चलते जाओ खुद से प्रीत जोड़ Yogesh Kanava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चलते जाओ खुद से प्रीत जोड़

कई दिनों से नेहा का कोई जवाब नहीं आ रहा था। रोहन रोजाना उसे गुडमार्निग मैसेज करता था। वो पहले तो सोचता था कि वो संभवतः अपने पति के डर के कारण मैसेज नहीं करती होगी किन्तु लगातार कई दिनों से इस प्रकार मैसेज नहीं आने पर वो थोड़ा सशंकित होने लगा। सोचने लगा। आखिर क्या कारण हो सकता है ? उसके जवाब नहीं देने का। कहीं ऐसा तो नहीं कि वो मुझसे मित्रता ही नहीं रखना चाहती हो, किन्तु अगले ही पल उसका दिल कहता है मित्रता की शुरूआत उसकी ओर से ही हुई थी ना। उसी ने पहल की थी, उसी ने कहा था सर आप बहुत अच्छे हैं। कितने अच्छे से आप काम समझाते हैं। वो ही चाहती थी कि उसको पूरा काम सिखाया जाए। हालांकि यह भी सच की वो मुझे भी अच्छी लगती है। बहुत अच्छी लगती है और उसमें सम्भानाएँ भी काफी हैं। उसमें काम करने की ललक है। उसकी इसी ललक और उसमें दिखती संभावना के कारण ही मैंने भी तो उसे सिखाने का जिम्मा लिया था। धीरे-धीरे यही मुलाकात कुछ-कुछ अपनापन लाने लगी। रोहन बैठा सोच रहा था।

यह सच है कि वो विवाहिता है, और मैं भी। किन्तु मित्रता के लिए कोई वर्जना नहीं है, मैं भी उसकी मित्रता पाकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित था। उसके एक-एक कॉल के और मैसेज को पूरी तन्मयता से देखता था। उसके मैसेज कोई टॉनिक काम करते थे, मैसेज पढ़ते ही अदृश्य ऊर्जा का संचरण मुझमें हो जाता था और दुगने उत्साह से मैं काम करने लग जाता था। रोहन कुछ इस प्रकार बीते हुए दिनों को सोच रहा था कि अचानक ही फोन की घंटी बज उठी। सरकारी फोन की धन धनाती घंटी थोड़ी सी तेज, तन्द्रा तोड़ने के लिए काफी होती है। उसने धीरे से फोन उठाकर से रिसीवर लगाया। वो केवल जी सर, जी सर, कहता रहा, लगता है उसके किसी उच्चाधिकारी का फोन था। जिस पर उसे सख्त हिदायत या डांट सुनने को मिल रही थी। बड़बड़ाते से उसने फोन का रिसीवर क्रेडिल पर पटका अैार घंटी बजाई, चपरासी को कोई फाइल लेकर आने का आदेश देकर वो बेचैनी के साथ किसी दूसरी फाइल के पन्ने पलटने लगा। उस फाइल पर उसे आज ही कोई निर्णय देना था। वो उस फाइल में डूब गया तभी नेहा आई । सर आपने ये फाइल मंगवाई थी। हूँ बैठो, और वो फिर उसी फाइल में खोया रहा, नेहा बैठी रही, जब कुछ देर हो गई तो नेहा बोली सर देर लगे तो मैं कुछ और काम निपटा लूँ। वो कुछ नहीं बोला, नेहा उठकर चली गई । नेहा का यह व्यवहार उसके समझ के बाहर था, वो भी दिन थे जब नेहा दीवानी सी उसके कमरे से जाने का नाम ही नहीं लेती थी और अब वो ही नेहा इस तरह का व्यवहार कर रही है आखिर क्यों । सर पकड़कर चुपचाप बैठा रहा, धीरे - धीरे यादों के सपनों ने उसे घेर लिया। 

नेहा उसे सर बोलती थी और रोहन ने उसे केवल रोहन बोलने को कहा था वो एक बार शर्म से रोहन बोली तो उसके गालों की रंगत बदल चुकी थी । शर्म से सुर्ख हो गए थे, और लजाई आँखों से वो नीचे देख रही थी, रोहन ने उसके कँधे पर हाथ रखा तो सिमट सी गई थी, लेकिन भीतर ही भीतर वो चाह रही थी कि रोहन उसे बाँहों में ले ले, किन्तु रोहन ने ऐसा नहीं किया, उसने कहा देखो जब तक तुम नहीं चाहोगी मैं कुछ नहीं करूँगा। मैं जानता हूँ हम दोनों ही विवाहित हं,ै और जो कुछ भी होगा वो भावनाओं में बह कर नहीं हो सकता है । इसलिए मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिस पर हमें कल पश्चाताप हो, मन में कोई टीस हो। उसकी यह बात नेहा को और करीब ले आई। नेहा अब काफी सारा वक़्त उसके साथ ही गुज़ारने के लिए तैयार रहती थी। जब भी समय मिलता वो चुपचाप रोहन के कमरे मे आ जाती थी। कभी-कभी रोहन भी उसके कमरे में किसी न किसी बहाने चला जाता था। पर वो दोनों ही जानते थे इस तरह से आने का कारण, बाकी लोगों को इसकी कोई भनक तक नहीं थी, वैसे रोहन सहृदय व्यक्ति था। सभी से खुलकर बातचीत करता था एक दम बिन्दास। इसी बिन्दासपणे के कारण कई बार गलतफमियाँ भी होती आयी थी, लेकिन वो अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहता था । वो कहता था जीवन का हर पल अनमोल है, हर पल मैं अपने ही तरीके से जीना चाहता हूँ। चाहे कोई मेरे साथ चले या ना चले। मेरे बारे में कोई क्या सोचता है, मैं इसकी परवाह नहीं करता हूँ। मैं लोगों के हिसाब से अपना जीवन क्यों जीऊँ, मेरा अपना अस्तित्व है, मैं अपने ही तरीके से जीवन को देखता हूँ । किसी पर अपनी बात, अपना जीवन दर्शन थोपता तो नहीं हूँ, और ना ही साथ चलने को कहता हूँ। ये सब बातें तो मैं अपनी पत्नी पर भी नहीं थोपता हूँ । क्यों थोपूं उसका अपना जीवन है, अपनी सोच है, और मैं वही करता जो मेरा दिल कहता है। नेहा उसके करीब आ चुकी थी वैचारिक तरीके से नेहा को खुलापन पसन्द था । वो भी काफी खुली विचारों वाली महिला थी। वो अचानक ही इस प्रकार रोहन से दूरी बनाकर क्यों चल रही थी? रोहन को समझ नहीं आ रहा था। अचानक आज रोहन ने उसे पूछ ही लिया कि वो उसके मैसेज का जवाब क्यों नहीं देती है? जवाब सुनकर रोहन एकदम सकते में आ गया, वो बोली - मैं बहुत खुले विचारों की ज़रूर हूँ लेकिन आपकी तरह लस्टी नहीं हूँ। आप बेहद लस्टी हैं जो मुझे पसन्द नहीं है। वैसे भी सभी लोग आपके लिए यही कहते हैं। नेहा के इन्हीं शब्दों ने उसे अन्दर तक तोड़ दिया, वो कुछ भी नहीं वो सोच रहा था उसके मन में आज तक कभी भी इस तरह की बात नहीं आई लस्टी होता तो कब का ही कुछ..........वो कुर्सी पर बैठा रहा एकदम संवेदना शून्य। उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। हँसमुख रोहन को इस तरह चुप बैठा देख सभी चकित थे। वो आखिर इस प्रकार से गुमसुम क्यों लगा है? सभी खुसर फुसर कर रहे थे तभी रोहन की चेतना जागी वो फिर से संयत होने की कोशिश करने लगा । वो नहीं चाहता था कि कोई उसके भीतर के दर्द को जाने, वो नेहा को भी अपना दर्द बताना नहीं चाहता था इसलिए उसने मुस्कराते हुए एक बार फिर से नेहा को ही दूसरी फाईल देते हुए कहा, इसे देखो यह आज ही निपटानी है। परसों ही हाई कोर्ट में इसका जवाब देना है, जरा ध्यान से देखना, ज़रूरी है। 

नेहा भीतर ही भीतर सोच रही थी किस मिट्टी का बना है ? इतना कहने क बाद भी मुझे ही काम दे रहा है, शायद उसे अभी भी मेरे से उम्मीद बाकी है। लगता है उसे अभी और झाड़ना पड़ेगा। वो सोच रही थी और फाइल का काम करती रही। हाई कोर्ट में जवाब दिया गया और रोहन ने सारा श्रेय नेहा को दिया। सबके सामने उसने कहा- इतना परफेक्ट जवाब नेहा के कारण ही संभव था, इट्स एक्सीलेन्ट जाब,एक्सीलेन्ट इसलिए कि नेहा का इस प्रकार का यह पहला अनुभव था उसने पहले कभी इस प्रकार के केस को कभी डील नहीं किया था। सभी लोग नेहा की तारीफ कर रहे थे केवल नेहा सोच रही थी सब कुछ तो इसने करवाया है इसी के कारण तो मैं यह सब कर पायी हूँ, और सारा श्रेय मुझे दे रहा है । क्या मस्का लगा रहा है तरीका अच्छा है। और उधर रोहन नेहा के व्यवहार के कारण, उसके कहे बोलों के कारण भीतर - भीतर ही एकदम टूटा हुआ बस अपने कमरे की और धीरे - धीरे सधे कदमों से जाता हुआ सोच रहा था, मैं जिसके साथ में अच्छा व्यवहार करता हूँ वो ऐसा ही क्यों हो जाता है ? क्या मैं वाकई लस्टी हूँ ?- भीतर से दिल की आवाज़ आई नहीं तुम लस्टी नहीं हो, तुम अपना काम करते जाओ पूरी ईमानदारी से कोई तुम्हारा साथ दे, ना दे, साथ चले, ना चले, मत करो किसी से उम्मीद, क्यों करते हो किसी से भी उम्मीद ? हर बार उम्मीद करते हो और चोट खा बैठते हो, रोते हो तड़पते हो, ये ज़माना ऐसा ही है। यहाँ तुम्हें समझने वाला कोई नहीं है । तुम बस चलते चलो खुद से प्रीत जोड़ते, तुम्हारा साथ यहाँ कोई नहीं देगा, तुम्हें कोई नहीं समझेगा यहाँ कोई नहीं ....................... ।