दस्तक दिल पर - भाग 7 Sanjay Nayak Shilp द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दस्तक दिल पर - भाग 7

"दस्तक दिल पर" किश्त-7


कितनी मुक़म्मल मुलाक़ात हुई थी वो ...साठ मिनट क्या थे, एक पूरा आकाशगंगा का चक्कर था। ज़िन्दगी छोटी पड़ जाती है ऐसी मुलाक़ातों के लिये। ख़ैर उस मुक़म्मल मुलाक़ात के बाद की दूसरी मुलाक़ात ने बहुत तड़पाया मुझे....मुझे ही नहीं उसे भी तड़पाया। उस साठ मिनट की मुलाक़ात के बाद मैं दूसरे शहर होकर अपने घर आ गया था। शायद अगली मुलाक़ात का संयोग जल्दी ही निश्चित किया था ईश्वर ने।


ठीक पाँचवे दिन ही मुझे फिर अपने क्षेत्रीय कार्यालय जाना पड़ा, इस बार अकेला नहीं था, कुछ और साथी भी थे। हम उसके ऑफ़िस जाने के बाद ही अपने ऑफ़िस पहुँचे थे। ख़ैर मुझे सुबह उसकी टैक्सी में मिलने का मौका तो नहीं मिलने वाला था, पर मैंने उसे बता दिया था कि तुम्हारे ही शहर में हूँ, तो उसने कहा "मेरे मन की मुराद पूरी हो गई। तुम मिलो ना मिलो यहाँ रहते हो तो मौसम ख़ुशनुमा लगता है।"


मैंने उसे बताया, साथियों के साथ हूँ, ऑफ़िस में काम है। तो उसने कहा "आराम से काम करो, आज मैं भी अकेली नहीं हूँ। हमारी सहकर्मी की टैक्सी वाला बीमार है, तो वो भी इन दिनों मेरे साथ ही टैक्सी पूल कर रही है। आज हमें जल्दी ही घर लौटना है, पर बीच बीच मे मैसेज करते रहेंगे आपको।"


हम दोनों ही अपने काम में बिज़ी हो गए थे। मुझे पता ही नहीं चला कब तीन बज गए। मैंने मोबाइल चैक किया उसका भी कोई मैसेज नहीं था। मैंने मैसेज किया “.........”, कोई पाँच मिनट बाद रिप्लाई आया, “हम पाँच मिनट में निकल रहें हैं, ऑफिस में आज हमारी मीटिंग थी, तो आपसे बात नहीं हों पाई माफ़ कर दीजिए।”


“माफ़ी जैसा कुछ नहीं, पर आपको देखने का मन है, बेशक दूर से ही सही। क्या आपके ऑफ़िस के सामने आकर खड़ें हो जाएँ, आपको ऑफ़िस से निकलते देख लें?”


“आप पागल हो क्या, कैसे कॉलेज के बच्चों जैसी हरकतें करने पर उतारू हो। वहाँ नहीं आना आप, हमारे साथ हमारी कलीग है, हम उसी मोड़ से गुजरेंगे जहाँ पर आपके ऑफ़िस का मोड़….।”


“ठीक है, स्क्वायर सर्किल.... मैं आ रहा हूँ उधर, आप ऑफ़िस से निकलते ही मैसेज करना।” “ओके,😊😊।”


मैं तुरन्त ऑफ़िस से निकलकर स्क्वायर सर्किल की ओर बढ़ चला। जानता था उसे आने में अभी समय लगेगा पर मैं नहीं चाहता था कि उसको वहाँ से गुज़रते हुए देखना मिस करूँ। मैं बार बार मोबाइल चैक कर रहा था, मैसेज का इंतजार था। मैं स्क्वायर सर्किल पर पहुंच गया था, मेरे माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहा आई थी। मन मे अजीब सी हलचल मची थी। उसका चेहरा बार बार आँखों के आगे आ रहा था। बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार था, मैसेज का भी, उसका भी। मैंने उसे मैसेज लिखने के लिए मोबाइल को जेब से निकाला तभी उसका मैसेज चमक गया, शायद उसे मेरे दिल की छटपटाहट महसूस हो गई थी, “हम , निकल गए हैं, आप कहाँ हो।”


“स्क्वायर सर्किल”।”


“ओके,🙏🙏।”


मैं रह रह कर हर आती जाती टैक्सी को नज़र गड़ाकर देख रहा था। उसकी टैक्सी नज़र नहीं आ रही थी , दूर तक नज़र जाकर लौट आती थी।


उसका मैसेज आया “बस गुज़रने वाले हैं।”


मैं एकदम चौकस होकर बैठ गया, जैसे कि एक पंछी भी वहाँ से मुझे नज़र आए बिना न निकल जाए । अचानक वो टैक्सी दूर से नज़र आई। दिल धड़क कर मेरे मुँह को आ गया। जैसे बरसों के अकाल पीड़ित को पानी का आबसार (झरना) मिल गया हो। मैं पल पल पास आती टैक्सी को निहार रहा था। मेरी पुतलियाँ फैल गईं थीं, मैं उस पल को आँखों में हमेशा के लिए भर लेना चाहता था।

वो पल भी आया जब वो बिल्कुल सामने थी। मैं उसकी झलक भर देख आया, वो भी यहाँ वहाँ मुझे खोज रही थी। टैक्सी आँखों से दूर चली गई।


उसका मैसेज आया “आप किधर रह गए, हम तो सर्किल से आगे निकल आये ।”


“मैंने आपको देखा आप येल्लो कलर का सूट पहने थी, और सफेद चुन्नी थी, आप मुझे नहीं देख पाई, पर मैंने आपको देख लिया, बहुत अच्छा लगा आपको देखना।”


“ओह…, आप गन्दे हो, जाने कहाँ छुपकर खड़े थे, हमें भी देखना था आपको, आप सच में बहुत बुरे हो,😢😢😢😣😣, कुट्टा 😷।”


“मैं तो चाहता था आप भी देखती हमें, पर शायद ये मुलाक़ात मुक़म्मल नहीं होनी थी, क्या करें? पर आप ये बात बात पर कुट्टा मत हुआ कीजिये, कभी हम अब्बा बन गए तो,😃😃।”


“चुप गन्दे कहीं के, हमे ये वाहियात बात अच्छी नहीं लगती, पर सच बात ये है हम आपको देखना चाहते थे। बहुत हसरत थी, आपको देखने की, आप हमारे पास थे फिर भी आपको आज देखना हमारे भाग्य में नहीं था। ख़ैर बाय... मैं आपको फ्री होकर मैसेज करूंगी, आज ही जा रहे हो क्या।”


“हाँ, आज ही जाना होगा।”


“जाओ, कुट्टा, कुट्टा, कुट्टा…...।” “आप तो तीन बार कुट्टा ऐसे कह रही जैसे तीन……!!!” “चुप, गन्दे कहीं के...😔😔।”


ये थी हमारी पिछली मुलाक़ात, एक अधूरी मुलाक़ात, जो हमें तड़पा गई थी। ये स्क्वायर सर्किल हमारे जीवन का एक घेरा बन गया था, जो हमें गोल गोल घुमा रहा था। हम उसी मोड़, उसी सर्किल की ओर जा रहे थे। जैसे जैसे वो सर्किल नजदीक आ रहा था, हमारे दिल मे कुलबुलाहट शुरू हो जाती है, हम लेट हो गए थे अब तक उसकी टैक्सी वहाँ से निकल गई होगी।


हमें पिछली रात का झूला और उसका शॉल बहुत याद आ रहा था, उसके खुले बाल….., बाल….. बाल से हमें याद आया उसका हेयर बेंड , अरे हाँ उसका हेयर बैंड तो अभी भी मैंने कलाई में ही पहना हुआ था । नहाते वक़्त मुझे याद था वो उतारना था, मगर जल्दबाज़ी में उतारना भूल गया । मैंने चुपके से , वो अपने शर्ट की बाज़ू के नीचे छुपा लिया। साथी लोग देखते तो बेवजह की मज़ाक़ बन कर रह जाती।


हमारी टैक्सी उस मोड़ से घूम गई थी, मेरा मन बहुत ही बेचैन हुआ था वहाँ से गुज़रते हुए। जानता था कि वो वहाँ से पहले ही गुज़र चुकी है…….। फिर भी जाने किस आस में बार बार वहाँ से आती जाती टैक्सियों पर नज़र जा रही थी।


उसका मैसेज नहीं आया था, क्या कल रात के वाकये ने उसे मुझसे दूर कर दिया है? अगर दूर कर दिया था तो सुबह मैसेज क्यों किया? क्या वो मुझसे खफ़ा है? आज मिलने का कहा था मिल पाएगी कि नहीं? ऐसे जाने कितने ही सवाल मन में थे, और सभी सवालों का जवाब उसका मैसेज था जो कि नहीं आया था, मुझे इन्तज़ार था उसके मैसेज का, मेरा ऑफ़िस आ गया था। और हम ऑफ़िस में चले गए।


संजय नायक"शिल्प"