डायरी वाला लव Saroj Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डायरी वाला लव

प्यार का मौसम हर इंसान के जीवन में एक बार जरूर आता है और वह एहसास अपने आप में अनूठा होता है। सारी फिजा प्यार के रंगों से दिलों को छू जाती है ।उसे शब्दों में बयां करना लगभग नामुमकिन होता है।
फिर भी मैंने इसे शब्दों में पिराने की छोटी सी कोशिश की है। मैं शुरू से ही Co.Ed स्कूल में पढ़ी हूं। पढ़ाई लिखाई की बातेंं करना, मिलकर गपशप करना, सीट के लिए झगड़ना, टीचर से एक दूसरे केी शिकायत करना और लंच से पहले ही उसे पीरियड में चुपचाप मिलकर खत्म कर देना। कोई फर्क नहीं पड़ता था कि कौन लड़का किससे बात करता है, कौन किसका दोस्त है। आठवीं तक तेेे सब नॉर्मल था। लेकिन जैसी ही हम नौवीं क्लास में आए तो सब लड़के लड़कियों के हावभााव बदलने लगे। लड़कियों के हेयर स्टाइल बदल गए थे तो लड़कों ने भी अपनेे कपड़ों पर ध्यान देना शुरूूू कर दिया था। ना जाने क्यों अब होंठ कम बोलते थे और नजरे ज्यादा ।अगर अब कोई जराा सा भी मुस्कुरा कर देख लेता तोो भी दिल जोर जोर से धड़कने लगता था। अब लंच मेंेंेंे भी बस यही बातें होती थी कि कौन किससे मिलता है और कौन किसे अच्छा लगता है।
वही क्लास थी, वही स्कूल था ,वहीं सहपाठी थे पर ना जाने क्यों फिजा ही कुछ बदल सी गई थी। शायद किशोर दिलों मेंंंं प्रेम के अंकुर फूटनेेे लगे थे। सब फेंटेसी सा लगता था। मैं भी इससे अलग ना थी। मेरे सीनेे में भी 1 दिल था जो धड़कने लगा था । लेकिन मुझे नाा चाहते हुए भी अपने इस दिल पर काबू रखना था क्योंकि ना जानेे क्यों मुझे हमेशा यूं लगता था कि मेरे पापाा की दो आंखें और कान मेरेेेे आस-पास ही हैै।
ना , ना यह ना समझना, वह मुझ पर हर समय नजर रखते थे। बात ऐसी है कि वह पुलिस में थेे‌। खुद डिसिप्लिन में रहते और सारे घर को भी डिसीप्लिन में रखते। ज्यादा हंसी मजाक उन्हें पसंद ना था। उनके घर मेंं आते ही कर्फ्यू सा लग जाता था। उन्होंने शुरू से ही हमें आदर्श संस्कार ऐसी घुट्टटी पिला दी थी कि चाह कर भी हम ऐसा वैसा नहीं सोच सकते थे।
हां, प्यार बहुत करते थे पापाा हमसे। लेकिन कभी जतातेे नहीं थे । जब हम भाई बहन बीमार हो जाते तो पूरी रात हमारे पास बैठ कर काट देतेे थे। वह तो अपनी नौौकरी के कारण शायद ऐसे हो गए थे।
मम्मी मेरी उनके बिल्कुल उलट सीधीी सादी सी थी। उन्हें घर के काम व फुर्सत में अपनी पड़ोसन सखियों से गप्पे लड़ाना खूब पसंद था और दुनियादारीी से उन्हें कोोई लेना देना ना था। हां पापाा के सामने तो मम्मी की भी बोलती बंद हो जाती थी।
तो अपनेेे घर के इस माहौल को देखते हुए हमनेे तो कसम खा ली थी कि प्यार मोहब्बत के चक्कर में तो बिल्कुुल भी नहीं पड़ेंगे। क्योंकि पापा तो हमें छोड़ेंगेे नहीं और हमारी गऊ जैसी मां मेें इतनी हिम्ममत हींीींीं नहीं थी कि हमें उन के प्रकोप से बचा ले।
लेकिन इस दिल का क्याा करें। जब आसपास सब प्यार के रंगों में डूबे हो तो हम अपने दिल के जज्बातों को कैसे संभाले। लेकिन दिमाग बार-बार आगाह करता 'संभल ले, नहीं तो पापा!'
फिर एक दिन दिलवालेे दुल्हनिया लेे जाएंगे देखते हुए हमें एक आईडिया आया। हमने भी अपने दिल के अरमान प्याार की स्यााही में डुबोकर एक डायरीी में उड़ेलने शुरू कर दिए। लिंििंिंििंि

इन शायरी को लिखकर दिल कोोोो एक सुकून सा मिलनेे लगा और इस बात की तसल्ली भी की हम अपने मम्मी पापा के संस्कारों से कोई अन्याय नहीं कर रहे। अपनीी शायरी वाली डायरी को बहुत सहेज कर, पापा की नजरों से छुपा कर रख दिया।
लेकिन हाय री किस्मत! एक दिन पापा अपने कुछ कागजात ढूंढ रहे थे। हमारी भोली मम्मी उनकी मदद करते हुए पताा नहीं कहां से उन कागजोंंं के साथ साथ साथ वह डायरी की उनके हाथ में दे आई।
उसके बाद तो घर में जो सुनामी आई, पूछो मत। पहलेे तो मम्मी कटघरे में खड़ी की गई कि सारा दिन मोहल्ले भर का हिसाब रखती हो और घर में क्या चल रहा है उसका पता नहीं। डायरी के कितने टुकड़े हुए गिनते नहींं बनता था । सजा के तौर पर पापा ने पूरे 1 सप्ताह तक हम से बात नहीं की।
उस दिन के बाद हमने शेरो शायरी से तौबा करते हुए अपने डायरी वाले लव का दी एंड कर दिया।
सरोज