विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 22 सीमा बी. द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 22

विश्वास (भाग-22)

दादी और टीना ने कुछ देर आराम किया। फिर शाम को भुवन की मम्मी के साथ उमा जी सरला जी को मिलने चली गयी। भुवन और टीना बाद में मिठाई और गिफ्ट ले कर गए। कुछ देर रुक भुवन टीना को अपने खेत दिखाने ले गया।

भुवन रास्ते भर टीना को कौन से खेत मे कौन सी फसल है, बताता रहा। टीना को सब बहुत लुभा रहा था। ढलती शाम में सब अपने अपने घर लौट रहे थे। बैलगाड़ी देख कर उसने बैलगाड़ी में बैठने की जिद करने लगी। "टीना बैलगाडी में कल बैठना, अभी चलो तुम्हें कुछ दिखाना है और किसी से मिलवाना भी है"।

"ठीक है, पर दादी के भी बैलगाड़ी पर घुमाएँगें, चलो अब कहाँ चलना है"। कह टीना मोटर साइकिल पर बैठ गयी। "थोड़ी ही दूर है", कह कर भुवन ने मोटर साइकिल थोड़ा आगे जा कर दूसरी दिशा में घुमा दी।
कोई पाँच मिनट के बाद वो लोग एक बिल्डिंग के बाहर थे।

बिल्डिंग पर बोर्ड लगा था, "आशा देवी हाई स्कूल" , नीचे इंग्लिश मीडियम लिखा था।
टीना ये स्कूल हमारी बुआ के नाम पर है, वो अपने समय में पढ़ नहीं पायी थी क्योंकि तब यहाँ स्कूल नहीं थे। अब भी स्कूल तो हैं पर सरकारी स्कूलों में पढाई कुछ खास नही होती। लड़कियों के लिए तो और भी मुश्किल हो जाता है , पाँचवी के बाद गाँव के बड़े स्कूल जाना जो गाँव शुरू होते ही तुम्हे दिखाया था।

"यह तो हमारे सर बहुत अच्छे हैं जिन्होंने अपनी बेटियों के साथ साथ मुझ जैसे कई बच्चों का फ्यूचर बना दिया है। दोनो दीदी भी हमारी खूब हेल्प करती थीं"। टीना सुन कर हैरान थी क्योंकि उसने तो कभी सपने में भी नही सोचा था कि हमारे देश में अभी भी ऐसी हालत है।

"अब यहाँ पर 1-2 प्राइवेट स्कूल हैं पर थोड़े मँहगे है। सब अपने बच्चों को नही भेज पाते। हमारा सपना अपने गाँव के सब बच्चों को अच्छी और सस्ती ऐजुकेशन दे सके। पापा ने गाँव के मुखिया होने के नाते पहल की तो सर जैसै और लोग भी आगे आँए हैं तो ये काम पूरा हुआ है। स्कूल तैयार है और कल इसका मुहूर्त है"।

"अच्छा आप हमको तभी ले कर आए हो, अच्छा अब उनसे भी मिलवा दो जिनसे मिलने आए हैं"। "रूको एक बार फोन कर लूँ"। फोन पर बात करके भुवन ने टीना को "अंदर चलो वहीं मिलवाता हूँ"। कह गेट खोल दिया। प्रिंसीपल रूम लिखी था, जहाँ भुवन रुक गया। दरवाजा शायद सिर्फ भिड़ा हुआ था, क्योंकि भुवन के हल्के से धकेलने से ही खुल गया।

"वेलकम टीना", अपना नाम सुन कर टीना ने चौंक कर भुवन को देखा। कुर्सी का मुँह दीवार की तरफ था तो वो बोलने वाले का चेहरा नहीं देख पायी। फिर भुवन भी उसके आगे था। "भुवन टीना को तो अंदर आने दो", भुवन को चौखट में ही खडे देखकर वो बोली तो," भुवन सॉरी टीना अंदर आओ", कह भुवन कमरे में आ गया।

लड़की की आवाज थी, ये तो टीना समझ गयी थी। सामने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी थी। "टीना ये संध्या है इस स्कूल की प्रिसींपल या कहो मालकिन सब यही है। संधु इसे तो तुम जानती हो, मेरी इस दुनिया में एकलौती दोस्त टीना है"। टीना को संध्या ने काफी इंप्रेस किया। वो भी इसी गाँव के एक गरीब किसान की बेटी है, होशियार थी तो सर ने थोडी मदद की। आज जिसका रिजल्ट उसने देख ही लिया है।

इतनी पढने के बाद तो वो शहर ने बढिया सी नौकरी न करके गाँव में रहने का फैसला जुनून से कम नहीं। वापिस आते हुए भुवन ने टीना से पूछा, "तुम्हे संध्या कैसी लगी"? "आपने मुझे अपनी एकलौती दोस्त क्यों कहा? वो भी तो दोस्त हैं आपकी"!!

"नहीं टीना तुम ही मेरी एकलौती दोस्त हो। क्योंकि उससे तो मैं बचपन से ही शादी करना चाहता था" कह कर भुवन हँस दिया।
"सच में!!!कितने क्यूट लग रहे हो आप ऐसे शरमाते हुए"? टीना के छेड़ने पर सचमुच उसके गाल लाल हो गए।

"ज्यादा टाँग मत खींचो और बताओ शादी कर लूँ इससे"? " अब ये भी पूछने की बात है जल्दी से शादी करो , हम भी आँएगे और खूब मजे करेंगे"। "अगर तम्हारी हाँ है तो मेरी भी हाँ है"।भुवन ने हँसते हुए कहा," पर शादी वो तभी करेगी जब स्कूल शुरू हो जाएगा"।

हाँ यह तो देखा मैंने आप लोग सही मायने मे सोसाइटी की हेल्प कर रहे हैं। सरला आँटी और उनकी फैमिली जैसे लोग आपके नेक काम में जुड़ते चले जाँएगे।