Dastak Dil Par - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 4

दस्तक दिल पर- किश्त 4

मैं होटल के कमरे में आ गया था, सोने के लिए कम्बल में घुस गया था, रह रहकर पूरी रात आंखों के आगे घूम रही थी, मैंने आँखें जोर से बंद कर ली , पर उसका हथेलियों से ढका हुआ चेहरा बार बार सामने आ रहा था।दिल बैठा जाता था, मैंने बहुत बड़ी बेवकूफी कर दी थी, मैं ये भी नहीं कह सकता था कि शराब के नशे में हुआ सब, क्योंकि जिस वक्त मैंने वो शर्मिंदगी भरी हरकत की थी, उस वक़्त तो नशा कब का काफूर हो चुका था अगर शराब के नशे में ही मैंने वो हरकत की होती तो बहुत पहले ही कर चुका होता, हालांकि जो हो गया था उसे मैं बदल नहीं सकता था, फिर भी मुझे पश्चाताप था ।

मैंने पिछले दो दिनों के घटनाक्रम को याद किया, मुझे परसों रात का वाकया याद आया जब हम एक दूसरे से दो हाथ की दूरी पर थे और एक दूजे को देख भी नहीं पाए थे, बहुत दुख हुआ था दोंनो को ही।

उस दिन वो ,उसका भाई, और उसकी बेटी तीनों बस स्टॉप पर आए थे, उसकी बेटी को अपनी दीवाली की छुट्टियां काटकर अपने होस्टल जाना था, तो वो और उसका भाई उसे बस में बिठाने आये थे।
इत्तेफाकन उसी वक़्त मैं उसके शहर में बस से उतरा था, रात का एक बजे रहा था, मैंने बस से उतरने से पहले मोबाइल चेक किया वो ऑनलाइन दिख रही थी , मैंने मैसेज छोड़ दिया था, मैसेज था “.......”
उसका तुरन्त रिप्लाई आया “कहाँ”
“बस स्टॉप अभी बस से उतरा”
“मैं भी यहीं हूँ”
“अच्छा वाह! पर आप यहां कैसे?”
“बेटी होस्टल जा रही है, उसे छोड़ने आये हैं, बेटी को बस में बैठा दिया वापस जा रहे हैं”
“जा रहें हैं? कौन है साथ मैं , कैसे आए?”
“कार से आये हैं, विक्रम भैया साथ हैं हम तीसरे गेट से निकल रहे हैं, आप उधर आ जाओ, एक झलक देख लूं आपकी, आँखे तरस रही हैं आपको देखने को, आ जाओ ना जल्दी से”
“आता हूँ, पर पहचानूंगा कैसे ,कैसी कार है?”
“सफेद स्विफ्ट डिजायर गाड़ी नम्बर MH 12 GV 0902 हमने ब्लू साड़ी पहनी है आपके पसन्दीदा रंग वाली”
“बस पहुंचा, पलक झपकते ही।”
मैं दौड़ कर गेट नम्बर तीन पर पहुंचा सफेद स्विफ्ट डिजायर पर नजरें दौड़ा रहा था, सारी सफेद कारें मुझे स्विफ्ट डिजायर ही लग रही थी पर वो MH 12 GV 0902 कहीं नजर नहीं आई।

मैंने मैसेज किया “किधर रह गये?”
“हम तो निकल गए अभी वहीं से तुलसी रोड़ मुड़ गए, आप नहीं दिखे हमारा बहुत मन था आपको देखने का हम हजारों चेहरों में आपको ढूंढते रह गए पर वो चेहरा नहीं दिखा, जो हमें देखना था...😢”
दिल धक्क से बैठ गया मैसेज किया “ओह आप निकल गए, मेरे इतने नजदीक से निकल गए, काश आपकी कार भी दिख जाती तो आपको देखने जितना सुकून मिल जाता…..”
“हमारा भी मन खराब हो गया है, आंख भर आईं है , मैं जा रही हूं बाय सुबह बात करूंगी, आप होटल ले लो”

“ हाँ ठीक है जाइये गुड नाईट, बाय” मैं मेसेज करने के बाद कोई घण्टे भर खड़ा रहा वहाँ।

कदम उठ ही नहीं रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझसे बहुत दूर चली गई , पास से ही होकर बिना मिले, बस आने जाने वाली हर सफेद गाड़ी पर नजर पड़ रही थी।

तभी मैसेज आया “होटल पहुंच गए आराम से” “नहीं ना”
“क्यूँ ? फिर कहाँ हो?”
“यहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा , बस आती जाती सफेद गाड़ियां देख रहा हूँ”
“अरे! पागल हो आप ? इतनी ठंड में एक घण्टे से खड़े हो, बीमार होना है क्या?, जाओ होटल, मैं मेसेज नहीं करती तो यहीं खड़े रहते रात भर…..”
“जाता हूँ , सुनिये मिस यू”
“मिस यू टू, जाइये होटल जाकर मेसेज करना”

मैं भीगी हुई आंखें लिए हुए होटल के लिए चल पड़ा होटल पहुँच कर उसे मैसेज किया कि होटल पहुंच गया हूँ , तो उसका मेसेज आया "ठीक है, सो जाओ बहुत रात हो गई, आपको भी सुबह ऑफिस जाना होगा मुझे भी जाना है, आज शाम को घर आ जाना, मैं बता दूंगी अगर बुलाना हुआ तो।"

मेरे दिमाग मे सारी घटना फ्लैश बेक की तरह घूम रही थी कि घण्टी बज उठी, उसने कहा वो ऑफिस जा रही है बीच बीच में मैसेज करेगी, मुझे भी समय से निकल जाने का बोला , बिस्तर से उठ खड़ा हुआ, और ऑफिस जाने की तैयारियों में जुट गया।

संजय नायक"शिल्प"
क्रमशः

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