गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 45 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 45


भाग 44: जीवन सूत्र 51:विवेक की खिड़की हमेशा खुली रखें 52: दिन और रात के वास्तविक अर्थ अलग हैं


51:विवेक की खिड़की हमेशा खुली रखें


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-


तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।


इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2/68।।


इसका अर्थ है, इसलिए हे महाबाहो! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ सब प्रकार से इन्द्रियों के विषयों से निग्रह की हुई होती हैं,उसकी बुद्धि स्थिर होती है।


पूर्व के श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने चर्चा की है कि अगर मनुष्य की एक भी इंद्रिय विषयों के पीछे दौड़े और मनुष्य ने इसे अपने साथ बनाए रखने के लिए,अपने नियंत्रण में रखने के लिए प्रयास नहीं किया,तो यह बुद्धि की अस्थिरता का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रियों के विषयों से इंद्रियों के निग्रह की बात की है।यह अकाट्य सत्य है कि मनुष्य इंद्रियों के विषयों से पूरी तरह से अलग नहीं हो सकता है क्योंकि अगर इंद्रियां हैं, तो उनसे संबंधित विषय भी हैं,और उन विषयों में उसे समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार बरतना ही पड़ता है। कभी-कभी ये विषय उसे दिग्भ्रमित कर देते हैं। उसे भटका देते हैं।कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए कि मनुष्य इंद्रियों को बंद कर दे,तो ही वह विषयों से पृथक रह पाएगा तो यह अव्यावहारिक बात है।


इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने इंद्रियों के विषयों से इंद्रियों के निग्रह की बात की है।इसका अर्थ है कि इंद्रियों के विषयों में बरतना और इंद्रियों का उपयोग करना यह हमारी इच्छा के अनुसार होना चाहिए।अगर हमने अपने मन को इनके पीछे दौड़ा दिया तो बुद्धि भी इनकी अनुगामी होकर हमें अपने ही नियंत्रण से बाहर कर देगी।


एक उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं।घर की खिड़कियां हम इसलिए चौबीसों घंटे बंद नहीं कर सकते कि हमारा ध्यान बार-बार खिड़की के बाहर के दृश्यों,वहां से गुजर रहे लोगों आदि की ओर जाता है। हमें समय-समय पर घर की खिड़कियां तो खुली रखनी होगी,लेकिन मन को साधना होगा कि हम अपना कार्य करते हुए बार-बार बाहर के दृश्य देखने को मचल ना उठें। हमें अपने विवेक की खिड़की को तो हमेशा ही खुला रखना होगा।चौबीसों घंटे खिड़कियां बंद रखने के भी अपने नुकसान हैं।हम पूरी तरह से परिवेश से कट जाएंगे और मनुष्य की सारी साधना और उसकी कसौटी,अपने परिवेश और अपने लोगों के बीच ही रहकर है।


52.दिन और रात के वास्तविक अर्थ


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:-


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2/69।।


इसका अर्थ है,सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात है,उसमें संयमी मनुष्य जागता है,और जिसमें सब प्राणी जागते हैं तथा सांसारिक सुविधाओं,भोग और संग्रह में लगे रहते हैं,वह आत्म तत्त्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात है।


निद्रा और जागरण के अपने-अपने अर्थ होते हैं।सामान्य रूप से मनुष्य दिन में अपने सारे कार्यों को संपन्न करता है और रात्रि में विश्राम करता है।दिन जागने के लिए है तो रात सोने के लिए है।अगर निद्रा और जागरण के प्रतीकार्थ लिए जाएं,तो निद्रा को अज्ञानता और ईश्वर से विमुखता की अवस्था कहा जाएगा।हम जागते हुए भी सोते हैं। जब हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान नहीं होता।जब हम अपने विचारों में सकारात्मकता,सृजनात्मकता और उत्साह से परिपूर्ण ना हों। अगर मनुष्य में विवेक नहीं है। वह ज्ञान प्राप्त करने के प्रति उत्सुक नहीं है तो यह भी निद्रा की अवस्था है। यहां निद्रा का अर्थ अंधकार से है,जब हम अपने विचारों, कार्यों और अभिव्यक्ति में अंधकार से भरे होते हैं।


जागरण का अर्थ है सजगता। अपना कार्य करते हुए उस परम सत्ता का स्मरण। अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी। संवेदनशीलता। ज्ञान की तलाश। स्वयं के अस्तित्व को जानने की कोशिश। मानव सभ्यता के इतिहास में जिस जिसके जीवन में जागरण हुआ, उसने अपने दिव्य प्रकाश से सारी मानवता को आलोकित करने का कार्य किया। स्वयं की सुख-सुविधाओं,यश,समृद्धि आदि की परवाह न कर मानवता के प्रति निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले लोग जागरण के सबसे बड़े उदाहरण हैं। अगर हर मनुष्य के जीवन में यह जागरण आ जाए तो फिर हमारे समाज की अनेक समस्याएं उत्पन्न ही नहीं होंगी।


इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने जिस दिवस और रात्रि की चर्चा की,वह इसी वास्तविक जागरण और निद्रा से संबंधित है।सुख- सुविधाओं,ऐश्वर्य के साधनों,अहंकार की पुष्टि के लिए किए जाने वाले कार्यों के पीछे भागना निद्रा है।सत्य, परोपकार, ईमानदारी और आत्म कल्याण के पथ पर चलना ही जागरण है। इस निद्रा और जागरण को पहचानने के लिए कोई बाहरी मापक नहीं होता।सार्वजनिक व्यवहार और लोकाचार में हमारी आंखें खुली हों।हम समाज के प्रति अपने अच्छे कार्यों से योगदान कर सकें, तो यह जागरण है।हमें निद्रा से इसी जागरण की ओर बढ़ना होगा।



डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय