मंजिल की तलाश TULSI RAM RATHOR द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मंजिल की तलाश

निकल पड़ा हूं सुनसान सड़कों पर ,
डर है कहीं खो ना जाऊं।
जागती आंखो ने कुछ सपने देखे हैं
डर है कहीं सो ना जाऊं।।

इन सपनों को लिए निकल पड़ा हूं,
अकेले ही इस राह पर।
मिले जो कोई तो पुछूं उनसे,
क्यों गर्व है अपनी चाह पर।।

इस जिंदगी की राह पर ,
बहुत से पड़े हैं पाथरे।
पता नहीं मंजिले मिलेगी ,
या मिलेगी केवल ठोकरें।।

कर्म तो बहुत कर लिया,
अब नसीब का सहारा है।
नसीब मेरा खराब नहीं,
ये वक़्त का मारा है।।

चहुं दिशा में इस जिंदगी की,
हर तरफ एक मोड़ है।
हर घड़ी हर किसी को,
बस जीतने की होड़ है।।

माना कि थोड़ा थका हूं मैं,
लेकिन अभी झुका नहीं।
मत समझ की हार गया,
अभी तो मैं रुका नहीं।।

हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं,
मगर कम दाम मिलते हैं।
प्रतिक्षण हम बुरे शासन-
बुरे शोषण से पिसते हैं!
अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से
वंचित हम कलपते हैं।
सड़क पर खूब चलते
पैर के जूते-से घिसते हैं।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारी ग्लानि के दिन हैं!

हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं!
न दाना एक मिलता है,
खलाये पेट फिरते हैं।
मुनाफाखोर की गोदाम
के ताले न खुलते हैं।
विकल, बेहाल, भूखे हम
तड़पते औ' तरसते हैं।
हमारे पेट का दाना
हमें इनकार करते हैं।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारी भूख के दिन हैं!

हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं!
नहीं मिलता कहीं कपड़ा,
लँगोटी हम पहनते हैं।
हमारी औरतों के तन
उघारे ही झलकते हैं।
हजारों आदमी के शव
कफन तक को तरसते हैं।
बिना ओढ़े हुए चदरा,
खुले मरघट को चलते हैं।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारी लाज के दिन हैं!

हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं!
हमारे देश में अब भी,
विदेशी घात करते हैं।
बड़े राजे, महाराजे,
हमें मोहताज करते हैं।
हमें इंसान के बदले,
अधम सूकर समझते हैं।
गले में डालकर रस्सी
कुटिल कानून कसते हैं।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारी कैद के दिन हैं!

हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं!
इरादा कर चुके हैं हम,
प्रतिज्ञा आज करते हैं।
हिमालय और सागर में,
नया तूफान रचते हैं।
गुलामी को मसल देंगे
न हत्यारों से डरते हैं।
हमें आजाद जीना है
इसी से आज मरते हैं।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारे होश के दिन हैं!

जिसे तुम देखते हो जिसे तुम चाहते है
जिसे तुम खोजते है वो ये दुनिया नहीं है

कर्त्ता कर्म क्रिया से मिल कर जो भी बना है
मानकर उसको अपना पाया दुख ही घना है
सीप में मोती चमके रेत में नीर चमके
सभी साए भरमके वो ये दुनिया नहीं है

किताबों में लिखा जो इन आँखों ने लखा जो
कामना की डोर से झूठा संसार रचा जो
खुशी खोजे ना मिलती कली मन की ना खिलती
हस्ती हर बार बिखरती वो ये संसार नहीं है

जो अपना है वह कभी फरेबी नहीं होता,
जो फरेबी हो वह कभी अपना नहीं होता.
जितना खेलना है बेशक खेले मेरे दिल से
ऐसा मजबूत खिलोना किसी बाजार में नहीं होता.

मैनें भरोसा किया जिस सादगी पर
हर सादगी का ऐतबार नहीं होता.
मुसाफ़िर हो जो दरबदर का,
उसका कभी इंतजार नहीं होता.

जो सिर्फ रोशनी में हो साथी
अंधेरे मे उसका सहारा नहीं होता.
जिसकि फितरत में हो बेवफाई
फिर उसे वफादार गंवारा नहीं होता.

जैसे बेगैरत, घटिया इंसान का ईमान नहीं होता,
थूकदान का कभी पानदान नहीं होता.
चाहे कितनी भी मोहब्बत करलो शैतानसे वो कभी इंसान नहीं होता

रिश्ते निभाएं जाते हैं साफ दिलो से,
झुठे दिलवाले का कोई रिश्ता ही नहीं होता.
जब घडा़ भर जाए झुठ और फरेब का
फिर उसे सुनने वाला फरिश्ता भी नहीं होता.

सहे कर सब कुछ हरबार गुनाहगार मैं नहीं होता.
पेश आता मैं भी सक्ती से, ईट का जवाब पत्थर से देता.
तोड़ देता वो हर हात गिरेबान पकडने से पहले.
काश मेरे अंदर भी थोडासा कमिनापण होता.

भरोसा करो अच्छी परवरिश वालों पर.
बुरी परवरिश वाला कभी भरोसेमंद नहीं होता.
जिसपर करो ज्यादा भरोसा,असल मे वही सबसे बड़ा धोकेबाज होता.

मेरे आस्तीन में पल रहे थे जहरिले साप बडे सुकून से.
काश हर जहरिले साप का मेरे पास ईलाज होता.
बच सकता था मै भी उनके जहर से
काश मेरा भी थोडा़ गरम मिज़ाज होता.

दर्द देने वाले हर मोड पर मिले मुझे.
काश किसी मोड़ पर हमदर्द मिला होता.
भर जाते घाव मेरे भी जख्मी दिल के.
काश कोई मर हम लगाने वाला होता.

Jayhooo...