"दस्तक दिल पर" किश्त-8
ऑफ़िस में उस दिन काम ज़्यादा रहा, मुझे फुरसत ही नहीं मिल रही थी.... मैं उसे बहुत से मैसेज भेजना चाहता था, माफ़ी माँगना चाहता था। कहीं न कहीं उसके सम्मानित नारीत्व को मैंने ठेस पहुंचाई थी। क्या किसी औरत का पुरुष को चाहना इतना ही है कि जब भी वो अकेले में आधी रात को हमारे साथ हो और हम पर पूर्ण विश्वास कर, हमें घर बुला ले तो इसका मतलब यही है कि हम उसे पाना चाहें या यह समझ लें कि वो समर्पण कर रही है....?
शायद उसके विश्वास को तोड़ दिया था मैंने, मैं भी उन्हीं बाकी दुनियावी पुरुषों की भीड़ में शामिल हो गया था, जो स्त्री की नज़दीकी का फ़ायदा उठाना चाहते हैं। लेकिन यह सच नहीं था, मैं उसकी मर्यादा भंग नहीं करना चाहता था, बस मुझे उस पर प्यार आ गया था। इसलिए मुझसे वैसा हो गया था। मैं उसे ये सब बताना चाहता था। पर उसका मैसेज आये तो कुछ कहुँ, कल रात के लिए माफी माँग लूँ।
दो रात की नींद के कारण मन अनमना सा हो रहा था। रह रह कर कई बार नींद के झटके आ चुके थे, मगर उसका एक भी मैसेज नहीं आया था, वो मुझे बहुत अखर रहा था, मैं उसके इतने करीब होकर भी शायद बहुत दूर हो गया था। क्या हमारे प्यार की गहराई सतही ही थी कि एक थेपेड़ा भी नहीं सह पाई, मगर मुझे उस पर जाने क्यों इतना विश्वास था कि वो मुझसे नफ़रत नहीं करेगी। हमने एक दूजे के सुख दुख साझा किए थे।
जब वो बीमार थी तब उसे मैंने बहुत मानसिक सहारा दिया था दूर रहकर। उसके पास रहकर सेवा नहीं कर सकता था...और जब मैं बीमार हुआ था तो वो केवल मेरी फ़िक्र कर सकती थी, ना मुझे पूछ सकती थी तबियत कैसी है, ना मुझे देखने आ सकती थी।
उस वक़्त वो बहुत परेशान रही थी , मुझे पता है दो दिन तो उसने खाना भी नहीं खाया था ढंग से, शायद भूखी ही रही हो। मैं उसे केवल इतना मैसेज कर पाया था , बहुत बीमार हो गया हूँ, हॉस्पिटलाइज़्ड हो गया हूँ। मैसेज मत करना जब भी इज़ी हुआ मैं आपको मैसेज कर दूंगा। उस एक मैसेज ने उसे कितना बेचैन कर दिया था, ये उसने बताया था मुझे।
मैं जानता था, वो असहज हो गई होगी, पर मुझसे खफ़ा तो नहीं थी, मुझे आशा थी उसका मैसेज जरूर आएगा। मेरी आशा को उसने टूटने नहीं दिया था, लंच के ठीक पहले उसका मैसेज आया। “खाना हो गया आपका? आज बिज़ी रही मैं , कुछ क्लेम आये थे उन्हें क्लियर करना था। आज मुझे बार बार नींद के झटके आ रहे हैं, आपका भी यही हाल होगा। खैर काम तो करना ही है, आपका काम कहाँ तक पहुंचा? जल्दी अपना काम निबटा लेना, आज आपको जाना भी है ना? काम से फ्री होकर मैसेज करना अभी मत करना , अभी मेरे पास असिस्टेंट बैठे हैं। उनके सामने यूँ बार बार मोबाइल पर मैसेज देखना अच्छा नहीं लगता।”
उसका मैसेज पढ़कर मन में कुछ राहत आई पर मिलने का उसने अभी तक नहीं लिखा था, क्या वो नहीं मिलना चाहती थी? पर उसका मैसेज जिस प्रकार का था वो मुझे ख़फ़ा तो किसी भी प्रकार से नहीं लग रही थी। मैं उसके मैसेज को कोई दस बार पढ़ गया था। हो सकता हो वो बिज़ी रही हो , कोई बात नहीं मुझे जल्दी से काम निबटाना था।
मैं लंच के बाद अपने काम मे मसरूफ़ हो गया था रह रहकर उसके बालों में उंगलियां फिराना याद आ रहा था कितने घने और सुंदर बाल थे उसके। इसी सोच विचार में कब पाँच बज गए पता ही नहीं चला। मेरा काम ख़त्म नहीं हुआ था और मुझे काम निबटाना था। उसका मैसेज आया था “हम घर के लिए निकल रहे हैं , आपका काम निबटा या नहीं , जैसे ही काम निबट जाए हमें मैसेज करना हमें आपसे बहुत सी बात करनी हैं।”
“ओके, अभी तो काम में लगा हूँ , फ्री होते ही मैसेज करूँगा, मुझे आज काम ज़्यादा है।”
उसके बाद उसका मैसेज नहीं आया। मैं भी बिज़ी हो गया, कोई सात बजे जाकर काम ख़त्म हुआ। मैं ऑफ़िस से निकला, साथी लोग जा चुके थे, सब होटल पहुंच गए थे। मैंने ऑटो करने से पहले उसे मैसेज किया “मैं फ्री हो गया हूँ।” मैसेज अनसीन रहा। मैंने फिर मैसेज किया “अभी ऑफिस के बाहर ही हूँ , ऑटो नहीं किया है, आपके यहाँ आना है कि नहीं ? ” फिर अनसीन रहा। “ठीक है होटल जा रहा हूँ।” फिर अनसीन। अब मेरे सब्र का बाँध टूट गया था , मैंने कॉल किया, नहीं उठा, एक कॉल, दो कॉल तीन कॉल…..।
मेरे मन में नाराज़गी और क्रोध दोनों आ गए। मैंने ऑटो किया और होटल के लिए निकल गया, स्क्वायर सर्किल निकल गया था, आंखें नम हो गईं थीं, न मेरा मैसेज देख रही है ,ना फ़ोन उठा रही है। मुझे ख़ुद पर बहुत गुस्सा था, अपने किये के लिए ख़ुद को कभी माफ़ नहीं करूंगा।आज के बाद इस मुई शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा, उसके पास गया तो अपनी नीच मानसिकता दिखा डाली, मैंने उसका दिल तोड़ दिया।
मेरे ख़यालों का सैलाब उठता जा रहा था, मन में एक दर्द दूध के उफान की तरह उठता जा रहा था, लग रहा था कि छलक जाएगा मगर तभी उसके फ़ोन ने मेरे दिल के विचारों में उफनते हुए दूध में पानी का सा काम किया , मैंने झट से फ़ोन पिक किया, वो उनींदी थी, “सॉरी आपका मैसेज और फ़ोन नहीं देखा। हमें बहुत ज़ोर से नींद आ गई थी। आप कहाँ हो इस समय, होटल पहुँच गए क्या?
“रास्ते में हूँ पहुंचने वाला हूँ।”
“गन्दे यहां आ जाते।”
“अच्छा..... बिना बुलाये ही कैसे आ जाता, आप पड़ोसियों से पिटवा नहीं देती मुझे?”
“हाँ ये तो है।”
“तो कैसे आता....सुनिये मुझे लगा था, रात वाली बात से नाराज़ हो इसलिए फ़ोन नहीं उठा रही, मैं बहुत दुखी हो गया था , इसलिए मैं होटल जा रहा था।”
“ठीक है, होटल से बोरिया बिस्तर समेटो, और यहाँ आ जाओ। यहीं से स्टेशन चले जाना, मैं ओला कैब कर दूंगी। नाराज नहीं हूं, पर आपसे ये उम्मीद नहीं की थी। आप हमारी पसंद हो, औरों जैसे नहीं हो, इसलिए हमें अजीब लगा कि आप भी सब जैसे कैसे हो गए....हमें पता है आप दुबारा वैसा नहीं करोगे।”
उसकी ये बात सुन मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा, उसने मेरी हरकत को माफ़ कर दिया था। मुझे उसके साथ फिर आज समय गुजारने का मौका मिल गया था, मेरे लिए उससे बढ़कर कुछ नहीं था।
मैं उड़कर उसके पास पहुँच जाना चाहता था। मेरा ऑटो होटल पहुँच गया था । मैं साथियों के पास पहुँचा, वो सब कमरे में बोतल खोले बैठे थे। एक बोला “लो शेर भी आ गया, इसका भी पैग बना दो।”
“नहीं, मेरा नहीं बनाना, आज मेरा पीने का मूड नहीं है, आज मुझे ट्रेन से जाना है। रिजर्वेशन नहीं है तो अच्छा नहीं लगेगा।”
“यार एक पैग तो ले लो।” “नहीं यार एक भी नहीं, तुम लोगों का हो गया तो खाना मंगवा लें ?”
“मंगवा लो।”
मैं खाना खाकर जाना चाहता था, तब तक उसके मोहल्ले के लोग भी घरों में घुस जाएँगे। यूँ सबके जागते मुझसे नहीं जाया जायेगा। हमने खाना निबटाया मैंने अपना बैग उठाया, और निकलने लगा, साथी बोला “तुम्हारी ट्रेन तो बारह बजे की है, अभी तो साढ़े आठ हुए हैं, अभी कहाँ?”
“किसी मिलने वाले के यहाँ जाना है वहीं स्टेशन के नजदीक ही रहता है। बार बार फ़ोन कर रहा है इसलिए वहीं से निकल जाऊंगा।”
मैंने बहाना बना दिया , मैं होटल से बाहर आ गया, ऑटो किया और बैठ गया, उसे मैसेज किया “आ रहा हूँ ऑटो में हूँ।”
“अड्रेस सही बताया है ना, कहीं कल की तरह इधर उधर घूम कर ही समय मत निकाल देना,😊😊😊😇😇।”
“😄😄😂😂🤗👻,आ रहा हूँ, अब आपके घर का रास्ता कभी नहीं भूल सकता मैं।”
“आ जाओ, मैं इन्तज़ार कर रही हूं बेसब्री से, आज तो नहीं पिए हुए हो ना बेवड़े।”
“नहीं पीया।”
कुछ देर में उसका मैसेज आया “मेरे घर कोई आया है, आप कहाँ तक पहुंचे? मेरे मैसेज आने तक मत आना। उनके जाने के बाद मैसेज कर पाऊंगी, तभी आना घर से दूर कहीं उतर जाओ।”
मुझे धक्का लगा , मेरे अरमानों पर पानी पड़ गया था, इतनी रात गए कोई आएगा तो कैसे जाएगा जल्दी, मैं ऑटो छोड़कर इधर उधर बेवजह घूम रहा था, 9.15 हो गए थे, उसका मैसेज नहीं आया था, वो ऑनलाइन भी नहीं दिख रही थी। मैंने मैसेज किया “.........” मैसेज अनसीन रहा , मैं बेकरार हो गया था।
संजय नायक"शिल्प"
क्रमशः