गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 55 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 55


विचार सरिता



बांटने पर ही प्राप्त करने का अधिकार

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।

तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।3/12।।

इसका अर्थ है, हे अर्जुन!यज्ञ द्वारा बढ़ाए देवतागण तुम्हें वांछित भोग प्रदान करेंगे। उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष उनको दिए बिना ही भोगता है,वह निश्चय ही चोर है।

पिछले श्लोकों में यज्ञ के स्वरूप और उसमें अंतर्निहित सामूहिकता, सहयोग और परोपकार भाव की चर्चा की गई। यज्ञ में अर्पित सामग्रियां शहद,घी, फल, जौ, तिल,अक्षत समिधा(प्रज्वलन हेतु लकड़ी) आदि हविष्य सामग्रियां स्वाहा अर्थात सही रीति से देवताओं तक पहुंचती हैं।ये शुद्ध, सात्विक और मूल्यवान पदार्थ पूरे वायुमंडल में सात्विकता का प्रसार करते हैं।

यज्ञ के संबंध में यह मत देवताओं को मानव द्वारा अर्पित भेंट, इससे सृष्टि में देव तत्वों की वृद्धि और पुष्टि तथा इसके माध्यम से मनुष्यों को भी वांछित और उनके लिए आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति से है। कोई संदेह नहीं कि अगर हमें कुछ प्राप्त करना है तो पहले अर्पित करने का भाव मन में लाना होगा और उसे कार्यान्वित करना होगा।

उदाहरण के लिए,वर्षा तब होगी जब धरती पर पर्याप्त संख्या में पेड़ पौधे होंगे, वातावरण वर्षा के अनुकूल होगा, पानी का पर्याप्त मात्रा में वाष्पन और संघनन होगा। प्रदूषण नहीं रहेगा। बादलों से जल प्राप्त करने के लिए स्वाभाविक रूप से समुद्र और नदी आदि जल स्रोतों से वाष्पन आदि प्रक्रियाओं के साथ-साथ मनुष्य को यज्ञ स्वरूप में जल का संरक्षण कर, प्रदूषण न फैला कर वरुण देव को अपनी यह विशेष यज्ञमय भेंट तो देनी ही होगी।

यज्ञ के प्रकारों में यही परोपकार भाव है। परिवार में बना भोजन सबको मिल बांट कर खाने और यहां तक कि द्वार पर आ पहुंचे किसी याचक को इसका अंश प्रदान करने में सामाजिकता,सामूहिकता और परोपकार भाव है। इसमें न सिर्फ भोजन का आनंद है, बल्कि अंतरात्मा तक की तृप्ति है और यज्ञ भाव भी इसमें समाहित है।
भारतीय संस्कृति में बैठकर भोजन करने और संसाधनों के वितरण पर बल दिया गया है। दान की अवधारणा भी इसलिए है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अगर यह भावना आ जाए तो समाज की अनेक समस्याओं का यूं ही हल हो जाएगा।

(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)





डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय