ज्यादा थी अपने बिंदास होने के कारण । रुड़की की आदत थी एकदम बिंदास रहना सबसे हंसी मजाक करना और उसके लिए कोई भी चीज वर्जित नहीं थी । बस यही बात लाड़की को नहीं भाती थी लेकिन आज उसकी तबीयत साथ नहीं दे रही थी इसलिए उसने खाने की पोटली रुड़की के साथ भेजना ही ठीक समझा । रुड़की खाना लेकर पहुंची पहले अपने पति को खाना दिया और फिर मन जी के पास खाने की पोटली ले जाकर बैठ गई मनजी से हंसी मजाक भी करती थी कभी-कभी पर मन जी कभी ध्यान नहीं देता था। आज भी खाना लेकर गई और मन जी को खाना परोसने से रुड़की ने मन जी को भी खाना परोसते से मजाक में बोला लो जी आज तो मैंने लाड़की की जगह ले ली , कितनी बार सोचा है कि मैं लाड़की की जगह आप की लुगाई होती तो समझो जिंदगी का मजा आ जाता । रुड़की की बात सुनकर मन जी को बहुत बुरा लगा मनजी का मूड देखकर वह बोली अरे बाबा क्यों गुस्सा करते हो क्यों नाराज होते हो मैं तो मजाक कर रही थी । उसका मन नहीं लग रहा था एक तो रुड़की की उटपटांग बातें और ऊपर से लाड़की की तबीयत उसने अपना खाना जल्दी से खत्म किया और काम पर लग गया काम करना जरूरी था । इसलिए जल्दी-जल्दी काम निपटाने लगा कोई 3:00 बजे के आसपास काम निपटा कर वो घर की तरफ जल्दी से भागा। जाकर देखा तो लाड़की बुखार से तप रही थी। बुखार तेज था उसका मन किया कि एएनएम बहन जी के पास जाकर दवाई लेकर आए लेकिन वो 4 किलोमीटर दूर था देसी दवा दारू करना शुरू कर दिया बुखार थोड़ा ठीक हुआ शाम हो गई थी । लाड़की ने खाना बनाना शुरू किया तो मनजी ने उसको उठा दिया जबरदस्ती। खाना मैं बना लूंगा तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है खाना बनाया और बड़े प्यार से अपने हाथों से लाड़की को खिलाया और फिर उसको वही काढा रात में देख कर फिर सुला दिया। सोचा था सुबह ठीक हो जाएगी नहीं तो एनएमबीजी से दवाई लेकर आऊंगा सुबह लाड़की बिल्कुल ठीक हो गई बुखार नहीं था बदन में थोड़ी सी कमजोरी महसूस हो रही थी । आज मनजी ने भी खेत नहीं जाने की सोच थी । क्या है , क्यों खेत पर नहीं जाओगे लाड़की ने कहा , खेत पर नहीं जाओगे तो फसल को रोजडे खा जाएंगे । बात उसकी भी सही थी प्रार्थना करता था , रोजडे से बचने के लिए उन्होंने बाड़ लगा रखी थी । आसपास के खेत वालों ने मिलकर यह तय कर रखा था कि हर रात एक मर्द खेतों की रखवाली करेगा । रोजड़ों को भगा देगा आज वैसे भारी मन जी की थी वह किसी दूसरे बारी वाले के घर पर गया और उनसे बात की है उससे अपनी बारी पलट रात में लाड़की के पास ही रहा । लाडकी सुबह उठी तो तबीयत ठीक हो रही थी पर उसको लगा मन जी को काम पर जाना चाहिए दो तीन दिन में लाडकी ठीक हो गई । ठीक होने के बाद भी खेत पर पहले की तरह जाने लगी इधर कभी कबार ऐसा होता कि रुड़की जबरदस्ती खाना लेकर जाने की जिद करने लगी थी और लाड़की को कहती थी अरे चिंता मत कर तेरे मर्द को नहीं छीन लूंगी जानती हूं तुम दोनों के बीच में जबरदस्त प्रेम है इसलिए चिंता मत कर । नहीं मानती थी वो , इधर रुड़की मन ही मन ठान चुकी थी अब तो मंजिल को हासिल करना ही है एक बार फिर वैसा ही कुछ हुआ, आज फिर बुखार आ रहा था उसको । रोटी लेकर नहीं जा पाई थी खेत में सुबह जब मन जी गए थे तो वह बिल्कुल ठीक थी लेकिन मन जी के जाने के बाद अचानक तेज बुखार आया । रुड़की फिर एक बार घर आई थी और खाना साथ लेने के लिए लेकिन आज मजबूरी थी , नहीं जा सकती लाड़की को काढ़ा बनाकर दिया चली गई थी खेत में। एक बोतल महुडा की ले ली थी खेत में और अपने मर्द के साथ उसने मन जी को बुला भेजा । उसने और उसके मरद ने महुआ पी , मन जी नही आया था । वो भी मनजी के पास गई । मन जी को कहा थकान हो रही होगी थोड़ी सी महुडा ले लो , मन जी ने मना कर दिया लेकिन वह नहीं मानी ज़िद कर बैठ गईं और लाड़की की कसम दे दी । मन जी लाड़की की कसम से बंधा हुआ महुडा पी गया । धीरे-धीरे उसको पिलाती रही , नशा होने लगा । अपने मरद को बोली आप चलो मैं इसको टपरी में सुला कर आती हूं । उसका मरद भी अपनी टपरी में जा कर सो गया । ज्यादा नशा होने पर मन जी अपनी टापरी में सो गया । रुड़की उसके साथ वही बैठ गई कुछ देर बाद जब अचानक ही उसकी आंख खुली तो सारा नशा कफूर हो गया था । मन जी ने देखा रुड़की उसके सीने पर सर रख के उपर वाले कपड़े उतारे सो रही थी मंजी मन ही मन घबरा गया यह क्या कर दिया मैंने नशे में रुड़की । इधर लाड़की की तबीयत काफी ठीक हो गई थी तो उसने खेत में आना ठीक समझा खेत पहुंची तो वहां देखकर वह अपनी आंखों पर एक बार विश्वास नहीं कर पाई रुड़की कपड़ों संभालते से अभी भी मुस्कुराती देख रही थी मनजी की तरफ और मन जी आंखें झुकाए है जमीन पर कुकड़ू बैठा था। लाड़की को देखते ही मन जी के होश उड़ गए यह क्या, यह तो अनर्थ हो गया । उधर रुड़की अपने मिशन में कामयाब हो गई थी दोनों के बीच में दरार डालने में, क्योंकि वह मनजी को तभी हासिल कर सकती थी जब दोनों के बीच में दरार पड़े और वह दरार डाल चुकी थी । लाड़की ने कभी कल्पना भी नहीं की थी ऐसा हो सकता है । लाड़की वापस उन्हीं पैरों वापस अपने घर पर पीछे पीछे बेसुध दौड़ता रहा मन जी और उसने कहा कि उसने कुछ भी नहीं किया है । लाड़की को विश्वास नहीं था , लाड़की को लगा मरद जात का कोई भरोसा नहीं है। लाड़की बिल्कुल नहीं मान रही थी और एक ही बात कही यह घर मेरा है खेत मेरा है मेरे बाप ने तुम्हें घर जमाई रखा था अब इस घर से निकल जाओ , आज से तेरा मेरा संबंध खत्म , छेड़ा छुटा। ऐसे ही है जैसे इस्लाम में तीन तलाक हालांकि ऐसा तो नहीं है छोडा-छुटा के लिए पंचायत बुलानी पड़ती है । लाड़की ने पंचायत बुला ली और भरी पंचायत में उसने ऐलान कर दिया मनजी से उसका छेड़ा छुटा । मनजी के पास कोई जवाब नहीं था जो गलती नहीं की थी मनजी उसकी सजा भुगत रहा था । अब क्या करें लेकिन लाड़की नहीं मानी जीवन से हारा सा सब कुछ खोया एक जुआरी सा वहां से उठकर अपने गांव गया । उसने सोचा कुछ दिन में मान जाएगी लाड़की और तब तक मैं अपने गांव में रह लूंगा । गांव पहुंचकर उसे लगा पता चला कि उसकी जमीन उसके तीनों चाचा ने हड़प ली उसके घर पर भी कब्जा कर लिया था जब पहुंचा तो तीनों ने उसे मारपीट कर घर से भगा दिया और कहा इस गांव में अब उसके लिए कोई जगह नहीं। वह घर जमाई बन के अपने सारे हक हो चुका है उसके पास आसमान ना कोई छात ही और ना ही घर कई दिन तक हो पागलों की तरह यूं ही भटकता रहा उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था उसने पंचायत बुलाई और पंचायत में अपनी बात रखी 4 बीघा खेत जो धनजी ने मनजी के बाप का था उसका दावा उसने पंचायत के सामने रखा खेत क्या था हाईवे से सटा बिल्कुल एकदम सोना उगलने वाली जमीन । पहले हाईवे नहीं हुआ करता था लेकिन इतने वर्षों में वहां से अहमदाबाद के लिए हाईवे निकल गया था पंचायत ने पूरी बात सुनी और फैसला मनजी के हक में दिया थोड़ा राहत महसूस कर रहा था । बीच में कई बार लाड़की को मनाने जा चुका था लेकिन लाड़की ने कहा अब कोई संबंध नहीं है वो नही मानी।
अपने खेत में अब काम भी तो करना जरूरी था हाईवे पर निकलने वाले ट्रकों को देखकर उसके मन में अचानक ख्याल आया कमाई का बहुत अच्छा जरिया हो सकता है और मैं खाना तो बहुत अच्छा बनाता हूं क्यों ना एक छोटा सा ढाबा खोल लोगों को खाना खिला लूंगा तो पुण्य भी मिलेगा। शायद इस बात से लाड़की राजी हो जाए । उसने इधर उधर से कर्जा लेकर कुछ बर्तन खरीदे टापरी में ढाबा शुरू कर दिया और ढाबे का नाम रखा लाडकी _मनजी । धीरे-धीरे करके बहुत अच्छा चलाने लगा था ढाबा । उसके बाद भी लाडकी को मनाने की कोशिश कर चुका था लेकिन लड़की नही मानी थी। दिन निकल गए ऐसे ही लाड़की अपने खेत में खुद काम करने लगी थी । मन जी अपने खेत में मक्का के साथ अब उड़द बोता था उड़द की दाल और मक्का की रोटी मक्का की बाटी बस यही वह ढाबे पर आने वाले ग्राहकों को देता था और यही एक अलग चीज थी सब ढाबों से जो लाड़की _मन जी ढाबा को मशहूर कर गई थी। समय के पंख बहुत तेजी से फड़फड़ाने लगते हैं।
पांच बरस कब बीत गए पता नहीं चला अचानक पता चला कि गांव में कोई अनजान सी बीमारी आई है लोग खास खास के मर रहे हैं। उसने अपने गांव में देखा उसके तीनों चाचा चाची उनके भाई और कई गांव वाले इसी बीमारी की वजह से मर गए थे । अजब बात तो यह थी कि अब इस बीमारी से मरने वालों को कोई कांधा देने को तैयार नहीं था । घर का कोई एक आदमी किसी भी तरह से लाश को उठाकर शमशान ले जा रहा था। वो वहां चला गया , देखते-देखते आधे से ज्यादा गांव खाली हो गया । उसको लाड़की की चिंता हो रही थी तभी उसके ढाबे की ओर रुड़की का मर्द भागा भागा आया था । थोड़ा दूर से ही उसने बोला मन जी गांव में बहुत बड़ी बीमारी आई है । मेरी रुड़की सहित आधे से ज्यादा गांव के लोग मर गए हैं मेरे भी वह बीमारी लग गई है । तू मेरे पास मत आना । सुन तेरी लाड़की को यही बीमारी हो गई है। वह खांस खाना के तड़प रही है। तू कुछ कर सकता है तो कर ले।
इतना सुनते ही मन जी ढाबा जैसे था वैसे के वैसे छोड़कर लाड़की के गांव भाग गया । देखा लाडकी बुरी हालत में थी सांस लेने में तकलीफ हो रही थी मन जी ने बिना देर किए लiड़की को कंधे पर उठाया और भागा एन जी की तरफ। एन एन एम बहिन जी ने कहा एक नई बीमारी है इसका इलाज मेरे पास नहीं है या तो डूंगरपुर ले जाओ या फिर अहमदाबाद । मन जी ने अहमदाबाद जाना ज्यादा सही समझा और बस कंधे पर उठाए भागा। अहमदाबाद की ओर बीच रास्ते में उसको एक ट्रक मिल गया ट्रक वाले से हाथ जोड़कर विनती की तो उसने सामान के साथ पीछे बिठाकर उनको अहमदाबाद पहुंचा दिया । अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल में लाड़की को भर्ती करा दिया कोई 15 दिन बाद लाडकी ठीक हो रही थी । लड़की को छुट्टी दे दी और यही कहा दवाइयां लेते रहो बिल्कुल ठीक हो जाएगी । सांस लेने में थोड़ी तकलीफ तो होती थी लेकिन लाड़की बिल्कुल ठीक थी लेकिन लाड़की की तीमारदारी करते-करते मनजी अब उसी बीमारी की पकड़ में आ गया था। लाड़की ने डॉक्टर से कहा मैं तो ठीक हो गई लेकिन मन जी को देखो अस्पताल में बिस्तर की कमी थी बिल्कुल नहीं मिल रहा था बिस्तर । डॉक्टर ने मना किया लेकिन लाडकी की ज़िद के आगे प्रभु ने भी हार मान ली । और डॉक्टर ने जमीन पर ही एक बिस्तर दे दिया ऑक्सीजन लगा दी दवाई शुरू कर दी। कोई 15 दिन निकल गए मंजी की हालत और ज्यादा बिगड़ती गई डॉक्टर ने कहा फेफड़े बिल्कुल खत्म हो चुके हैं हमारे पास इलाज अब कुछ नहीं है। भगवान से प्रार्थना करो पर ऐसे कठिन समय में भगवान भी निश्चित होकर बैठ जाता है निष्ठुर होकर बैठ जाता है । नहीं सुनी लाड़की की प्रार्थना उसने और मन जी काल के गाल में समा गया। लाड़की बदहवास पागलों की तरह चिल्लाए जा रही थी रोए जा रही थी तभी अस्पताल वालों ने लाश उसके सुपुर्द करते कहा इसलिए जाकर जल्दी से इसका अंतिम संस्कार कर दो नहीं तो और लोगों को भी बीमारी लगेगी । लाडकी को कुछ नहीं मालूम वो तो मन जी की लाश को कंधों पर उठाकर वह बद हवास से अपने गांव की तरफ दोड़ने लगी। अचानक उसे क्या सूझा एक हाथ रेडी उसको दिख गई , उसने हाथ रेडी पर मन जी की लाश को डाला और धक्का देती तो गांव की तरफ दौड़ने लग गई । इस तरह लाश को ले जाते देख पुलिस वालों ने रोका लेकिन वो नहीं मानी भागती रही , राजस्थान बॉर्डर पर पहुंचकर पुलिस की बेरी केटिंग के सामने वह हताश हो गई । लेकिन जब पुलिस वालों ने उसको रोकने की कोशिश की तो न जाने क्या सूझा मन जी की लाश को कांधे पर उठा लिया । क्योंकि सड़क से लेकर नहीं जा सकती थी इसलिए उसने एक बार मन जी की लाश को अपने कंधे पर उठाये भाग गई जंगल की तरफ । कुछ दूर पुलिस वाले दौड़े फिर पुलिस वालों ने सोचा कौन जाएगा इसके पीछे , वैसे भी इस बीमारी से सभी डरे से थे । भागते भागते लाडकी थक गई थी एक पेड़ की छाया में बैठ गई की लाश को लेकर । थोड़ी देर सुस्ता कर फिर से हिम्मत की और कंधे पर लाश उठाई फिर जल्दी और पहुंच गई मन जी के ढाबे । बद हवास सी लाड़की ने देखा ढाबे का नाम लाडकी_ मन जी । लाडकी को मनजी की चिता के लिए लकड़ियां नहीं मिल रही थी । ढाबे में जो लकड़ियां थी उन सबको इकट्ठा किया कुछ लकड़ियां और बीन कर ढाबे के बगल में मन जी का अंतिम संस्कार कर दिया और उसी ढाबे में बैठकर रोती रही । सोचती रही मंजी की जगह मुझे क्यों नहीं बताई मुझे क्यों नहीं मौत आई कई बार बीच में यह भी खयाल आया मन जी को लेकर मैं इतना परेशान क्यों हूं मेरा तो मन जी से अब कोई रिश्ता नहीं रहा था ना छेड़ा छुटा हो गया था न फिर , लेकिन मन ही मन में एक बात आई छेड़ा छुट्टा कह देने भर से दिल के रिश्ते खत्म नहीं होते। मंजी तो मेरी नस नस में बसा है खून जो नसों में दौड़ रहा है वह मन जी ही तो है । मुझे जीना है मंजी के लिए , मैं ढाबे को चलाऊंगी और अब ढाबे का नाम केवल मनजी होगा ।
एक दिन रुड़की का मरद उधर से निकला तो उसने लाडकी को बताया की मरते मरते रुड़की ने बताया था कि मन जी ने उसके साथ कुछ नहीं किया था वो खुद ही मन जी के सोने के बाद जानबूझकर उस तरह से लेट गई थी । तुम या कोई ओर देखे और हंगामा हो जाए । तेरे और मन जी के बीच छेड़ा छुट्टा हो जाए ।
उसके कर्मों का फल उसको मिल गया लेकिन लाड़की तुमने तो कोई खोटा काम भी नहीं किया था फिर तेरे को ये सजा। इधर लाड़की पश्चाताप में जलने लगी थी आज फिर दूज का चांद था मुस्कुराता सा लाड़की की न समझी पर।