Prem deewani books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम दीवानी

पूरा सप्ताह काम करने के बाद रविवार हम नौकरीपेशा लोगों के लिए एक ठंडी हवा के झोंके की तरह आ ताजगी भर जाता है । तो मै भी आज सप्ताह भर के काम निबटा दोपहर में इत्मीनान से अपनी पसंदीदा फिल्म देख रही थी कि तभी फोन की घंटी ने ध्यान भंग किया । मैने अनमने मन से फोन उठाया तो उस पर अपनी प्यारी सखी डिम्पल का नाम देख कर मेरी आंखों में चमक आ गई ।मैं फोन रिसीव करते ही बिना कुछ सुने शुरु हो गई " हैलो डिम्पल कैसी है ।इतने सालों बाद आज तुझे मेरी याद आई है ।" ये वाक्य कह मै खुद ही झेंप गई । क्यूंकि मैं खुद भी कहा किसी को फोन करती हूं । सब मुझसे यही शिकयत तो करते हैं । दूसरी तरफ से डिम्पल का गंभीर स्वर सुनाई दिया " प्रेमा ,सुमित नहीं रहा ।" यह सुन सहसा मुझे अपने कानों पर विश्वास न हुआ । " क्या कह रही है तू ! " उसने फिर कहा " सुमित की डेथ हो गई ।" कब , कैसे ? " चार महीने पहले। " फिर उसने संक्षेप में सारी बातें बताई और बोली तू आ जा तुझसे मिलने का बहुत मन कर रहा है । मै भी जल्दी आने का वादा कर निढ़ाल सी वहीं बैठ गई । डिम्पल के साथ बिताए सारे पल आंखों के आगे फिल्म की तरह चलने लगे ।

उससे मेरी दोस्ती छठी कक्षा में हुई । देखते ही देखते हम बेस्ट फ्रेंड बन गए । यूं तो हम दोनों ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे लेकिन उसकी अंग्रेजी मुझसे काफ़ी अच्छी थी ।साथ ही वह बहुत खूबसूरत भी थी । लेकिन थोड़ी झल्ली सी भी थी वो । इसलिए कोई भी उसको उल्लू बना देता था और मै दादी अम्मा की तरह उसके आंसू पोंछ , समझदार बनने की सीख देती रहती । वह भी एक सीधे साधे बच्चें की तरह सिर हिला देती । इस तरह हंसते खेलते हम दोनों ने दसवीं कक्षा में प्रवेश किया । एक दिन स्कूल आते ही वो बोली " सुन एक लड़का कई दिनों से मेरा पीछा कर रहा है और आज तो वो friendship के लिए कह रहा था ।" यह सुनते ही मैं फट पड़ी " तू मुझे आज बता रही है । शादी के बाद बता देती । " और मै चल दी । " अरे यार सुन न , तू ही नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा ।"
" और तू समझ रही है । ये हमारी दसवीं क्लास है यानी बोर्ड अग्जाम और तू इश्क के चक्कर में पड़कर अपना साल बर्बाद करना चाहती है ।"
" यार समझ ऐसा कुछ नहीं है । मुझे भी पता है ये साल हमारा टर्निंग पॉइंट है । तू बस मेरे साथ एक बार चल ।"
" कौन है वो ?" मैने पूछा ।
" वो हमारी सीनियर है न रोमा उसका भाई है ।"
" उस नकचढ़ी का भाई ! फिर तो वो भी वैसा ही होगा ।"
" नहीं प्रेमा वो तो एकदम हीरो है ।" डिम्पल चहकते हुए बोली ।
" और तेरा हीरो करता क्या है ?"
" बहुत बड़ा शोरूम है उनका ।शायद वहीं कुछ करता होगा।"
" धत् तेरे की । पढ़ता लिखता नहीं है क्या ?" मैने हैरानी से पूछा ।
" मुझे नहीं पता ।" वो खीझकर बोली । " तू मेरे साथ चलेगी बस मैने कह दिया ।"
" देख डिम्पल, मैं बहुत साधारण परिवार से हूं । मैं तेरी ऐसी किसी बात में हिस्सेदार नहीं बनना चाहती , जिससे मेरे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़े और तू भी तो अंकल आंटी के बारे में कुछ सोच ।"
यह सुन वो रुआंसी सी होकर बोली " देख मै भी ऐसा कुछ नहीं करने वा ली । बस एक बार उससे बात करना चाहती हूं।"
उसकी रोनी सूरत देख मेरा दिल भी पसीज गया । " ठीक है , मै चलूंगी पर दूर खड़ी रहूंगी।"
" अच्छा, बाबा ठीक है । तू चल तो सही।" वो खुश होते हुए बोली ।
छुट्टी के वक्त जब हम दोनों घर की ओर जा रहे थे,तभी दूर से एक लड़का हमारी ओर आता दिखाई दिया । डिम्पल चहक कर बोली " देख वो ही है ।"
ऊंचा लंबा कद , गोरा रंग । ब्लैक टी शर्ट और जींस में वाकई में वो किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था । मुझे साथ देख उसके पैर ठिठक गए । मैंने भी डिम्पल को कहा " जा तू बात कर जल्दी आ ।" उसने साथ चलने की जिद की । किन्तु मैं अपनी सीमा जानती थी । डिम्पल गई और पांच मिनट बाद ही चहकती हुई आकर बोली " मैने उसकी फ्रेंडशिप एक्सेप्ट कर ली है ।"
मैने चौंकते हुए कहा हैं " पर तूने तो कहा था, बस बात कर उसे मना कर दूंगी ।"
" क्या करूं प्रेमा , उसकी नज़रों में पता नहीं क्या जादू था कि मैं चाह कर भी मना नहीं कर सकी ।"
" देख तू बहुत बड़ी भूल कर रही है । इस चक्कर में तेरी पढ़ाई-लिखाई चौपट हो जाएगी और घरवालों को पता चल गया तो ?"
"कुछ नहीं होगा । तू टेंसन मत ले । मैं सब मैनेज कर लूंगी ।"

शुरु में तो डिम्पल कभी कभार ही उससे मिलती । लेकिन धीरे धीरे यह सिलसिला रोजाना में बदल गया । मुझसे भी अब वो कटने लगी थी क्योंकि मैं हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहती थी । डिम्पल अब रोमा को इंप्रेस करने के लिए उससे नजदीकियां बढ़ाने लगी थी । बुरा बहुत लगता था कि मेरी प्यारी सखी मुझ से दूर होती जा रही थी । एक दो बार उसे समझाने की कोशिश भी की , पर हाय रे किस्मत ! मेरी झल्ली सी सखी पूरी तरह प्रेम दीवानी हो चुकी थी । चूंकि बोर्ड एग्जाम सर पर थे इसलिए सब तरफ़ से ध्यान हटा मैं तैयारी में जुट गई ।

जिसका डर था वही हुआ । डिम्पल पास तो हो गई पर नंबर अच्छे नही आए । अब मेरे और उसके रास्ते अलग हो गए थे ।मैने साइंस ली और उसने आर्ट्स । वो कहते है न इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता तो यह अपवाद कैसे होता । डिम्पल के साथ साथ उसके घर वालों ने मेरी पेशी भी लगाई । उनकी नजरों में इस झल्ली को तो अक्ल नहीं है पर मैं समझदार हूं ।तो मैने इसे रोका क्यों नहीं । सच कैसे उस दिन अपने आप को बचाया , बस मत पूछो । इतना सब होने के बाद भी उसका मिलना बदस्तूर जारी रहा। पानी सिर से ऊपर जाता देख मैने एकबार उस लड़के यानी सुमित से मिलने की सोची। मैं देखना चाहती थी कि जैसे ये उसके प्यार में पागल है वो भी इसे उतनी शिद्दत से चाहता है या सिर्फ इसके भोलेपन का फ़ायदा उठा रहा है ।

लेकिन उससे मिलूं कैसे , मैं यह सोच ही रही थी कि एक दिन वो मुझे मार्किट में टकरा गया । मुझे देखते ही उसने हैलो की और बोला आप डिम्पल की बेस्ट फ्रेंड हो न । वो अक्सर आपके बारे में बातें करती है। मैने हां में सिर हिलाया और बोली " तुम उससे सचमुच प्यार करते हो या सिर्फ टाइम पास कर रहे हो।"शायद उसे मुझसे इस तरह के सवाल की उम्मीद न थी । वो थोड़ा हड़बड़ा गया। फिर कुछ संभलते हुए बोला"क्या आपको मैं इस तरह का लड़का लगता हूं। मैं उससे सच्चा प्यार करता हूं और इस रिश्ते को आगे तक लेकर जाना चाहता हूं। आप मुझ पर विश्वास रखिए।"
"अगर आपका प्यार सच्चा है तो उसे डिम्पल के जीवन की बाधा ना बनने दे । वो पगली तो इस प्यार के जुनून में अपनी पढ़ाई लिखाई चौपट करने पर तुली है। आप उसे समझाएं।"

अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो डिम्पल मेरे पास आई।" अरे,आज मेरी प्रिय सखी को रोमा को छोड़ मेरी याद कैसे आई।"
" मार ले तू भी ताने। एक वो रोमा है जिसके नखरे कम नही होते। जितना उससे अच्छे से बिहेव करती हूं उतना ही मुझे इग्नोर करती है। अगर सुमित की बहन न होती तो बता देती उसे।"
" अच्छा गुस्सा छोड़, बता क्या बात है।"
"अरे यार ये सुमित भी । कल मिलते ही बोला इस बार तुम्हें फर्स्ट डिवजन लानी है। स्टडी पर ध्यान दो।अब बताओ इसे भी बैठे बैठे क्या सूझी। ये क्या मुझे कैलेक्टर बनाना चाहता है। मैंने जब आना कानी की तो बोला मुझे एक पढ़ी लिखी लड़की से शादी करनी है । ऐसा भी होता है क्या। वो एग्जाम तक मिलना जुलना कम करने के लिए कह रहा है। लेकिन मैं तो उससे मिले बिना एक दिन भी नहीं रह सकती। लेकिन बात तो उसकी माननी ही पड़ेगी। प्यार जो करती हूं उससे।"

" तो तू मुझसे क्या चाहती है।" मैंने पूछा।
" यही कि तू मेरी पढ़ाई में मदद कर।" वो बोली।
" मैं कैसे? अब तो हमारे सब्जेक्ट भी अलग है।"
" मैं कुछ नहीं जानती । कल से शाम को हम दोनों पहले की तरह एक साथ पढ़ेंगे।"

अरे,प्रेमा आज सोती रहोगी । शाम की चाय नहीं मिलेगी क्या आज?" उनकी आवाज़ से न चाहते हुए भी मैं भारी मन से उठी। मेरा चेहरा देख वो समझ गये कि मैं परेशान हूं। उन्होंने
मुझे वहीं बैठने को कहा और कुछ ही देर में खुद ही दो कप चाय बनाकर ले आए। एक कप चाय मुझे पकड़ाते हुए बोले " क्या बात है प्रेमा, किसका फोन था?"
इतना सुनते ही मै फफक फफक कर रोने लगी और उन्हें सारी बातें बताई।" ये सुन उनको भी झटका लगा ।क्यूंकि डिम्पल के बारे में मैने उन्हें सब बताया हुए था। उन्होंने मुझे तसल्ली दी और कहा कि तुम जल्द ही उसके पास जाओ ।

मैं निढ़ाल सी फिर बिस्तर पर लेट गई और अतीत की परछाइयों ने मुझे फिर घेर लिया।
डिम्पल फिर से पढ़ाई में जुट गई।मुझे लगा शायद दो चार दिन ड्रामा करेगी और शायद फ़िर से वही कहानी शुरू हो जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। डिम्पल फिर से वही पढ़ाकू लड़की बन गई थी। उसमें ये बदलाव देख मेरा सुमित के प्रति नज़रिया बदल गया ।मुझे अब वह सड़कछाप आशिक से इतर एक सुलझा हुए इंसान व सच्चा प्रेमी
लगने लगा था।

खैर, डिम्पल ने first division में बाहरवी पास की। रिजल्ट वाले दिन शाम को हम सब सहेलियां पार्टी के लिए बाहर गयी। डिम्पल ने बताया सुमित मुझसे मिलना चाहता है। मैं हैरान थी कि वो मुझसे क्यो मिलना चाहता है। जब मैं उससे मिली तो देखते ही बोला" क्या अब भी आप की धारणा मेरे बारे में पहले जैसी ही है या कुछ बदली।"
" नहीं सुमित गलत तुम पहले भी नहीं थे। मैं तो बस इतना चाहती थी कि डिम्पल अपनी पढ़ाई पूरी कर लें। मेरा मानना है कि विद्या ही सबसे बड़ा धन व सच्चा मित्र है और यह सदैव हमारा साथ निभाती है।"
" मैं आपकी बात से सहमत हूं। मैं भी पढ़ना चाहता था लेकिन परिसि्थति कुछ ऐसी बनी कि मुझे पढ़ाई बीच में ही छोडनी पड़ी । फिर चाहकर भी मैं दोबारा नहीं पढ़ पाया ।उस दिन आपने मेरी आंखें खोल दीं। मुझे अहसास हुआ कि मेरा प्रेम स्वार्थी हो रहा है जो अपने क्षणिक सुख के लिए उसको सही राह से भटका रहा है। तब मैंने ये फ़ैसला किया कि उसका स्कूल पूरा होने तक हमें अपने मिलने जुलने पर अंकुश लगाना होगा। किंतु डिम्पल को इस सब के लिए कैसे मनाया है मैं ही जानता हूं। वो पगली तो अब शादी की जिद पर अड़ी है पर मैं तो चाहता हूं कि वो अभी और पढ़ें। सच बड़ी जिद्दी है आपकी सहेली और वो क्या कहते हो आप झल्ली भी।
इस बात पर हम दोनों ही हंस पड़े। फिर थोड़ा गंभीर होकर मैंने सुमित से कहा" हां मेरी सहेली झल्ली है पर तुम्हारे प्रेम में पूरी पागल है वो। तुम उसका साथ कभी नहीं छोड़ना वो तुम्हे दिवानों की तरह चाहती है। तुम्हारे बिना तो वो जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती।
"मैं उसका हर हाल में साथ निभाऊंगा और एक परछाई की तरह हमेशा उसके साथ रहूंगा। वादा करता हूं आपसे। हमारे घर वाले भी एक न एक दिन हमारे इस संबंध को स्वीकार कर ही लेंगे। विश्वास है मुझे। डिम्पल ही मेरी जीवन संगिनी बनेगी देख लेना आप।"
" मुझे तुम से यही उम्मीद थी सुमित।"

डिम्पल ने कालेज में एडमिशन ले लिया और मुझे इंजीनियरिंग के लिए बैंगलोर जाना पड़ा। अब फोन पर ही कभी कभार हमारी बातें हो पाती थी। एक दिन मम्मी ने फोन पर यह खबर दे मुझे चौंका दिया कि डिम्पल शादी कर रही है। कल कार्ड देने आई थी। तुझसे बात करना चाहती थी पर तेरे कालेज का नंबर ही नहीं लग रहा था।"
इसे अब क्या सूझी। कालेज का लास्ट ईयर।हे भगवान ये लड़की भी न। कभी नहीं सुधर सकती।संडे को मैंने जब मैंने फोन किया तो चहकते हुए बोली " जल्दी से छुट्टी लेकर आ जा। तेरे बिना शादी कैसे करूंगी ।"
मैं हंस कर बोली " ओ प्रेम दिवानी एक साल और रुक जाती कालेज तो पूरा होने देती।"
तब डिम्पल ने बताया कि सुमित के पापा को हार्ट अटैक आ गया था। वो ठीक तो हो गये लेकिन उसके बाद उन्होंने जिद पकड़ ली कि वो सुमित की शादी जल्द से जल्द करना चाहते हैं। बड़ी मुश्किल से हम दोनों के परिवार वाले राज़ी हुए और उसने शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा।

अपने सेमेस्टर एग्जाम के कारण मैं शादी में शामिल न हो सकी थी। कितना सुनाया था उसने मुझे। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया था तब जाकर मानी थी। उससे मिलने के लिए मैं भी खूब व्याकुल थी ‌। जैसे ही छुट्टियां हुईं मैं फौरन उसे मिलने पहुंच गई उसकी ससुराल। मुझे अचानक आया देख डिम्पल इतनी खुश हुई बस पूछो मत। श्रृंगार से सजी वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसने अपने ससुराल वालों से मेरा परिचय करवाया। उसके ससुर को छोड़ मुझे सबका व्यवहार कुछ रूखा सा लगा। चाय नाश्ता करा डिम्पल मुझे अपने कमरे में ले गयी।"
खुश हैं न तू?"
" खुश मैं तो इतनी खुश हूं कि तुझे बता नहीं सकती। सुमित को पा लिया और मुझे अब क्या चाहिए। सच प्रेमा , मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा देखा ये हसीन ख्वाब पूरा भी होगा।"
" सुमित कैसा है?"
" उनकी तो मैं जितनी तारीफ करूं कम होगी । वो जितने अच्छे इंसान हैं उतने ही अच्छे पति भी। मेरी हर जरूरत का ध्यान रखते हैं। मैं तो कालेज का लास्ट इयर छोड़ ही रही थी लेकिन वो नहीं माने।"
लेकिन डिम्पल मुझे तेरी सास, जेठानी व रोमा का व्यवहार कुछ सही नहीं लगा।"
ये सुन डिम्पल आंखें चुराते हुए बोली " अरे नहीं, सभी बहुत अच्छे हैं। लगता है तुझे कुछ गलतफहमी हुई है।"
" देख, तू मुझसे झूठ मत बोल । तेरे आंखें पढ़ ली है मैंने।"
" जब तू सब समझ ही गई है तो क्या बोलूं। मैं जब से आई हूं मैंने इन तीनों की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं जितना इन्हें मान देती हूं ये उतना ही मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।" डिम्पल उदास हो कर बोली।
" तेरे ससुर कुछ नहीं कहते?"
" पापाजी तो बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कई बार मम्मी जी को समझाने की कोशिश की लेकिन उन पर कोई असर नहीं होता। रोमा और उनको लगता है कि मैंने सुमित को फंसाया है। जेठानी इन्हें भड़काती रहती है।"
" सुमित को पता है ये सब?"
" उन्ही का तो सहारा है। वो मुझसे इतना प्यार करते हैं कि इन बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। देखना एक दिन मैं सबका दिल जीत लूंगी।' कहकर वो हंस पड़ी।
"वो तो है। मेरी सखी है ही इतनी प्यारी कि कोई उससे ज्यादा दिन नाराज़ नहीं रह सकता।" कह मैंने उसे गले लगा लिया।
" अच्छा अब मैं चलूं। काफ़ी देर हो गई है।"
" कुछ देर और रुक। सुमित से नहीं मिलेगी क्या?"
" अगली बार आऊंगी,तब मिल लूंगी।"

मेरी इंजीनियरिंग के बाद वही नौकरी लग गई। इस बीच दो चार बार मेरी डिम्पल से बात हुई। हर बार वह अपने घर परिवार व सुमित की खूब तारीफ करती। मुझे भी तसल्ली हो गई ,चलो अब सब सही है। मेरा रिश्ता भी बैंगलोर में ही तय हो गया। मैंने उसे फ़ोन पर कुछ नहीं बताया। सोचा शादी का कार्ड दे, उसे सरप्राइज्ड करूंगी। लेकिन जब उसे देखा तो मैं खुद shocked हो गई। मेरी सुंदर सी सखी हड्डियों का ढांचा भर रह गई थी। उसका शरीर पीला पड़ गया था। मुझे अचानक आया देख वो थोड़ा सकपका गई। फिर एक दम से हंसकर बोली " आज ये ईद का चांद किधर से निकला।"
मैं भी उसकी इस बात पर मुस्कुरा दी और उसे अपनी शादी का कार्ड दिखाया तो वह मुंह फुलाकर बोली " अच्छा जी हमसे बिना बताए आपने रिश्ता भी तय कर लिया और अब हमारी याद आई है। जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती।"
" मैं तुम्हें भूली ही कब थी। बस तुम्हे सरप्राइज्ड करना चाहती थी। लेकिन तुम्हें देख तो मैं खुद सरप्राइज्ड रह गई। ये क्या हाल बना लिया तुमने अपना?"
" क्या मतलब। अच्छी भली तो हूं। लगता है मेरी पढ़ाकू सखी को चश्मा लग गया है।"डिम्पल बात बनाते हुए बोली।
तभी सुमित भी वहां आ गया। मुझे देख खुश होते हुए बोला" कहां थी, इतने दिनों तक आप?"
मैंने उसे सब बताया। साथ ही उससे डिम्पल की इस हालत के बारे में जानना चाहा।
तब सुमित ने बताया कि डिम्पल सभी घर वालों को खुश रखने के लिए दिन भर उनकी सेवा में लगी रहती है लेकिन उनके व्यवहार में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया। इसी तनाव में दो बार इस का मिसकैरेज भी हो गया। उसने अपने घर परिवार वालों को समझाने की कोशिश भी की। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
सुमित ने मेरी ओर देखते हुए कहा कि" डिम्पल फिर से प्रेगनेंट है और मैं नहीं चाहता कि इस बार भी वही सब हो। मैं इसे इन सब से दूर लेकर जाना चाहता हूं। पर यह मानती ही नही। कहती है मैं तुम्हारे घर वालों से अलग करने का पाप अपने सिर नही ले सकती। अब आप ही इसे समझाएं।"
" मेरी झल्ली सी सखी इतनी समझदार है मुझे तो पता ही नही था।"
वो एक फीकी सी हंसी हंस पड़ी।
मैंने बात आगे बढ़ाई " पगली, जो लोग तेरी कद्र ही नही करते, उनके कदमों में बार बार झुकने से क्या लाभ। जो तेरे पेट में पल रहा है उसके बारे में सोच। उसे कुछ हो गया तो वो पाप न होगा। सुमित सही कह रहा है। उसकी बात मान लें मेरी ' प्रेम दिवानी' ।
डिम्पल ने मुझे इस बारे में विचार करने का आश्वासन दिया।

शादी में वो दोनों ही नहीं आए। मन में अनेक आशंकाएं उठ रही थी कि एक दिन डिम्पल का फोन आ ही गया ।उसकी आवाज़ सुनकर बड़ी खुशी हुई। उसने बताया कि उन्होंने अलग घर ले लिया है और सुमित ने अपना नया काम भी शुरू किया है जो ठीक चल रहा है। शादी के समय उसकी तबीयत सही नहीं थी। डॉक्टर ने उसे लंबे सफर के लिए मना किया था। इस लिए शादी में नही आ पाई थी।
मैंने भी उसे अपनी सेहत का ध्यान रखने की सलाह दी।

शादी के बाद घर व आफिस के चक्कर में पूरा दिन कैसे निकल जाता। पता ही न चलता।सब मुझे इस बात के उलाहने देते कि मैं शादी के बाद बदल गई हूं। किंतु मेरी भी मजबूरी थी। पूरा दिन आफिस में काम, फिर घर काम। इस के बाद तो मुझे बिस्तर ही नजर आता था।
इसी बीच डिम्पल ने बेटा होने की खुशखबरी सुनाई । सुन दिल को इतना सुकून मिला कि उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इस बीच कभी कभार ही दिल्ली आना जाना हो पाया । किंतु हर बार परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि चाह कर भी हम एक-दूसरे से मिल न सके और आज अचानक यह दुखद समाचार सुन इतनी आत्मग्लानि हो रही थी कि मैं इतने वर्षोंं में क्यों न मिली उससे।
हे प्रभु, कैसे सामना करूंगी उसका।
पूरी रात यूं ही आंखों में निकल गई।
सुबह मेरी ये हालत देखकर उन्होंने मुझे छुट्टी कर आराम करने की सलाह दी। मैंने उन्हें जल्द से जल्द टिकट बुक कराने को कहा। शाम को आफिस से आकर उन्होंने बताया कि कल की टिकट बुक हो गई है। तुम डिम्पल के पास जाओ। घर व बच्चों को वह संभाल लेंगे।

मैंने सामान पैक किया और ट्रेन पकड़ी। पूरे रास्ते मैं यही सोचती रही कैसे सामना करूंगी उसका। बातों के लिए शब्द तलाशती रही। रह रह कर आंखों से आंसू निकल जाते। उससे पहले न मिल पाने की पीड़ा मुझे अधिक कचोट रही थी। किंतु सपने में भी कभी ऐसे अनिष्ट की कल्पना नहीं की थी। ट्रेन से उतर मैंने सीधे उसके घर के लिए टैक्सी ली। दो घंटे बाद ही मैं उसके घर के सामने थी। मैंने डोरबेल बजाई। एक नौ दस साल के लड़के ने दरवाजा खोला। मैंने गौर से देखा,हूं ब हू सुमित! तभी अंदर से डिम्पल की आवाज़ आई
" कौन है लक्ष्य?"
एक आंटी है मम्मा।
डिम्पल बाहर आई। देखते ही मेरे गले लग गई। उसे देख मैं फूट फूट कर रोने लगी। उसने ही मुझे हिम्मत बंधाई और बोली " अरे पगली ,तू ऐसे करेंगी तो मेरा क्या होगा। मैंने तो तुझे ढ़ेर सारी बातें करने के लिए बुलाया है रोने के लिए नहीं।" उसकी बातें सुन मुझे लगा कि हालात इंसान को कैसे बदल देते हैं। छुई-मुई सी मेरी सहेली, आज कितनी सशक्त हो गई है। जो इन परिस्थितियों में भी अपना ग़म छुपा मुझे हौसला दे रही है। तब तक लक्ष्य हमारे लिए पानी ले आया था। डिम्पल ने उसे मेरे बारे में बताया तो वह बोला" अच्छा आप हो प्रेमा आंटी। मम्मा अक्सर मुझे आप दोनों के स्कूली किस्से सुनाती है। मैंने उसे प्यार किया और चाकलेट दी। इतनी देर में डिम्पल चाय बना लाई।
अभी हम इधर उधर की बातें कर ही रहे थे कि लक्ष्य सुमित की एक फोटो लेकर हमारे पास आया। उस फोटो में उसने वही काली टी-शर्ट व जींस पहनी थी । देखते ही मैं डिम्पल से बोली " डिम्पल याद है तुझे जब तुम पहली बार मुझे सुमित से मिलवाने ले गयी थी तब उसने यही कपड़े पहने थे।"
डिम्पल फोटो हाथ में लेते हुए बोली" याद तो तब करूं, जब कुछ भूली हूं। उनकी यादें ही तो जीने का एकमात्र सहारा है।" यह कह वह फफक-फफक कर रोने लगी। उसने अब तक जो पीड़ा मन में दबा रखी थी वो आंसुओं के रूप में बह निकली। मैंने भी उसे जी भरकर रोने दिया।
कुछ देर बाद जब उसका जी हल्का हो गया तो उसने बताया" प्रेमा उस दिन तुम्हारे जाने के बाद सुमित ने घर छोड़ने का निश्चय कर लिया।सब इंतजाम तो उसने पहले ही कर रखे थे। वो तो मैं ही तैयार न थी। लेकिन तुम्हारी बातों ने मेरी आंखें खोल दीं। सुमित और अपने बच्चे के भविष्य की खातिर मैंने भी उस घर से अलग होना ठीक समझा।पापा जी को छोड़ सबने मुझ पर खूब लांछन लगाए। पर मैने अब उनकी परवाह करनी छोड़ दी। सुमित अपने काम के साथ साथ मेरा भी खूब ध्यान रखता था। खुशियां फिर से मेरे दरवाजे पर लक्ष्य के रूप में लौट आई। सासू मां की नाराज़गी भी पोते को देख धीरे धीरे कम हो गई। लेकिन रोमा और जेठानी में कोई सुधार न आया। शादी के बाद भी रोमा कभी कभार ही हमारे यहां आती थी। हां, लक्ष्य को वो भी खूब चाहती थी।
मैं भी जो बनता उसे देती और उसकी सेवा करती।

मम्मी पापा अब हमें फिर से उस घर में ले जाना चाहते थे लेकिन सुमित हर बार हाथ जोड़ उन्हें मना कर देते।
सच,सब इतना अच्छा चल रहा था कि कभी कभी तो मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ होने लगता।
एक दिन सुमित उठा तो उसे सीने में हल्का दर्द महसूस हुआ। मैंने तुरंत उसे डॉक्टर के पास चलने को कहा तो मेरी बात टालते हुए बोला कि ठंड की वजह से हो रहा होगा और पेन किलर ले काम पर चला गया। आफिस पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही वहां से फोन आया कि उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई है। उसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं।
ये खबर सुनते ही मेरी तो आंखों के आगे अंधेरा ही छा गया। किसी तरह से अपने आप को संभाल मैंने ससुराल वालों को फोन किया और जल्दी से अस्पताल पहुंची। सुमित को हार्ट अटैक आया था। डॉक्टरों ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन.....
डिम्पल फिर से रोने लगी । मैंने उसे तसल्ली दी। फिर कुछ देर बाद उठकर हम दोनों खाना बनाने लगे।
" डिम्पल तेरे सास ससुर अब भी तेरे साथ नहीं रहते।"
वह गंभीर होकर बोली" सब मतलबी है , प्रेमा। "
"
"अचानक से ये सब हुआ कि मैं संभल ही न पाई। मुझे और लक्ष्य को वो अपने साथ ले गए। सुमित की क्रिया की सभी रस्में वही पूरी हुई। इस बीच मैं अपने होशोहवास खो सी चुकी थी। जो मुझसे जैसे कहता मैं करती जाती। जिस घर में अभी दस दिन पहले जवान मौत हुई हो, वहां मेरी जेठानी दावतें उड़ा रही थी। मेरा हाल पहले जैसा ही हो गया था। मैं सारा दिन घर के कामों में पिसती और सब की सुनती। अब मैंने इसे अपनी नियति मान ली थी। एक दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। मैं पूरा दिन दवाई लेकर अपने कमरे में भूखी-प्यासी पड़ी रही। मुझे पूछने वाला कोई न था। रात को जब मेरी आंख खुली तो देखा लक्ष्य मेरे पास लेटा रो रहा था। पूछने पर उसने बताया कि आज सुबह से उसने खाना नहीं खाया। सुन मेरा कलेजा मुंह को आ गया। मैं अपने दुख में इस नन्ही सी जान को कैसे भूल गयी।
मैं जल्दी से उठ कर खाना लेने रसोई में गई तो मुझे अपने जेठ के कमरे से कुछ शोर सुनाई दिया। मुझे कुछ गड़बड़ लगी। मैं लक्ष्य को खाना देकर पानी लेने आई तो मेरे जेठ मेरा नाम ले जोर जोर से कुछ कह रहे थे। अब मुझसे रूका न गया। मैं उनके कमरे के पास गयी तो उनकी बातें सुन मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई। उनके शब्दों में कहूं तो मैं अभी जवान हूं और एक दिन मैं वो मकान बेच सारा रुपया पैसा लेकर लक्ष्य को छोड़कर भाग जाऊंगी। तब इस अनाथ को कौन पालेगा। इस लिए वो मेरे ससुर पर दबाव डाल रहे थे कि किसी भी तरह ये मकान उन्हें मिल जाए। इस की एवज में वह लक्ष्य की परवरिश का जिम्मा ले लेंगे।मेरे ससुर इस के लिए राजी न थे। किंतु सबने उनकी आवाज़ को दबा दिया।"

मैंने कभी सपने में भी नही सोचा था कि ये लोग इतना नीचे भी गिर सकते हैं। मेरा मन उनके प्रति घृणा से भर गया। साथ ही आखिरी समय में कहीं सुमित की बातें याद आई कि 'कभी भी अपने सम्मान से समझौता न करना। खुद भी सिर उठा कर जीना और लक्ष्य को भी यही सीख देना।'
कमरे में आकर मैं काफी देर तक रोती रही। लेकिन अब मैंने ठोस कदम उठाने का फैसला कर लिया था। सुबह उठते ही मैंने अपना सामान पैक कर वापस अपने घर जाने का फैसला सब को सुना दिया। सभी ये सुनकर स्तब्ध रह गए। मेरी सास ने मेरे पास आकर कहा" बहू ,तू अकेले सब कैसे संभालेंगी। तेरी और लक्ष्य की जिम्मेदारी अब हमारी है। "
" मम्मी, मैं अकेली कहां हूं ! लक्ष्य है न मेरे साथ। सुमित के काम में तो मैं पहले भी हाथ बंटाती थी तो वह मैं संभाल सकती हूं। जहां तक मेरी जिम्मेदारी की बात है तो मैं पढ़ी लिखी हूं अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी खुद उठा सकती हूं। और मेरे रहते लक्ष्य को अनाथ समझने की भूल न करना। मैं उसे मां बाप दोनों का प्यार दूंगी अपने बेटे को किसी पर बोझ न बनने दूंगी। और हां आपको मेरे अकेलेपन की इतनी ही फिक्र है तो मेरे साथ चल कर रहिए।"
"देख लिया मम्मी ,सुमित के जाते ही इसने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए है। मै तो पहले ही इसे पहचान गई थी।" मेरी जेठानी चिल्लाई।
"और मैने तुम लोगो का असली चेहरा कल रात पहचाना "।मैने कहा।
"क्या मतलब ?"मेरी जेठानी तमतमाती हुई बोली।
"मतलब मैने आप लोगों की सारी बातें सुन ली। सुमित को गुजरे एक महीना भी नहीं हुआ और आप उसके पैसे हड़पने की सोचने लगे। शर्म आती है मुझे आप लोगों पर ।"कह मै लक्ष्य को लेकर घर आ गई।डिम्पल का चेहरा तमतमा रहा था।
"तू सच कहती थी। पढ़ ले पढ़ाई तेरे काम आएगी। इस बात। के लिए मै तेरा आभार मानती हूं। इस पढ़ाई की बदौलत ही आज मै सुमित का काम संभाल पा रही हूं। शुरू शुरू में ज़रूर कुछ दिक्कते आई। घबराहट भी हुई, लेकिन लक्ष्य का चेहरा मुझे हमेशा हिम्मत देता रहा।
मै देख रही थी कि भोली भाली सी मेरी अल्हड़ सखी को समय के थपेड़ों ने कितना परिपक्व बना दिया था।
" डिम्पल, आगे के जीवन के बारे में तूने क्या सोचा है? "
डिम्पल प्रश्न सूचक नज़रों से मेरी और देखने लगी।
"देख डिम्पल ये जीवन बहुत लंबा है और तेरी उम्र भी अभी क्या है। माना लक्ष्य है तेरे साथ ,लेकिन एक साथी जिसके साथ तू अपने सुख देख साझा कर सके। डिम्पल मेरी सलाह है कि तू फिर से गृहस्थी बसा ले ।माना सुमित की जगह कोई नहीं ले सकता । लेकिन कोशिश तो की जा सकती है।"

कुछ देर वो मुझे चुप चाप देखती रही फिर शांत स्वर में बोली "मैं तेरी बातों का कभी बुरा नहीं मान सकती क्यूंकि तुझे फिक्र है मेरी। तू मेरे लिए दुनिया की भीड़ से अलग है। लेकिन प्रेमा,तू तो मेरे इस निस्वार्थ प्रेम की साक्षी है।मेरा प्रेम कोई दैहिक प्रेम या मात्र आकर्षण नहीं था।जो सुमित के जाने से खत्म हो जाएगा।अपितु ये एक आत्मिक मिलन था। सुमित की देह ही तो अब नहीं है पर आत्मा तो अजर अमर है।मेरे लिए तो इस घर के कण कण में और यादों में सुमित बसा है।जैसे मीरा अपने मोहन के प्रेम में दीवानी थी।उसी तरह मैं अपने सुमित की ही ' प्रेम दिवानी' हूं और सदा रहूंगी और तू है न अपनी इस झल्ली को समझाने के लिए और आंसू पोंछने के लिए। भूल गयी सब।" कह जोर से हंसने लगी । मैं भी अपनी ' प्रेम दिवानी' का आशय समझ हंस पड़ी।

सरोज ✍️✍️

स्वरचित व मौलिक


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED