ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है,ये घटना उस समय की है जब बुन्देलखण्ड के कई इलाकों में डकैतों का बोलबाला था,लोंग रातों को घर से बाहर निकलने में भी डरते थे,क्योंकि रातोंरात डाकू सारे गाँव को ही लूट कर ले जाते थे,गाँवों में बिजली की उचित व्यवस्था ना होने के कारण डाकूओं के लिए ये काम और भी आसान होता था,उस समय गाँवों में टेलीफोन वगैरह भी नहीं हुआ करते थे इसलिए पुलिस तक भी सूचना पहुँचने में बहुत देर लगती थी,उस समय डाकुओं का इतना भय था कि यहाँ तक कि दिन में भी लोंग सफ़र करने में डरा करते थे क्योंकि पहले तो ना ज्यादा पक्के रोड होते थे और ना ही यातायात के साधनों का समय निश्चित होता था,इसलिए लोंग आस पास के गाँवों में जाने के लिए ज्यादातर बैलगाड़ियों का ही प्रयोग करते थें और ऐसे में डाकुओं के लिए उन्हें लूटना आसान रहता था...
पहले गाँव भी पक्की सड़क से दो-चार कोस दूर ही हुआ करते थे ,गाँव के भीतर जाने का कोई भी साधन नहीं होता था,इसलिए गाँव के भीतर का रास्ता पैदल ही तय करना होता था और रास्ता भी ऐसा जो घने पेड़ और झाड़ियों से घिरा रहता था और ऐसे ही परिवेश में रह रही थी हमारी नायिका लक्ष्मी,जिनका पूरा नाम लक्ष्मी देवी यादव था,वें एक फौजी की पत्नी थी,उनके पति का नाम रामभरोसे यादव था,शादी के बहुत साल बाद भी ईश्वर ने उन्हें कोई सन्तान ना थी,इसलिए उन्होंने अपनी जेठानी के सबसे छोटे बेटे को गोद ले लिया था,लक्ष्मी बहुत ही निडर थीं,वें किसी से भी नहीं डरती थीं,गलत बात पर वें किसी का भी सिर फोड़ सकतीं थीं,किसी की भी गलत बात उन्हें बिलकुल मंजूर नहीं थीं.....
गाँव में अगर कोई पुरूष अपनी पत्नी को पीटता तो वें डण्डा लेकर उसकी पिटाई करने उसके दरवाजे पर पहुँच जातीं थीं और उसे मार मारकर अधमरा कर देती,इसी कारण उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा था,जिसकी पिटाई लक्ष्मी ने की थी उसने थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी,लक्ष्मी ने भी तैश में आकर अपना जुर्म कूबूल कर लिया ,फिर बड़ी मुश्किल से लक्ष्मी को जमानत मिली,लक्ष्मी के पति फौजी थे,वें ज्यादातर अपनी ड्यूटी पर बाहर ही रहते थे और इधर गाँव में लक्ष्मी को ही सब सम्भालना पड़ता है,निडर वो बचपन से ही थी और समय के साथ साथ वो और भी निडर होती चली गई.....
भगवान ने उसे अच्छा खासा भरा पूरा शरीर दिया था,बच्चे हुए नहीं तो शरीर में ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ा,खेतों में तो वो यूँ काम सम्भालती थी कि अच्छे खासे नौजवान भी क्या कर पाएं,सीधे पल्लू की साड़ी पहनती थीं और मजाल है कि कभी पल्लू सिर से सरक जाएं और श्रृंगार के मामले में तो वो कभी भी कंजूसी ना करती थीं,माँग भरके सिन्दूर लगाती,माथे पर लाल रंग का बड़ा बून्दा लगाती,जो पहले जमाने की स्त्रियाँ लगाती थी उसे रार के साथ चिपकाया जाता था,कलाइयों में भर भर चूड़ियाँ पहनती और कमर में पावभर की चाँदी की करधनी पहनती,पैरों के पायल और बिछुए तो उनके देखने लायक होते थे,क्योंकि उनमें घूँघरु लगे होते थे और जब वो चलती थीं तो उनसे छन-छन की आवाज आती थी,उनका मानना था श्रृंगार करने से उनके पति की आयु लम्बी रहेगी,वो सरहद पर रहते हैं तो मेरे श्रृंगार करने से उनकी रक्षा होती रहेगी....
इसी तरह एक बार की बात है लक्ष्मी को अपनी भतीजे की शादी में जाना था और दुल्हन के जेवर ले जाने की जिम्मेदारी लक्ष्मी पर थी क्योंकि लक्ष्मी के गाँव में सोना अच्छा मिलता था,अब लक्ष्मी सारा सामान लेकर बस में चढ़ी,लेकिन बस रास्ते में पंचर हो गई और दो तीन घण्टों के इन्तजार के बाद दूसरी बस आई तब लक्ष्मी उसमें चढ़ी,लक्ष्मी घर से तो समय से चली थी लेकिन बस पंचर होने की वजह से उन्हें गाँव पहुँचने में देर हो गई,बस रात को सात बजे तक गाँव पहुँची,अब लक्ष्मी अपना सामान लेकर गाँव की पक्की सड़क पर उतर गई,सड़क से गाँव लगभग पाँच कोस दूर था और लक्ष्मी के पास जेवर थे वो भी दूसरों के,उन्हें अपनी चिन्ता नहीं थी उन्हें जेवरों की चिन्ता ज्यादा थी इसलिए उन्होंने खेतों के रास्ते से जाने का सोचा और वो खेतों से होती हुई गाँव की ओर चल पड़ीं,सुनसान खेत और चारों ओर केवल सन्नाटा ही सन्नाटा लक्ष्मी को डर तो बहुत लग रहा था लेकिन उसने हार नहीं मानी और उस रास्ते पर चलती चली गई,वो जब शादी के घर में पहुँची तो लोग उन्हें देखकर आश्चर्यचकित थे क्योंकि जो भी गाँव के रास्ते से आया था उसे डकैतों ने लूट लिया था,तब लक्ष्मी बोली इसलिए तो मैं खेतों के रास्तों से आई हूँ और उस दिन सबने लक्ष्मी की समझदारी की सराहना की....
ऐसे बहुत से किस्से थे जहाँ लक्ष्मी ने अपनी बहादुरी और समझदारी से काम लिया था लेकिन लक्ष्मी के विषय में एक किस्सा बहुत मशहूर हुआ जो काम उसने अपनी उम्र के उस मोड़ में किया था जब वो बहुत ही ज्यादा वृद्ध हो चुकी थी,उसके पति रामभरोसे भी फौज की सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके थे,दोनों पति-पत्नी अब केवल भलाई के काम किया करते,लोगों की सहायता करते और खुश रहते....
ऐसे ही एक बार उनके पड़ोस में लड़की का ब्याह था,उस समय डकैतों का सभी के भीतर बहुत ही खौफ़ समाया हुआ था,खासकर लड़की के बाप के मन में ज्यादा खौफ़ समाया था,क्योंकि डाकुओं को जरा सी भनक लग जाती कि किसी गाँव में शादी है तो वें फौरन ही उन्हें लूटने चले आते,लड़की के पिता इस बात से बहुत डरे हुए थे तब रामभरोसे जी और लक्ष्मी ने उन्हें समझाया कि वें चिन्ता ना करें,सब अच्छा ही होगा....
आधी रात होने को थी,विवाह की रस्में चल रहीं थीं,तभी गाँव में डाकूओं का प्रवेश हुआ,घोड़ो के टापों से पूरा गाँव चौंक उठा और जहाँ डाकुओं ने हवाई फायर किया तो लोगों के दिल दहल उठे,विवाह वाले घर के सामने डाकुओं ने अपने घोड़े रोके और उनमें से एक बोला...
जिसके पास जो जो जेवर और नगदी हो तो उसे हमारे हवाले कर दो....
लेकिन रामभरोसे जी इस बात के लिए कतई तैयार नहीं थे,वें बिना कुछ कहे अपनी बंदूक लेकर मैदान में डट पड़े ,डाकुओं ने भी उन पर गोली चलाई और गोली सीधी जाकर उनके हाथ पर लगी,अब तो लक्ष्मी देवी आगबबूला हो उठीं,वें ये सब तमाशा घर की अटारी से छुपकर देख रहीं थीं,अटारी में बहुत सा सामान पड़ा था,जिसमें ईटें,लकड़ियाँ,उपले और भी बहुत कुछ था,अब लक्ष्मी देवी से ना रहा गया और उन्होंने वहीं से वो सामान डाकुओं पर फेंकना शुरू कर दिया,वें ऐसा निशाना ताककर ईट चलातीं कि डाकुओं के हाथ से बंदूक छूट जाती,फिर वें दूसरी ईट उनके सिर पर मारकर उनका सिर फोड़ देतीं,ये तमाशा बहुत देर तक चलता रहा,जब लक्ष्मी देवी ने हिम्मत नहीं हारी तो वहाँ मौजूद लोगों की भी हिम्मत बढ़ी और फिर जिसके हाथ में जो आया उन्होंने डाकुओं पर फेंककर मारना शुरू कर दिया,भोजन भण्डार गृह से लोंग खाना वगैरह भी उठा लाएं और पूरी,तरकारी,रसगुल्लों से भी उन पर हमला करने लगे,अब तो डाकुओं की शामत आ गई थी और वहाँ से भागने के सिवाय उनके पास और कोई चारा ना था,डाकुओं के जाने के बाद रामभरोसे जी को अस्पताल ले जाया गया,तब पता चला कि उन्हें गोली लगी नहीं थी,बस गोली छूकर निकल गई थी,चोट तो लगी थी लेकिन उतनी नहीं लगी थी ,लेकिन बुढ़ापे का शरीर था इसलिए वें खुद को सम्भाल नहीं पाएं थे,डाकुओं के जाने के बाद विवाह की सभी रस्में भी आराम से निपट गईं,लोगों ने लक्ष्मी देवी और रामभरोसे जी का शुक्रिया अदा किया और फिर बहुत दिनों तक लक्ष्मी देवी आस पास के इलाकों में चर्चा का विषय बनीं रहीं.....
लोगों ने बस यही कहा कि इसे कहते हैं "फौजी की फौजन" इस उम्र में भी हार नहीं मानी और मैदान में डटी रहीं,वें अब लगभग अस्सी साल के ऊपर हो चुकीं हैं,उनके पति रामभरोसे अब इस दुनिया में नहीं रहे और वें अब सबको अपने पुराने किस्से सुनाया करतीं हैं,उन्होंने ही मुझे ये किस्सा सुनाया था.....
समाप्त....
सरोज वर्मा....