साधारण लोग शरीर की शक्ति को ही सर्वोपरि मानते हैं उनकी समझ में जो आदमी जितना हट्टा कट्टा पोस्ट और मजबूत शरीर वाला होता है वह उतना ही शक्तिशाली होता है जो मनुष्य 40-50 किलो भजन आसानी से एक जगह से उठाकर दूसरी जगह रख सकता है जो मोटरसाइकिल को पकड़कर रोक सकता है लोहे की मोटी क्षण को मोड़ सकता है उसे बहुत बलवान माना जाता है किंतु एक ऐसा मनुष्य जो 20 किलो वजन भी नहीं उठा सकता वह ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति को ललकार देता है और उसे अपनी इच्छा के अनुसार चलने को मजबूर कर देता है जो 60 से 80 किलो वजन सकने और शरीर में पहलवान व्यक्ति को भी अपनी इच्छा के अनुसार चलने को मजबूर कर देता है तब हमको अनुभव होता है की संसार में शारीरिक शक्ति से बढ़कर कोई अन्य शक्ति काम कर रही है और वही वास्तव में समस्त कार्यों का मूल कारण है।
विचार किया जाए तो संसार का आदि स्वरूप सूक्ष्म ही है और उसी के क्रम से स्थूल का विकास हुआ है इस प्रकार हम सूक्ष्म को स्थूल (जो भौतिक रूप से दिखाई देता है) का कारण कह सकते हैं और कारण को जान लेने तथा इसका अनुभव कर लेने पर कार्य को सफल बना सकना कुछ भी कठिन नहीं रहता।
एक समय था जब मनुष्य केवल अपने हाथ पैरों या हाथी घोड़े बैल की शक्ति को ही प्रधान मानता था और उसी से बड़े-बड़े कार्य सिद्ध करता था उस समय अगर कोई शो 200 किलो की वस्तु अपने स्थान से हटाने पड़ती तो 100 आदमी लग जाते एवं अनेक हाथी बैलों को एक साथ लगाकर इस कार्य को पूरा कराया जाता था पर कुछ समय बाद जब मनुष्य को भाप ( स्टीम) जैसी सूचना वस्तु का ज्ञान हुआ तो उसकी सहायता से अकेला मनुष्य ही हजार हजार टन वजन की वस्तुओं को हटाने में समर्थ हो गया । इससे आगे चलकर मनुष्य को बिजली की शक्ति का ज्ञान हुआ जो भाग की शक्ति से भी सूचना थी इससे मनुष्य को ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि वह सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठकर ऐसे ऐसे कार्यों को पूरा करने लगा जैसे पहले हजार आदमी भी कठिनाई से कर सकते थे अब वर्तमान में मनुष्य परमाण्विक शक्ति को उपयोग कर रहा है जो बिजली से भी अत्यंत सूचना है इसकी सहायता से आशा की जा रही है कि बड़े-बड़े पर्वतों और सागरों की भी कायापलट कर सकेगा और आकाश में स्थित ग्रहों पर भी अधिकार कर सकेगा।
इतना होने पर भी यह सब भौतिक शक्तियां है इनका उद्गम तो भौतिक पदार्थों से होता है और उनका प्रभाव भी भौतिक जगत तक ही सीमित रहता है हमारा मन इन भौतिक पदार्थों की अपेक्षा कहीं अधिक सूक्ष्म है, इसलिए स्वभाव बस वह इन सब की अपेक्षा अधिक शक्ति का भंडार है यह सच है कि लोगों को ना तो मन की शक्ति का ज्ञान है और ना ही बे उस से काम लेने की विधि जानते हैं पर यदि हम इस विषय पर बात करें तुम मन की शक्ति से ऐसे ऐसे कार्य किए जा सकते हैं जो मनुष्य की भौतिक शक्तियों से असंभव है आजकल लोग जो हिप्नोटिज्म मेसमेरिज्म विचार चमकम संक्रमण थॉट ट्रांसफरेंस आदि के चमत्कार दिखाते हैं उनकी शक्तियों के साधारण कार्य हैं पर इन्हीं के द्वारा कैसे-कैसे असंभव जानी वाली बातें कर दिखाई जाती है जिसका वर्णन स्वामी विवेकानंद जी ने एक स्थान पर किया है उन्होंने अपने एक भाषण में बतलाया है:--
मैंने एक बार ऐसे मनुष्य के बारे में सुनाओ जो किसी के प्रश्न का उत्तर प्रश्न सुनने से पहले ही बता देता था मुझे यह भी बताया गया कि वह भविष्य की बातें बताता है मुझे उत्सुकता हुई और अपने कुछ मित्रों के साथ मैं वहां जा पहुंचा ।
मैंने और मेरे दोस्तों ने पूछने का प्रश्न अपने मन में सोच लिया और कोई गलती ना हो इसलिए उन प्रश्नों को एक कागज में लिख कर अपनी जेब में रख लिया जैसे ही हम में से एक वहां पहुंचा उसने हमारे प्रश्न और उनके उत्तर बताने शुरू कर दिया फिर उस मनुष्य ने एक कागज पर कुछ लिखा उसे मोड़ा और पीछे की तरफ मेरे साइन कराएं तब वह बोला
"इसे पढ़ो मत, अपनी जेब में रख लो जब तक कि मैं इसे ना मांगू।"
उसने ऐसा ही एक एक कागज सबको दिया मुझे ही बात कही फिर उसने कहा कि अब तुम किसी भी भाषा का कोई भी वाक्य या शब्द अपने मन में सोच लो। मैंने संस्कृत का एक लंबा वाक्य सोच लिया। वह मनुष्य संस्कृत बिल्कुल नहीं जानता था । उसने कहा - "अब अपने जेब में से उस कागज को निकालो ।"
और कैसा आश्चर्य हुआ ! वही संस्कृत का वाक्य उस कागज पर लिखा था और नीचे यह भी लिखा था कि जो कुछ मैंने इस कागज पर लिखा है वही यह मनुष्य सोचेगा। और यह कागज उसने मुझे एक घंटा पहले लिखकर दे दिया था।
मेरे दूसरे दोस्त ने उसी तरह का अरबी भाषा का एक वाक्य सोचा अरबी भाषा जानना उस मनुष्य के लिए असंभव था । वह वाक्य 'कुरान शरीफ ' का था
लेकिन मेरा मित्र क्या देखता है कि वह भी उसके जेब में रखे कागज पर पहले से लिखा हुआ रखा है । मेरे दोस्तों में एक साथ ही डॉक्टर था उसने सोचा जर्मन भाषा की किसी डॉक्टर की पुस्तक का वाक्य अपने मन में सोचेगा उसकी जेब के कागज पर भी वही वाक्य लिखा हुआ निकला ।
" यह सोच कर कि मैंने कहीं धोखा ना खाया हो , कई दिन बाद मैं फिर अपने दूसरे मित्रों को साथ लेकर वहां गया पर इस बार भी उसने वैसा ही आश्चर्यजनक चमत्कार दिखाया।"
इस प्रकार की उदाहरणों की कोई कमी नहीं है हमने यह उदाहरण इसलिए दिया है क्योंकि यह एक ऐसे महापुरुष के मुंह से निकला है जिसकी सच्चाई पर कोई भी संदेह नहीं कर सकता यह बात वैसे बड़ी आश्चर्यजनक सी लगती है पर यह दूसरों के दिमाग में उठने वाले विचारों को जान लेने और अपने विचारों को उनके दिमाग में प्रविष्ट करा देने की विद्या के सिवा कुछ नहीं है योग शास्त्र के अनुसार यह एक अध्यात्मिक उन्नति की दूसरी सीढ़ी है जो मनोमय कोष पर कुछ अधिकार प्राप्त कल लेने से आती है प्रत्येक मनुष्य का मन संसार के समस्त मन का एक छोटा सा अंश मात्र है और इसलिए प्रतीक मन दूसरे हरेक मन से जुड़ा हुआ है मन एक विश्वव्यापी तत्व है इसी अखंडता के कारण हम अपने विचारों को एकदम सीधे बिना किसी माध्यम के आपस में संक्रमित कर सकते हैं और इसके द्वारा छोटे-मोटे चमत्कार ही नहीं दिखा सकते हैं इसके अलावा बहुत बड़ी संख्या में व्यक्तियों के मन को अपनी इच्छा के अनुसार उचित मार्ग पर मोड़ सकते हैं।
मनुष्य इस प्रकार मन की शक्तियों को कहां तक पढ़ा सकता है इसका कोई अंतर नहीं है इस प्रकार जब हम अपने मन की बड़ी शक्तियों को किसी एक विषय पर लगा देते हैं तो उसमें आश्चर्यजनक उन्नति प्राप्त की जा सकती है भारतवर्ष के ऋषि महा ऋषि यों ने बिना कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्राप्त किए हुए जो अद्भुत आविष्कार किए थे और वैज्ञानिक सिद्धांतों को खोजा था उसका मूल्य इसी प्रकार की मानसिक शक्ति में था। गणित ज्योतिष चिकित्सा रसायन शास्त्र भौतिक विज्ञान आदि अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों की रचना उन लोगों ने मन की शक्ति का उपयोग करके की थी इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक ने साधारण धातु को सोने के रूप में बदलने अपने पंच भौतिक शरीर को लगभग अमर बनाने बिना किसी यंत्र के आकाश में उड़ने आदि जैसे असंभव माने जाने वाले कार्यों को भी पूरा करके दिखाया था पर जो कि इस प्रकार के कार्यों में उनकी मानसिक शक्ति ही प्रधान थी वर्तमान समय के अनुसार यांत्रिक साधनों का उनमें विशेष संपर्क ना था यही कारण है कि उस समय एंड ध्यान और विधियों का वैसा सार्वजनिक रूप से प्रचार-प्रसार ना हो सका जैसा कि हम आजकल देखते हैं पर इससे यह नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान युग विज्ञान की दृष्टि से विशेष उन्नति का है इस समय वैज्ञानिक आविष्कारों की सार्वजनिक ता का परिणाम यह है कि उनमें से अधिकांश का दुरुपयोग हो रहा है और प्रत्येक अविष्कार रुपया कमाने का स्वार्थ साधन का जरिया बन गया है अंत में बढ़ते बढ़ते यहां तक नौबत आ गई की स्वार्थी और गैर जिम्मेदार व्यक्ति परमाणु बम और हाइड्रोजन बम जैसे विनाशकारी साधनों के अधिकारी बन गए हैं और संसार के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं यही कारण था कि भारत के प्राचीन विद्वान और वैज्ञानिक शक्ति संपन्न व्यक्ति ऐसे रसों को केवल अधिकारी व्यक्तियों को बतलाते थे और बस लाने के पहले उनकी हर प्रकार से परीक्षा लेते थे।
इसमें संदेह नहीं कि मन की सामर्थ शक्ति अपार है और यदि हम वास्तव में मन की शक्ति बढ़ाकर अपनी और दूसरों की उन्नति के लिए इसका प्रयोग करें तो संसार का बड़ा कल्याण हो सकता है।