बड़ी बिंदी Saroj Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बिंदी

"ओहो देख तो नीतू मेरा आई लाइनर फैल गया जरा तू लगा देना।।"

"तेरी बस जुबान चलती है एक काम तो से ढंग से नहीं होता ना पहले तुझे ही तैयार करूं। "
नीतू की बड़ी बहन नीतू अपनी मेकअप किट से आई लाइनर निकालते हुए बोली।

"साड़ी पिन है क्या किसी के पास! मैंने रखी तो थी लगता है घर पर ही छूट गई।"
रमा मौसी अपना एक्ससरीज बैग‌ खंगालते हुए बोली।

"लो दीदी! मैं ज्यादा रख लाई थी।" बीना अपनी बड़ी बहन को साड़ी पिन देते हुए बोली।

बरात आने वाली थी। सभी जल्दी से जल्दी तैयार होने में लगे थे। ऐसे मौकों पर सामने होते हुए भी कई चीजें दिखाई नहीं देती। वही अफरा-तफरी का माहौल यहां भी था। मौका था मालती की बेटी की शादी का। कुछ पार्लर तैयार होने चली गई थी और कुछ वही जो खुद मेकअप करने में एक्सपर्ट थी अपना और बाकी रिश्तेदारों का मेकअप करने में लगी थी।



हंसी मजाक करते हुए सभी जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी और वहीं पास में बैठी मालती की बड़ी बहन किरण उन सबको देखकर बस मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

2 साल पहले तक वह भी तो इन सबका हिस्सा थी लेकिन कोरोना दानव ने उससे साज सिंगार करने का अधिकार छीन लिया।

जहां किरण को शुरू से ही मेकअप करना कम पसंद था वहीं पति मनोज को उन्हें सजी संवरी देखना।

देखो किरण दिन में तुम कैसे भी रहो लेकिन जब मैं ऑफिस से आऊं तो तुम मुझे पूरे साधु सिंगार के साथ मिलों। और सुनो छोटी बिंदी मत लगाया करो ।तुम्हारे चेहरे पर तो मुझे बड़ी बिंदी अच्छी लगती है।
कहते हुए मनोज जी अक्सर उनके माथे पर बिंदी के साथ साथ अपना प्यार अंकित कर देते थे।
लेकिन उनके जाने के बाद जीवन के साथ-साथ उनका माथा भी सूना हो गया था।

"लो बिंदी! जिसको जो पसंद है लगा लो। बिल्कुल लेटेस्ट फैशन की लेकर आई हूं।
मौसी जी आप तो बड़ी बिंदी ही लगाती हो ना! लो यह आपके टेस्ट की हैं!"
किरण की छोटी बहन की बेटी दीया उनके सामने बिंदी का पत्ता आगे करते हुए बोली।

उसकी बात सुनकर एकदम से सबका ध्यान वहीं गया।
किरण जी खुद भी तो चौंक गई थी। फिर उसकी नादानी पर हल्के से मुस्कुराते हुए बोली
"नहीं बेटा मुझे इसकी जरूरत नहीं तुम रखो।"

"क्यों जरूरत नहीं। यह बिंदिया पसंद नहीं आई तो मैं दूसरी ले आती हूं।" दीया मासूमियत से बोली।

किरण जी अभी कुछ और कहती । उससे पहले ही दीया की मम्मी उसके हाथ से बिंदिया लेते हुए बोली

" हे भगवान! ऊंट जितनी लंबी हो गई लेकिन पता नहीं इसे अक्ल कब आएगी। मौसी मना कर रही है तो क्यों कर रही है जबरदस्ती। नहीं लगा सकती वो अब बिंदी!"

" लेकिन क्यों नहीं लगा सकती मम्मी! यही तो मैं पूछ रही हूं!!" दीया ने फिर से सवाल किया।

" इतना टीवी देखती है। इतनी किताबें पढ़ती हैं ।तुझे नहीं पता कि हमारे समाज में पति की मृत्यु के बाद साज शृंगार नहीं किया जाता।" दीया की मम्मी थोड़ी दबी आवाज में बोली।

अपनी छोटी बहन की बात सुनकर किरण जी का चेहरा उतर गया।

यह देख दीया के साथ साथ किरण की बेटी शालिनी जो उसी कमरे में तैयार हो रही थी को बहुत बुरा लगा।
वह अपनी मौसी को जवाब देने ही वाली थी कि तभी दीया फिर से बोल पड़ी "मम्मी कौन सी सदी में जी रही हो आप वैसे तो आप हमेशा दादी की बातों को काटते हो।
आप ही तो बताती थी कि परिवार में जहां सभी औरतें घूंघट करती तो आपने यह कहकर कभी घुंघट या सिर पर पल्ला नहीं लिया कि यह सब पुराने रीति रिवाज है। मैं इन्हें नहीं मानती। औरतों को आगे बढ़ने के लिए ऐसे दकियानूसी रिवाजों को पीछे छोड़ना ही होगा।
फिर आज आप मौसी के लिए ऐसी बातें कैसे कर रही हो।"

अपनी बेटी की बातों को सुनकर एक बार तो दीया कि मम्मी को कोई जवाब नहीं सूझ फिर थोड़ा संभलते हुए बोली
"हां मैं मॉडर्न तभी तो तेरी मौसी को मैंने शादी की सभी रस्मों में शामिल किया लेकिन बेटा बिंदी और सिंदूर तो पति से जुड़े हैं ना!! क्यों दीदी मैं सही कह रही हूं ना!"


अपनी छोटी बहन की बात सुन किरण का मन भर आया वह क्या कहती! बस हां में गर्दन हिला दी।

लेकिन किरण की बेटी अपनी मां की मनोदशा समझ रही थी इसलिए वह उनके पास आते हुए बोली

" मम्मी, आप ही तो कहती हो पापा हमसे दूर नहीं गए बल्कि हमारे आसपास ही हैं। आपने पापा से जुड़ी हर चीज को उसी तरह सहेज कर रखा है। हर संडे को जैसे आप पहले पापा की पसंद का खाना बनाती थी वैसे अब भी। आप हर चीज यथास्थिति रख यही चाहती है ना कि हमें उनकी कमी महसूस ना हो। हम उन्हें अपने आसपास ही पाएं। उनके जाने के बाद भी उनकी हर खुशी का ख्याल रखती हो। सच कह रही हूं ना मम्मी!!"

अपनी बेटी की बात सुनकर किरण ने भरी आंखों से हां में गर्दन हिला दी।

" अगर ऐसा है तो मम्मी क्या पापा को आपका सूना माथा देखकर खुशी मिलती होगी। उन्हें तो आप हमेशा सजी संवरी पसंद थी ना और अब इस तरह आपको देखकर उनकी आत्मा को शांति मिलती होगी क्या!!"

" बेटा जब तुम्हारे पापा ही चले गए तो फिर यह सब बेमानी है! किसके लिए!!"

" क्या सचमुच पापा चले गए!! फिर क्यों आपने उनकी यादों को सहेज कर रखा है। हमारी खुशी आपके लिए कोई मायने नहीं रखती। क्या कभी आपने सोचा है आपको इस तरह बेरंग देख हम दोनों बहन भाइयों के मन पर क्या गुजरती होगी। आपको दुनिया की परवाह है हमारी और पापा कि नहीं!!"

" नहीं बेटा, जब तेरे पापा थे तब भी और अब भी तुम दोनों

की खुशियों से बढ़कर ना पहले कुछ प्यारा था और ना अब!! मेरे बच्चों को जिससे खुशियां मिले वहीं मेरे लिए सबसे पहले!!"

" सच मां! हमारी खुशियां भी आप से जुड़ी है दुनिया से नहीं!" कहते हुए शालिनी ने अपनी मम्मी के माथे पर एक गोल बड़ी सी बिंदी लगा अपने पापा की तरह उस पर अपना प्यार अंकित कर दिया।
शालिनी जी सबकी परवाह किए बगैर भरी आंखों से मुस्करा दी

दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना और शालिनी व दीया के विचार कमेंट कर जरूर बताएं।
आपकी सखी सरोज ✍️