"दस्तक दिल पर" किश्त-11
मैं उसके घर की गली में प्रवेश कर गया था। आस पड़ोस में अभी भी जाग थी। मैंने उसे मैसेज किया “आस पड़ोसी जाग रहे हैं, कोई देखेगा तो?”
“आप आ तो जाओ, मैं गेट पर खड़ी हूँ।”
मैं जल्दी जल्दी से कदम बढ़ा के उसके घर प्रवेश कर गया। उसने घर को लॉक किया। हम ड्राइंग रूम में ही बैठ गए। मैं उस से नज़रें नहीं मिला पा रहा था। वो मेरे दिल का हाल समझ रही थी। मैं संयत हो जाऊँ ऐसा सोच उसने कहा, “मैं चाय बना लाती हूँ, आप तब तक कोई गाना चलाइये, छोड़िये मैं लगा जाती हूँ।” उसने गाना चला दिया “चलो दिलदार चलो , चाँद के पार चलो।” वो बोली “मुझे ये गाना बहुत पसंद है।” और ये कह कर वो किचन में चली गई। गाना बज रहा था, और मैं सपनीली चाँद वाली रात के उस नाव वाले सीन में खो गया।
वो चाय ले आई थी, कुछ स्नैक्स भी थे, हम दोनों चाय पी रहे थे। एक दो चुस्कियाँ ली थीं कि वो बोली, “रुको मजा नहीं आ रहा।” वो उठी और दो प्यालियाँ उठा लाई, बोली “अब इसमें डालकर पीते हैं, सुड़कने के बिना चाय पीने का स्वाद ही नहीं आता।”
उसके ये कहने पर हम दोनों की हंसी छूट गई, और माहौल हल्का हो गया, अब मैं थोड़ा सा संयत महसूस कर रहा था। उसने कहा आओ झूले पर चलते हैं, हम दोनों उठकर छत की ओर चल पड़े, वो आगे थी मैं पीछे था। उसका भरा हुआ बदन देखना अच्छा लगता था मुझे।
उसने पूछा, "यूँ पीछे पीछे क्यों चलते हो?"
मैंने कहा बाबू को बेस पसन्द है। चुप गन्दे कहीं के, मार खानी है आपको, चलो अब आप आगे चलो, मैं पीछे चलती हूँ। हम दोनों हँसने लगे, और मैं आगे चल पड़ा।
छत पर पिछली रात की तरह चाँदनी छिटकी पड़ी थी। रोशनियाँ बरकरार थीं, आज उसके गिर्द शॉल नहीं लिपटा था। हम दोनों झूले पर बैठ गए, मैंने पैरों से झूले को हल्की जुम्बिश दे दी थी। वो बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी। मैं भी बहुत संयत था, और अपने आप को संभाले था, कहीं पिछली रात जैसा ना कर बैठूँ।
हम दोनों ही खामोश थे, उसने कहा आपने "कभी पहले यूँ चाँद को निहारा है अपनी पत्नी के साथ?" मैंने कहा "नहीं इसके लिए मन में इच्छा होनी चाहिए कि दोनों बैठकर चाँद निहारें....पर उसे ये समय की बर्बादी लगती है।" उसने कहा "हमारे साथ भी यहाँ बैठने के लिए किसी के पास समय नहीं। हमने ये इसलिए लगवाया था कि इस पर बैठकर देर रात तक चाँद देखें और बहुत प्यारे गाने सुनें। चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो……., जैसे"
मैंने कहा "हम एक गाना सुनें?"
उसने कहा, "हाँ, पर आवाज कम रखना"
मैंने मोबाइल पर गाना चला दिया, “चाँदनी रात में एक बार तुम्हें देखा है...ख़ुद पे इतराते हुए.... ख़ुद से शरमाते हुए....”, गाना चल रहा था और मैं उसे बताता जा रहा था, "ये गाना फ़िल्म दिल ए नादान का है। 1982 में आई थी ये फ़िल्म, हीरो राजेश खन्ना और हीरोइन जयाप्रदा", वो हंसने लगी "आप गूगल बाबा हो, आपको कोई भी गाना बताओ, आप उसका सारा आगा पीछा बता देते हो", हम हंसने लगे।
गाने का अंतरा बदल गया था, “तूने चेहरे पे झुकाया चेहरा.....मैंने हाथों से छुपाया चेहरा.....लाज से शरम से घबराते हुए.....” ये सुन हम दोनों ही खामोश हो गए,कल का वाकया याद हों आया था। मैंने कनखियों से देखा उसका चेहरा लजा गया था, वो खुद को असहज महसूस कर रही थी, मैं भी पानी पानी था। मैं ही बेवकूफ था, बिना सोचे समझे गाना बजा दिया। उसे असहज हुए देख मैंने उसे कहा, "चलिए नीचे चलते हैं ठंड बढ़ गई है।"
शायद वो तो इसी बात का इंतजार कर रही थी, वो झट से झूले से उतर गई, इस बार मैं जानकर, आगे आगे हो लिया। पीछे हल्के हल्के झूलते हुए झूला अकेला रह गया था।
हम दोनों फिर से ड्राइंग रूम में आ बैठे थे, तब तक माहौल कुछ शांत हो आया था, वो सहज हो चली थी, हम दोनों में सामान्य बातचीत शुरू हो गई थी, वो मेरे ऑफ़िस का पूछ रही थी, मैंने कहा "ये कल पूछ लेना आज करने को बहुत बातें हैं।" वो हँसने लगी फिर पूछा "अच्छा आप ये जोड़ बाकी कहाँ से ले आते हो?"
मैंने पूछा "कौन से जोड़ बाकी?" , वो बोली "12 नम्बर 24 नम्बर…..?" , हम दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े, हुआ यूँ था कि मैंने उससे एक बार फ़ोटो मांगी थी, वो कार मैं बैठी थी, उसने सीट बेल्ट लगाया हुआ था, उसने क्रीम कलर का सूट पहना था, उसके कपड़े सीट बेल्ट से कुछ असहज हो गए थे, मैंने मैसेज किया “ आपकी ये पिक आप भी डिलिट कर दो मैं भी कर रहा हूँ।”
उसका मैसेज आया “ क्यूँ इसमें क्या खराबी है,।”
“ इसमें आपका ऊपर का 12 नम्बर नुमाया हो रहा है, इसलिए हम ऐसी पिक आपकी नहीं देख सकते।”
“ ये 12 नम्बर क्या होता है?”, तो मैंने बताया, “व्हाट्सएप के इमोजी में जो पहला सेट है उसके नीचे से 24 नम्बर पर जो इमोजी लगा है, वो 24 नम्बर होता 12 और 12।” , उसने कहा “ देखती हूँ।” उसके बाद उसका मैसेज आया “बदमाश, पिक डिलिट करो अभी, आज के बाद हम आपको कभी पिक नहीं देंगे👿👿👿👿👿👿🐍🐍🐍🦀।” और मेरा हँस हँसकर बुरा हाल हो गया था।
हम दोनों ही उस वक़्त हँस रहे थे, उसने मुझसे पूछा "आप कह रहे थे आपकी पत्नी से आपके सम्बंध अच्छे नहीं!" , मैंने कहा "हाँ", तो उसने पूछा "आप कोठेवाली के पास जाओ, कभी गए नहीं वहाँ?" , मुझे तो सच ही बोलना था, बोल दिया "एक बार गया था, साथी लोग जिद करके ले गए । लेकिन वहाँ का माहौल देखकर ही मुझे घृणा हो गई, मैं उनको वहीं छोड़कर चला आया।"
मेरी साफ़गोई पर वो मुझे एकटक देखने लगी, उसने कहा “आपकी यही सच्चाई आप को सभी से अलग खड़ा कर देती है, हमें आपका सच बोलना बहुत पसंद है।”
मैंने कहा “ जो औरत आधी रात को मुझे विश्वास करके घर बुला सकती है, उसके सामने झूठ बोलूँगा तो ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा मुझे।” वो कुछ देर तक चुप रही।
मैंने कहा "मुझे आपका हाथ पकड़ना है", उसने कहा "पकड़ो", मैं काफी देर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठा रहा, कमरे में सन्नाटा था, रसोई से फ्रिज़ चलने की आवाज़ आ रही थी, हम दोनों को ही कुछ नहीं सूझ रहा था, सवा ग्यारह बज चुके थे, मेरी 12 बजे की ट्रैन थी, मैने घड़ी देखी उसे कहा “मैं 11.40 पर निकल जाऊंगा, आप ओला कैब कर देना।” उसने कहा "ठीक है।"
उसने बताया "हमारे घर के पास एक कुआँ है।”
मैंने कहा “ मुझे आपकी गोद में सर रखकर लेटना है।”
“उसने कहा कल जैसी हरकत की तो, हम आपका चाकू से खून कर देंगे।”
मैंने कहा “फिर आपको जेल हो जाएगी, मेरे खून के इल्जाम में, लाश कहाँ ठिकाने लगाओगी आप।”
“हम आपकी लाश को कुएँ में डाल देंगे, लेकिन एक समस्या है, कुआँ भर गया है।”
“ऐसी कितनी लाशें आपने उसमें डाल दीं कि कुआँ भर गया।” मेरी ये बात सुनकर हम दोनों बहुत हँसे…., हँसते ही गए।
जब दोनों इज़ी हुए तो उसने गाना चला दिया “आज जाने की ज़िद ना करो, यूँ ही पहलू में बैठे रहो, आज जाने……...।” माहौल बहुत ही भारी हो गया था, दोनों बस जुदाई के ग़म से दुखी हो रहे थे, जो कुछ मिनट्स में ही हो जानी थी। एक खामोशी पूरे माहौल में फैल गई थी, वो फ्रिज़ की आवाज़ अब हमें गले पर चलती आरी सी लग रही थी। गाना ख़त्म हो गया था, पर दोनों चुप थे, उसने मोबाइल पर उंगलिया चलाई और, मेरे लिए कैब बुक कर दी जो कुछ ही देर में आने वाली थी।
उसने कहा "अपना सामान सम्भाल लें, अभी आपको जाना होगा" , मैं उसकी गोद से उठ बैठा, मैंने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया, और कहा “मैं, नहीं जा रहा, मुझे रोक लो यहीं, प्लीज़.... मैं नहीं जाऊँगा।”
“जाना तो पड़ेगा आपको, कुछ देर में ओला भी आने वाली है, और आज रोक भी लूँ तो क्या .... जाना तो होगा ही आपको।”
मैं फिर बोला “नहीं, मैं नहीं जा रहा, रोक लो मुझे मैं सुबह चार वाली ट्रेन से चला जाऊँगा, रोक लो ना प्लीज़।”
इतने में बाहर से हॉर्न की आवाज आई, उसने कहा “लो आपकी कैब आ गई।”
संजय नायक 'शिल्प'
क्रमशः