ऐसी वाणी बोलिए… Saroj Prajapati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ऐसी वाणी बोलिए…

राजेंद्र जी एक साधारण किसान परिवार से थे। बहुत कम उम्र में उनके पिता का निधन हो गया तो बड़ा बेटा होने के कारण सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही आ गई। अपना मां का हाथ बटाने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और सारा ध्यान खेती-बाड़ी में लगा दिया। अपनी सूझबूझ व व्यवहार कुशलता के कारण जल्द ही उन्होंने तरक्की कर ली। अपनी बहनों की शादी अच्छे घर में की। बेटियों की शादी के बाद अच्छी सी लड़की देख कर राजेंद्र की मां ने उसकी शादी भी कर दी। राजेंद्र के दो बेटा वह एक बेटी हुए। अपनी पढ़ाई बीच में ही छूट जाने का उन्हें बहुत अफसोस था इसलिए उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर विशेष ध्यान दिया। उनकी पत्नी भी एक समझदार महिला थी ।जिन्होंने अपने बच्चों को बहुत ही अच्छी परवरिश दी। राजेंद्र जी की व्यवहार कुशलता व मिलनसार व्यवहार के कारण सारे गांव में उनकी बड़ी इज्जत थी।
दोनों ही बच्चें अपनी शिक्षा पूरी कर योग्यता के अनुसार अच्छे पदों पर कार्यरत हो गये।
राजेंद्र जी को अब अपने बेटी की शादी की चिंता थी। वह अपनी बेटी के लिए एक पढ़ा लिखा परिवार चाहते थे । उनकी यह इच्छा जल्द ही पूरी हो गई जब राहुल का रिश्ता उनकी बेटी के लिए आया। राहुल के परिवार में मां के अलावा बड़ा भाई वह भाभी थे और एक बहन जिसकी शादी हो चुकी थी। राहुल ने एमबीए की डिग्री ली हुई थी और बहुत ही अच्छे पद पर कार्यरत था। राहुल का बड़ा भाई रोहित तो किसी समय अपने कॉलेज का टॉपर रहा और इस समय एक कॉलेज में लेक्चरर पद पर कार्यरत था। इतना अच्छा रिश्ता पाकर राजेंद्र जी फूले नहीं समा रहे थे। उन्होंने जल्दी अपनी बेटी की शादी राहुल के साथ कर दी।
शादी से अगले दिन रुचि की सास ने उससे घर के बड़ों के पैर छू आशीर्वाद लेने के लिए कहा। रुचि जैसे ही अपने जेठ जी के पांव छूने लगी। वह पीछे हटते हुए बोले " बस बस सब ठीक है । आज पैर छू रही हो कल तुम ही लड़ती नजर आओगी।" रुचि यह सुन आश्चर्य से उनका मुंह देखती रह गई। समझ नहीं आ रहा था कि यह ऐसा क्यों बोल रहे है। तब उसकी सास ने बात संभालते हुए कहा। "अरे कुछ नहीं बेटा! तुम्हारे जेठ की तो मजाक करने की आदत है।" फिर भी रूचि को अच्छा नहीं लगा। घर के नए सदस्य के साथ कोई ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है। खैर बात आई गई हो गई। शादी की रस्मों से निपट 1 सप्ताह के लिए वह और राहुल हनीमून पर चले गए। वहां से आने के बाद रूचि अपने मायके गई तो सब ने पूछा ससुराल वाले कैसे हैं । तब रुचि ने उस दिन का किस्सा उन्हें सुनाया। तब उसके पापा हंसते हुए बोले "कोई बात नहीं बेटा शायद मजाक ही कर रही होंगें। तुम अपनी तरफ से हमेशा ससुराल वालों का दिल जीतने की कोशिश करना और हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखना क्योंकि यही इंसान को ऊपर उठाती है और यही नजरों से गिरा भी देती है।"
ससुराल में कुछ ही दिनों में रूचि को अपने जेठ का व्यवहार समझ आ गया। वह एक गुस्सैल इंसान थे। बात बात पर अपनी पत्नी पर बिगड़ जाते ।जो मुंह में आता बिना यह देखें की परिवार के लोग सुन रहे हैं बोलते रहते हैं। रुचि ने जेठानी से इस बारे में बात की तो वह बोली "रुचि तुम्हारी तरह मुझे भी शुरू में बहुत अजीब लगता था। मैंने इन्हें एक दो बार प्यार से समझाने की कोशिश भी की। लेकिन इनका अपने गुस्से व जुबान पर कोई कंट्रोल नहीं और इतनी हिम्मत मुझ में नहीं कि मैं इन्हें छोड़ कर चली जाऊं।अब तो आदत ही पड़ गई है।"
एक दिन सुबह-सुबह वह अपनी पत्नी पर किसी बात पर भड़क रहे थे तभी रुचि की सास अपनी बहू की तरफदारी करते हुए बीच में बोल पड़ी तो वह बोले " मां आप चुप ही रहो तो अच्छा!" " मैं ऐसे कैसे चुप रहो यह भी तो इंसान हैं। हर समय तुम बिना सोचे समझे जो मुंह में आता है बोलते जाते हो ।कुछ तो शर्म करो। कॉलेज में बच्चों को क्या शिक्षा देते होंगे। क्या हमने तुझे यही शिक्षा दी थी । तू तो मेरे खून को शर्मिंदा कर रहा है।"
अपनी मां की बातें सुन वह दहाड़ते हुए बोले "मां तुम ,तुम चुप ही रहो। अगर मैंने समय पर तुम पर रुपया पैसा ना लगाया होता तो......!"
"तो मर ही जाती। वह अच्छा था। कम से कम तेरा यह ताना तो बार-बार ना सुनती। देखना एक दिन तेरे घमंडी सर को तेरी औलाद ही नीचा करेगी और तू अपने इस व्यवहार के कारण बुढ़ापे में अकेला खड़ा रह जाएगा।"
उस दिन की घटना के बाद राहुल मां व रूचि के साथ अलग रहने लगा। लेकिन उसके बड़े भाई के व्यवहार में फिर भी कोई अंतर ना आया। जब कभी तीज त्योहार पर आता जली कटी सुना कर चला जाता। राहुल और रुचि ने उससे अपने संबंध लगभग खत्म ही कर लिए थे। हां बच्चों व भाभी से बातचीत होती रहती थी। उनके बच्चे अब कॉलेज में आ गए थे और समझदार भी हो गए थे। अब जब भी उनके पिता उनकी मां से कुछ कहते हैं तो वह बीच में बोलते। नौकरी लगते ही वह अपनी मां को लेकर अलग रहने चले गए।
अपने लोक व्यवहार व वाणी पर संयम ना होने के कारण आज रोहित जीवन संध्या में अकेला था किंतु व्यवहार में उसके अब भी कोई अंतर नहीं आया था।

दोस्तों कुछ लोग पढ़े लिखे तो बहुत होते हैं लेकिन लोक व्यवहार उनमें नाममात्र का भी नहीं होता। अपने घमंड में इतने चूर रहते हैं कि दूसरों को आहत करते हुए उन्हें तनिक भी अफसोस नहीं होता। ऐसे व्यक्ति रोहित की तरह आखिर में अकेले ही खड़े नजर आते हैं। इसलिए बड़े बूढ़ों ने सही ही कहा है कि हमेशा हमें अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए