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लकीर...

जब मैं चार पाँच साल की रही हूँगीं,तब मैंने उन्हें पहली बार तुलसिया दाई के मंदिर में नाचते हुए देखा था,मैं अपनी पड़ोस वाली आण्टी के साथ उस मंदिर में गई थीं,तब मुझे समझ नहीं आया था कि मर्दाना लिबास में कोई मर्द भला कैसें मंदिर में नाच सकता है,मुझे वो बात बिलकुल भी समझ नहीं आई थी क्योंकि वो बात मेरी समझ से परे थी,मैं उन्हें ध्यान से देख रही थी,उन्होंने लहंगा-चुन्नी पहना था,नाक में नथ भी पहनी थी,वकायदा श्रृंगार करके वें देवी के सामने नृत्य कर रहे थें,वें कभी आरती की थाली लेकर माता की आरती उतारने लगते तो कभी शंख फूँकने लगते,वो दृश्य मुझे आज भी अपनी आँखों के सामने वैसा ही दिखाई देता है,जब पूजा समाप्त हुई तो मैंने रास्ते में आण्टी से पूछा....
आण्टी!वो कौन था?
बेटा कौन?,तुम किसकी बात कर रही हो?आण्टी ने पूछा...
वही जो औरतों के कपड़े पहनकर नाच रहा था,मैं बोली...
वो...वो तो लक्ष्मी था,उसका यही काम है,वो शादी-ब्याह में भी नाचता है,आण्टी बोलीं...
लेकिन एक आदमी होकर औरतों वाले कपड़ें पहनकर भला कैसें कोई नाच सकता है? ,मैंने पूछा...
बेटा!नाचना उसका शौक है,उसको इन सभी का पैसा भी तो मिलता है,आण्टी बोली....
उस समय आण्टी की बात कुछ कुछ ही मेरे भेजे में घुसी थी,पूरी तरह से नहीं,मैं उधेड़बुन में थी,मैं चाह रही थी कि कोई मेरी उलझन को सुलझाने में मेरी मदद करें,मैंने ये बात मम्मी से भी कही तो वें बोलीं कि किसी किसी को इस तरह से नाचने का शौक होता है.....
बचपन मन था इसलिए बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा थी,लेकिन जब किसी के मुँह से सही उत्तर ना मिला तो जिज्ञासा बेचारी भला क्या करती?वो भी पतली गली पकड़कर निकल गई,ऐसे ही कुछ दिन और बीते,शादियों का मौसम आया तो मैंने अपने घर की छत से बनियों की एक बारात जाते देखी,आगे दूल्हा पीछे पीछे बराती और बरातियों के पीछे बनियों की महिलाएँ और महिलाओं के पीछे लक्ष्मी नाचते हुए चला जा रहा था,जो बात मैं भूल चुकी थी लक्ष्मी को देखते ही वो फिर से मेरे दिमाग में उथल पुथल मचा गई...
फिर धीरे धीरे मेरे मन ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि ऐसा कुछ भी हो सकता है,फिर जब थोड़ी बड़ी हुई तो इस विषय पर सहेलियों से बातचीत हुई,उन्होंने भी कहा कि वें भी लक्ष्मी को बचपन से नाचते हुए देखतीं आई हैं,कभी किसी मंदिर में तो कभी किसी शादी में,इसके बाद मैंने भी इसे सामान्य सी ही बात मान ली,फिर कुछ समय बाद लक्ष्मी के बारें में और भी बातें पता चलीं,तब तो मौका नहीं मिला उसके बारें में लिखने का लेकिन आज मैं जब लिखने में समर्थ हूँ तो लिख ही देती हूँ....
लक्ष्मी गरीब माँ-बाप का इकलौता बेटा था, बचपन से ही उसे गाने का शौक था,मंदिर वगैरह में ऐसा गजब का भजन गाता कि लोंग भाव विभोर हो जाते, गाने के इसी जुनून के चलते लक्ष्मी घर से भागकर एक नाच पार्टी में शामिल हो गया,कुछ दिनों के प्रशिक्षण के बाद नाच का पक्का नचनिया बन गया,कस्बे के सबसे अमीर नारायण सेठ,जिनकी टाँकीज थी,जहाँ मैने उस दौर की बहुत सी फिल्में देखीं हैं अपने परिवार के साथ और उनकी कई धान की मिलें भी थीं,उनकी बेटे की शादी में लक्ष्मी ने फुल मेकअप के साथ पहली बार नाच किया था,खूबसूरत नाक नक्श और होठों की हँसी ने घराती-बाराती सभी के ऊपर कहर ढा दिया था, नगाड़े और हारमोनियम की जुगलबंदी की लहर में लक्ष्मी ने जब घेरवाले लहँगें और बड़ी सी नथ पहनकर नाच किया तो लोगों की आँखें खुली की खुली रह गई,सब बोले वाह....क्या कटीली नचनिया है?
लक्ष्मी के नाम के साथ ही उस नाच पार्टी का नाम ''लक्ष्मी नाच पार्टी'' हो गया, लोग अपने घर के शादी-ब्याह में लक्ष्मी का नाच कराने में अपनी शान मानने लगे,उन दिनों न जाने कितनों ने अपनी मुराद पूरी होने पर काली माई, हनुमान जी के सामने लक्ष्मी का नाच कराने की मनौती मानी थी,समय के साथ साथ लक्ष्मी की शौहरत और समृद्धि बढ़ी,कई पीढ़ियों की दरिद्रता दूर हो गई, फिर नाच के कम्पनी के मालिक की बेटी से लक्ष्मी की शादी हुई, अपनी ही शादी में लक्ष्मी पहले जी भर कर नाचा तब जाकर कहीं फेरे लिए, समय के साथ लक्ष्मी का घर दो बेटों और एक बेटी से भर गया, अब लक्ष्मी बहुत व्यस्त रहने लगा,नाच ही उसके लिए सब कुछ था, बच्चे बड़े हुए, दोनों बेटों की शादी भी हो गई,लक्ष्मी उन शादियों में मेहमान के ही तौर पर शामिल हुआ, जब लक्ष्मी के बाबूजी गुजरे तो वो किसी शादी में नाच रहा था और माँ की मृत्यु के समय अग्रवाल बनिया के यहाँ सोहर गा रहा था और जब उसकी पत्नी मरी तो वो मणिकान्त उपाध्याय के बहू के स्वागत में बधाई गा रहा था,
इधर लक्ष्मी के बड़े बेटे ने शहर में अपनी कपड़ो की दुकान खोल ली थी और छोटा बेटा दलहन का व्यापार करने लगा था,दोनों ही बेटों का अच्छे अच्छे लोगों के साथ उठना बैठना था,दोनों की बहुत बड़े बड़े सेठों के साथ दोस्ती थी, बेटों की सामाजिक हैसियत बदल गई थी इसलिए अब उन्हें लक्ष्मी का नाचना-गाना अच्छा नहीं लगता था,वे नचनिया का बेटा कहा जाना पसंद नहीं करते थे, इसके लिए वे कई बार लक्ष्मी को समझा चुके थे,लेकिन लक्ष्मी भी बहुत ढ़ीट था,वों बेटों की गाली-गलौज चुपचाप सुनता और नाचता रहता, परेशान होकर बेटों ने उसे उसके ही बनाएं तिमंजिला मकान से बाहर निकाल दिया, बिना किसी शिकवा-शिकायत के लक्ष्मी एक किराएँ के मकान में रहने लगा,उसने सबकुछ छोड़ दिया बस एक ही इच्छा रह गई थी और वो थी बिटिया का ब्याह,जिसके लिए वो फिर आखिरी दम तक नाचता गाता रहा,
लड़कों का ब्याह तो धन-दौलत के बल पर हो गया पर बिटिया के ब्याह में लक्ष्मी का नचनिया होना बाधा बन गया,लक्ष्मी को अपने सम्मान पर कलंक मानते हुए दोनों बेटे उस पर अपना गुस्सा उतारने लगे थे,लक्ष्मी भी समझ नहीं पा रहा था कि न जाने कितने लोगों की बेटियों के ब्याह में वो नाचता रहा,पर उसकी ही बेटी के ब्याह में उसका नचनिया होना बाधा कैसे बन गया? अब दोनों बेटे उस पर हाथ भी उठाने लगे थे,
बिटिया के ब्याह की बात कहीं बन नहीं पा रही थी,इसलिए बेटों ने उससे अपने सारे संबंध तोड़ लिए, उसके बाद किसी ने लक्ष्मी को नाचते-गाते तो क्या बोलते भी नहीं देखा,
इधर बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद आखिर एक रिश्ता मिल ही गया बिटिया के लिए ,लेकिन दोनों बेटों ने लक्ष्मी को ना ही बताया और ना ही बुलाया,लड़के वालों के घर तिलक की शानदार तैयारी की गई थी, जलपान के बाद तिलक का कार्यक्रम शुरू हुआ,लक्ष्मी का बड़ा बेटा जैसे ही लड़के को तिलक लगाने के लिए उठा वैसे ही लड़के के दादा ने उसे टोकते हुए कहा....
मेरे पोते की शादी में लक्ष्मी का ही नाच अवश्य होना चाहिए,सुना है आपके तरफ लक्ष्मी का नाच बहुत मशहूर है....
अब लक्ष्मी के बड़े बेटे को लड़के की ये बात माननी पड़ी और उसने लक्ष्मी को नाच के लिए राजी कर लिया ,लेकिन साथ में ये भी कहा कि वो कभी किसी को नहीं बताएगा कि तुम हमारे बाप हो,लक्ष्मी ने ये शर्त स्वीकार कर ली क्योंकि वो अपनी बिटिया की खुशी चाहता था और ब्याह वाले रोज वो ब्याह में नाचने आया,लक्ष्मी के नाचने-गाने को लेकर उसके बेटों का यह रवैया आम बात थी,, पर आज जिस तरह से वे उसके साथ पेश आए थे,इतने की उम्मीद लक्ष्मी को कतई नहीं थी, पर लक्ष्मी तो लक्ष्मी था, उसे कुछ नहीं चाहिए था, चाहे दुख पड़े या सुख वो सिर्फ गाएँगा और नाचेंगा, तुरंत ही सब कुछ भुला कर लक्ष्मी अपनी बिटिया के ब्याह में जीभर के नाचा और फिर अपने कमरें लौट आया,उधर बिटिया का ब्याह हो रहा था और इधर लक्ष्मी फूट फूटकर रो रहा था और बिटिया की विदा हुई और इधर लक्ष्मी भी दुनिया से विदा हो गया,लेकिन उसने उस लकीर को पार नहीं किया जो उसके लिए उसके बेटों ने खीचीं थी.....

सत्य घटना पर आधारित कहानी.....

समाप्त.....
सरोज वर्मा......


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