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विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - अंतिम भाग

विश्वास (भाग-40)

गाँव से आ कर भुवन को खाना खिला कर ड्राईवर को भुवन को छोड़ने के लिए भेज दिया। भुवन तो कैब से जा रहा था पर उमेश जी ने नहीं जाने दिया।

उमेश जी ने भुवन के जाने के बाद टीना के लिए नरेन की रिश्ते की बात बताई। उन्होने फिर भुवन और महावीर जी से गुई सब बातें बताई। उमा जी और मीनल की तरफ से हाँ थी। टीना से पूछा तो उसने कहा कि जैसे आप को ठीक लगे। उमा जी तो जानती थी नरेन और टीना के बारे में, बस वो मौका ढूँढ रही थी, भुवन ने खुद ही बात करके सब ते लिए आसान कर दिया।

रात को टीना के दोनो चाचा और चाची ने भी हाँ पर मोहर लगा दी। उमा जी ने खुद फोन किया महावीर जी को।
उमा जी --- कैसे हो महावीर बेटा?
महावीर जी-- जी हम सब ठीक हैं। आप कैसी हैं।
उमा जी-- महावीर बेटा मैं भी ठीक हूँ। तुम अपने पंडित जी से कोई शुभ दिन निकालो दोनो बच्चो की शादी के लिए।
महावीर जी--- माँ जी आपने तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है, मैं जल्दी ही अच्छा सा दिन निकाल कर आपको फोन करता हूँ।

महावीर जी ने सबको यह खुश खबरी सुना दी और उमेश जी फोन पर सबसे पहले भुवन को फोन पर बता रहे थे। भुवन की आँखो के सामने वो दिन आ गया, जब वो पहली बार टीना से मिला था। उसकी बोलती आँखे उसे बहुत अच्छी लगी थी। पापा को उससे इतना लगाव और नरेन का टीना को पसंद करना बताना भुवन के सपने का पूरा होने जैसा था।

वो अपनी इकलौती दोस्त को खोना नहीं चाहता था क्योंकि कहीं ओर उसकी शादी होती तो जरूरी नहीं कि वो उनकी दोस्ती को समझता। यह देख कर कितना अच्छा लगा था। जब टीना ने नरेन को कहा कि "भुवन और मेरी दोस्ती नहीं बदलेगी"। जितना मैं कद्र करता हूँ उसकी दोस्ती की उतनी वो भी करती है।

सब समझते हैं कि मेरी वजह से वो ठीक हुई है, सच तो यह है कि उसकी वजह से मैं डिप्रेशन मैं जाने से बच गया। किसी से मन की बात बोल नहीं पाता था, घर में सबसे बड़ी बेटा हूँ तो अपनी बात कहने में हिचक होती थी। टीनानऔर मैं एक ही दौर ता सामना कर रहे थे तभी एक दूसरे के थोडे से साथ से ही उनकी दोस्ती यहाँ आ पहुँची है।

अभी 6 महीने भुवन को यहीं रह कर पढाना है, दूसरा लेक्चरर आने के बाद ही जा सकता है। "शेरनी खुश है न, तुम दोनो को नाम कहीं नहीं आया"। भुवन ने मैसेज किया। "हाँ, सडू प्रसाद मैं खुश हूँ"। "आप अपना कहो!! टीना ने जवाब दिया"।

"सडू प्रसाद तो शेरनी को खुश देख कर खुश हो जाता है। अब एक बात सुन मेरी, संभव के सामने मत कहना उसके बाप को सडू मत कह देना"। इस बार एक गुस्से वाली इमोजी के साथ भुवन ने मैसेज भेजा।

टीना -- ठीक है नहीं कहूँगी।
भुवन -- गुड गर्ल। शेरनी तू खुश है न?
टीना --- हाँ, मैं खुश हूँ।
भुवन -- गुड। बस मैं यही चाहता हूँ कि मेरे भाई के साथ साथ मेरी दोस्त भी हमेशा खुश रहे।
टीना -- मुझे भरोसा है अपने दोस्त पर।

अगले दिन ही महावीर जी ने सगाई और शादी दोनों की डेट उमेश जी को बता दी। जिसे उमा जी के साथ डिस्कस करके फाइनल कर दी। अब अगले महीने सगाई और 3 महीने बाद शादी करने की तैयारियों में दोनो परिवार जुट गए।

टीना और नरेन की फोन पर बातों की मस्ती चलती रहती। टीना ने एग्जाम पास कर लिया था। अब वो जॉब के साथ आगे पढना चाहती है, जिसके लिए नरेन ने ही कहा है।

नरेन और टीना की सगाई का फंक्शन दिल्ली में ही एक होटल में हुआ। साथ ही गाँव से आए मेहमानो के लिए भी कमरे उसी होटल में बुक किए गए। महावीर जी बिल खुद चुकाना चीहते थे, जो उमा जी ने नहीं माना। दोनो परिवार बहुत खुश थे।

महावीर जी ज्यादा बारात लाने के पक्ष में नहीं थे। सिर्फ बेहद खास लोगो को बिलाया गया। शादी में नरेन, भुवन और रवि कै दोस्त आए तो राजेश और श्याम भी पीछे कैसे रहते!! उम्श जी ने भी अपने रिश्तेदारों और खास लोगो को ही बुलाया। वो नही चाहते थे कि मेहमानों से ज्यादा मेजबान हो।

शादी भी धूमधाम से हो गई। विदाई का टाइम आया तो टीना और उसके परिवार को रोता देख भुवन और नरेन की आँखो में आँसू आ गए।

"माँजी आपकी बिटिया वहाँ भी बिटिया बन कर रहेगी, जैसे चाहेगी वैसे रहेगी, मैं वचन देता हूँ आपतो कि बिटिया की आँख में आँसू नहीं आने दूँगा", महावीर जू वे उमा जी को आश्वस्त किया। " मैं जानती हूँ बेटा, हमारी टीना आपके वहाँ हमेशा खुश रहेगी, बस विदा हो रही है तो आँख भर आयी।

टीना विदा हो कर अपने दोस्त की मेहमान से घर की सदस्य बन कर गृह प्रवेश कर रही थी। साथ ही मन ही मन घर और घर के सभी रिश्तोॆ को अपने दिल और आत्मा से अपनाने का अपने आप से वादा कर रही थी।

बस जिंदगी और दोस्ती का सफर यूँ ही जारी है और जारी रहेगा। (समाप्त)

दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी! जरूर बताएँ। आपके कंमेट की प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद

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