भाग 32: जीवन
सूत्र 35: योग:जीवन में जोड़ने की सकारात्मक विद्या
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2/50।।
इसका अर्थ है,हे अर्जुन!समत्वबुद्धि वाला व्यक्ति जीवन में पुण्य
और पाप इन दोनों कर्मों को त्याग देता है(इनके द्वंद्वों से मुक्त हो जाता है)इसलिए
तुम योग से युक्त हो जाओ। कर्मों में कुशलता ही योग है।।
आधुनिक जीवन शैली
की भागदौड़, चिंता और तनाव को दूर करने का सरल उपाय योग है। योग 'युज' धातु से बना
है।जिसका अर्थ है जुड़ना,जोड़ना मेल करना। अगर हमारी बुद्धि सम हो जाए,तो जीवन की समस्याएं
हमें विचलित नहीं करेंगीं, बल्कि हमें इनका सामना करने की सूझ और साहस प्रदान करेगी।
श्री कृष्ण ने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने का निर्देश दिया है। हम अपने वास्तविक
जीवन में अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा
करते हुए योग ही कर रहे होते हैं।
अपने योग सूत्र में पतंजलि
ऋषि ने कहा है,योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः अर्थात चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण ही योग
है। अगर हमने अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण कर लिया, तो हमारी आधी समस्याओं को हल
करने की ताकत हमें स्वत: ही प्राप्त हो जाएगी। पूरे विश्व में 21 जून 2015 को पहली
बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। इसके 21 जून को मनाए जाने का विशेष महत्व है।इस
दिन पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता है और यह दिन ग्रीष्म संक्रांति
का भी प्रतीक है, अर्थात इसके बाद ग्रीष्म की प्रखरता क्रमशः कम होने लगती है।पतंजलि
ऋषि ने अष्टांग योग की अवधारणा हमें दी है। इसके अंतर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम,
प्रत्याहार,धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं। इसमें यम हैं- सत्य, अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य
जैसे सद्गुण।
नियम हैं - शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय तथा ईश्वर- प्राणिधान।ये हमारे
आचरण से जुड़े हैं। यम और नियम का पालन हमारे शरीर को प्राणायाम और योग अभ्यास के लिए
तैयार करता है। तब हम आसन पर बैठकर प्राणायाम के लिए पूरी तरह से तैयार हो पाएंगे।
हमारी इंद्रियां बहिर्मुखी हैं।ये विषयों की ओर भागती हैं। प्रत्याहार इनके अंतर्मुखी
होने की अवस्था है।चित्त को शरीर के भीतर या बाहर किसी एक बिंदु पर स्थिर कर देना ही
धारणा है। यह ध्यान का आधार है।इस स्थिर बिंदु पर चित्त की निरंतरता ही ध्यान है। ध्यान
करते-करते जब स्वयं की अनुभूति नहीं रह जाती,ध्येय ही शेष रह जाता है और ध्येय से साधक
एकाकार हो जाता है, तो वह समाधि की स्थिति है। प्राणायाम का अर्थ है- प्राण का आयाम
अर्थात प्राण वायु का विस्तार ।यह प्राणवायु श्वास निश्वास की गति के नियंत्रण के माध्यम
से हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की कोशिकाओं तक पहुंचती है।योग और ध्यान का
विद्यार्थियों की पढ़ाई में एकाग्रता और याददाश्त में वृद्धि के
लिए विशेष महत्व है।
(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत
के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन
पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ
में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध
अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक
वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण
की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख
उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम
है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने
का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
डॉ. योगेंद्र