बहू मैं चटोरापन करती तो आज तुम्हारी ये हैसियत ना होती Saroj Prajapati द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बहू मैं चटोरापन करती तो आज तुम्हारी ये हैसियत ना होती

सरला तू तो बड़ी बातों को मन में रखती है। बता रोज हमारे पास बैठती है लेकिन एक बार भी नहीं बताया कि इतवार को तुम कीर्तन करा रहे हो!!


अपनी पड़ोसन के मुंह से कीर्तन की बात सुन सरला जी को कुछ समझ नहीं आया। आता भी कैसे वह तो खुद उसके मुंह से सुन रही थीं कि उसकी बहू इतवार को कीर्तन करा रही है लेकिन घर की इज्जत रखने के लिए वह हंसते हुए बोलीं,


तू भी उड़ा ले मेरे बुढ़ापे का मजाक । तुझे नहीं पता कि आजकल छोटी छोटी बातें भी भूलने लगी हूं। याद होता तो तुझे ना बताती क्या!!


हां कह तो तो सही रही है। याददाश्त तो आजकल मेरी भी कमजोर हो रही है।हे भगवान! देख तेरे साथ बातों में लग गई और बहू ने कहा था टमाटर खत्म है। आते हुए ले आना। देखो तो बातों के चक्कर में कितना समय लगा दिया । चलूं बहु इंतजार कर रही होगी।


कहते हुए विमला जी आगे बढ़ गई और सरला जी अपने घर की ओर।


विमला जी के आगे तो उसने बात बना दी लेकिन उसे बुरा बहुत लग रहा था। उसके घर में कीर्तन और उसे पता भी नहीं। क्या अब घर में उसकी इतनी भी पूछ नहीं। कम से कम बहू एक बार उसे बता तो सकती थी। सलाह लेना तो दूर की बात।


उसे याद है कि वह तो घर की छोटे से छोटे काम में अपनी सास की सलाह लेती।जब भी वह अपनी सास से कुछ पूछती तो सास की आंखों में कैसे चमक आ जाती थी। वो चमक थी मान सम्मान की । उनकी सास भी तो अपने पूरे तजुर्बे के अनुसार उन्हें सलाह देती थीं।


लेकिन उनकी बहू उसके लिए तो सरला जी घर में फालतू सामान के अलावा कुछ और नहीं। हां जब तक घर में सरला जी का बेटा होता। तब थोड़ा बहुत दिखावा कर देती लेकिन उसके जाते ही उनकी तरफ से अपनी नजरें फेर लेती। सरला जी के पति की मृत्यु 2 साल पहले हो चुकी थी। जब तक दोनों पति-पत्नी थे एक दूसरे का सुख दुख बांट लेते और ऐसी छोटी मोटी बातों को दिल से ना लगाते लेकिन अकेले पडने के बाद सरला जी के लिए यह बातें सहन करना आसान ना था।बेटा कभी उनकी मनपसंद चीज खाने के लिए ला देता तो बहू इस बात पर कलह कर देती।कलह से बचने के लिए सरला जी खुद आगे बढ़ बेटे को कहतीबेटा अब मुझसे यह चीजें हजम नहीं होती। मत लाया कर।


लेकिन सरला जी कितनी बातों को अनदेखा करती और कब तक ....!!! शायद अपनी अंतिम सांस तक।उन्हें पता था अब यही उनकी नियति है और घर में शांति बनाने का एकमात्र तरीका।


लेकिन यह क्या!! बहु खुद तो ऐसी ओछी हरकतें करती ही थी। अब अपने बच्चों को भी इस तरह की बातें सिखाने लगी।बाहर से कुछ खाने का सामान मंगवाती तो बच्चे उसे छुपा कर लाते और उसके लेट जाने के बाद ही खाते।


जब भी वह किसी के साथ बैठी होती तो बच्चे उसके आसपास मंडराते और इस बात का ध्यान रखते की दादी अपनी सहेलियों के साथ क्या बातें कर रही है।एक दो बार सरला जी ने बच्चों को खाने पीने की चीजें ले जाते हुए देखकर पूछा भी क्या है!!


तो बच्चे.. बातें बनाते हुए कहते हैं दादी घर का सामान है।हम इसलिए यहां बैठे हैं कि अगर आपको या आपकी सहेली को कोई जरूरत हो तो आवाज ना लगानी पड़ी। सरला जी की पड़ोसने भी सब समझती थी क्योंकि सभी ने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए थे लेकिन कहती कुछ नहीं ।


कह कर वह सरला जी का दिल दुखाना नहीं चाहती थी।एक दो बार सरला जी ने समझाना भी चाहा


बहू अच्छा लगता है क्या!? छोटे बच्चों को तुम यह क्या सिखा रही हो। क्या मैंने खाने पीने की चीजें नहीं देखी! मुझसे यह दुराव छुपाव क्यों!! अगर तू मेरे सामने से कुछ लेकर जाओगी तो क्या मैं बिना दिए छीन कर खा लूंगी।उनके समझाने का भी उनकी बहू उल्टा अर्थ लेती और उन पर ही राशन पानी लेकर चढ़ जाती।


मां जी, आपको तो मेरी हर बात गलत लगती है। आजकल के बच्चों को सिखाने की जरूरत नहीं। जो देखते हैं वहीं करते हैं। रही बात खाने-पीने की तो आपको यह बातें शोभा नहीं देती। अरे अपनी उम्र तो देखिए इस उम्र में भी चटोरापन करोगी तो हमारे ही सिर पर आफत आएगी। आपका क्या!! पड़ जाओगी बिस्तर पर।


बहू मैं चटोरापन करती तो जिस आदमी की अफसरशाही की तनख्वाह तुम हर महीने गिनती हो और जो इतना बड़ा घर लिए बैठी हो वह सब ना होता।


हां सही कहा तुमने आजकल के बच्चे बहुत तेज है। जो देखते हैं, वही सीखते हैं । इस बात को ध्यान रखना। शायद तुम्हें याद दिलाने के लिए मैं रहूं या ना रहूं।


कहते हुए सरला जी की आंखें गीली हो गई।

और इतने सालों बाद आज उनकी वही बहू इतने बड़े मकान के पिछले कमरे में अकेली थीं। उनका वही लाड़ला बेटा जिसे उसने अपनी दादी से चीजें छुपा कर लाने की शिक्षा दी थी। उस पर पूरी ईमानदारी से अमल करता हुआ रोज अपनी बीवी के लिए खाने पीने की चीजों के अलावा कपड़े लत्‌ते लेकर आता है।

हां उसी अंदाज में जैसे उसने सिखाया था। जब दादी का कमरा खुला हो तो उनके कमरे के आगे से मत आना। अगर वह सामने पड़ जाए तो सामान को पीछे छुपा लेना।सच आज उसकी सास यानी कि सरला जी नहीं है उसे यह सब याद दिलाने के लिए लेकिन उसकी जरूरत नहीं उनका पोता उसे भूलने ही नहीं देता।

उसके पास तो अपनी सास की तरह अच्छी सेहेलियां भी तो नहीं क्योंकि उसने अपने पैसों के मद में कभी पड़ोसी व रिश्तेदारों से बनाकर ही नहीं रखी।


अब तो उनका बुढ़ापा और अकेलापन यही उनके दो साथी थे और तब की बातें याद दिलाने के लिए उसका प्यारा लाडला बेटा।


दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना। पढ़कर अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं।


सरोज ✍️