आदमी की नब्ज.राम गोपाल भावुक Ram Bharose Mishra द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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आदमी की नब्ज.राम गोपाल भावुक

आदमी की नब्ज - श्री राम गोपाल भावुक
राम भरोसे मिश्रा

श्री राम गोपाल भावुक का नया कहानी संग्रह "आदमी की नब्ज़"लोकमित्र प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इसमें लेखक की चौदह कहानियाँ सम्मिलित हैं। कहा जाता है कि उपन्यास में हर लेखक द्रुतविलम्बित ताल से चलता है और कहानियों में हरिण की चाल से। इसका आशय हम कह सकते हैं कि हरिण की छबि , उसकी मुखमुद्रा क्षण भर को दर्शक को दिखाई देती है और स्मृति में शेष रह जाती है -उसकी छलांग, उसके गले से निकले स्वर तथा अत्यन्त दुबले से पैरों की उद्दाम क्षमता। इन कहानियों के बारे में भी संक्षेप में यही कहा जा सकता है।

शीर्षक कहानी 'आदमी की नब्ज' एक स्त्री राजनीतिज्ञ की कहानी है जो अपनी बाल सुलभ महात्वाकांक्षा, अपने सौन्दर्य और शुचिता त्याग के फलस्वरूप विधानसभा क्षेत्र के सर्वोच्च पद पर चुन ली गई है। अखबार में अपने निर्वाचन के क्षणों की खबर पढ़कर फ़्लैशबैक में बचपन से अब तक घटी घटनाओं व उनसे निकले विचारों से प्रकट होता है कि अमृता ने आदमी की नब्ज़ को पहचान लिया है, अब अगला सफर आसान है। इस कहानी की तरह स्त्रियों पर केन्द्रित कुछ अन्य कहानियाँ भी हैं जिनमें बेहतर उम्मीद में स्त्री, पति के पाँव, आज की स्त्री, ठसक, टूटतातारा तथा विजया के नाम लिए जा सकते हैं।
'ठसक' कहानी स्त्री सशक्तीकरण की सुचिंतित कहानी है। उसमें नीलम एक बहुत खूबसूरत स्त्री है जो पूरी ठसक के साथ सेवा कर्म करती है। उसका पति -चौकीदार हैं। एकप्रसंग देखिए-
'अरी तुम जैसी सुंदरी को यह काम शोभा नहीं देता।"
सुंदरता की बात सुनकर मैंने पूछा "तो कौन सा काम हमें शोभा देता है? "
बंटी बोला "भौजी हम तो तुम्हारी सुन्दरता पर फिदा है। तुम्हारी बड़ी बड़ी कजरारी आँखें, हिरनी की चितवन, सुरारी नासिका, चाँदनी सा शुभ्रबदन और तुम्हारी मयूरी के सदृश्य चाल देखते ही रह जाता हूँ।"
मैंने कड़क कर उसका हाथ झटक दिया और बोली "ख़बरदार जो
और आगे बढ़ा।"
मुझे भारी गुस्सा आ रहा था लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि बंटी जैसों को कैसे सबक सिखाऊँ ?
सहसा मुझे एक तरीका सूझा और मैंने उस मलबे के तसले को चौराहे पर आकर पटक दिया| (पृष्ठ 116)

इसके विपरीत कहानी " पति के पाँव" की नायिका अपने पति की सारी बातें बर्दाश्त कर लेती है, लेकिन सोते समय उनके पाँव दबाना उसे गुलामी की मनोवृत्ति दिखती है। वह तो अपने कमरे में से वह तस्वीर भी हटा देती है , जिसमें लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पैर दबा रही है।
कहानी "बेहतर उम्मीद में स्त्री" की नायिका, उसको देखने आये वर
डाक्टर व इंजीनियर को अकेले में झड़क देती है, क्योंकि उसे केवल धन के स्तर पर बड़े और कमाऊ वर की लालसा नहीं है , बल्कि वह बुद्धिस्तर पर समर्थ और प्रेम में डूबा वर चाहती है।
संग्रह की एक और सशक्त कहानी "आज की स्त्री" है, जिसमें सुमन को अपनी छोटी सी नौकरी पर ऐसा आत्मविश्वास है कि वह पति के अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ शादी के तुरन्त बाद, तनकर खड़ी हो जाती है। वह अपने पिता से कहती है "पापाजी में नौकरीतो छोड़ने वाली हूँ नहीं, चाहे और कुछ छूट जाए (पृष्ठ 108)

कहानी" विजया" ऐसी आत्मविश्वासी लड़की की कहानी है जो समाज में अपनी बदनामी की परवाह किए बगैर छेड़‌छाड़ करने वाले व्यक्ति के खिलाफ पुलिस स्पट दर्ज कराने थाने में चली जाती है। लेखक की यह चतुराई है कि उसने विजया द्वारा दर्ज कराई जा रही पुलिस रपट के समर्थन में समाज को खड़ा कर दिया है -
मुझे तो उस समय भारी आश्चर्य हुआ जब मेरे मम्मी पापा भी थाने आ पहुँचे। मैं उन्हें देखकर उन्हें समझाने के लिए उनकी और देखकर मुस्करा दी। वे दोनों मेरे पास आकर मेरी पीठ थपथपाने लगे।
कहानी "रिश्ता" भी स्त्री की कहानी है। एक ऐसी युवती जो अपने बोलने के कौशल की बदौलत कॉलेज छात्र संघ की अध्यक्ष चुनली जाती है ,ज्योंही पढ़ाई में बिजी होती है कि उसके एक कजिन द्वारा की गयी फर्जी खरीदी के बिलों में अनजाने में हस्ताक्षर कर देती है । इसका परिणाम यह होता है कि वह चैतन्य हो के उस भाई द्वारा लाये गये रिश्ते और करके चाल चलन पर भी शंका करने लगती हैं।

समाज में फैली कुप्रथाओं, जाति पाति के बन्धन, मज़हब की दीवारें और आधुनिक होते किसानों द्वारा भूखों मरने के लिए छोड़ दिये
जानवरों की कुछ कहानियां इस संग्रह में है।। इस नजरिये से आँगन की दीवार, चायना बैंक, अतीत होती परम्परा, नंदी के वंशज, मिश्री धोबी फागों में और टूटता तारा उल्लेखनीय कहानियाँ हैं। "आँगन की दीवार" में शब्बीर खान अपने समाज की लड़की मैहर के प्रति आकृष्ट है लेकिन वह शब्बीर के प्रति जरा सी दिलचस्पी नहीं लेती है जबकि उसके पापा को पता लगता है कि शब्बीर उनके परिचित का बेटा है तो वे शब्बीर खान और मैंहर की निकटता बढ़ाने प्रयत्न करते हैं। दरअसल मैहर, पहले से ही रूपेश की ओर आकृष्ट है। रूपेश और मैहर धर्म निरपेक्ष जोड़े के रूप में रहना चाहते हैं। यह प्रसंग अवलोकनीय है-
उसकी यह बात सुनकर मेरे मन में एक प्रश्न उभरा और पूछ बैठा "क्या आप दोनों अपने अपने मजहब के मानते रहेंगे ?"
रूपेश ने उत्तर दिया' जी हाँ मानते ही रहेंगे।'
मैंने पूछा 'फिर आपकी सन्तानें किस मजहब को मानेंगी?"
रूपेश बोला "उसने कहा है वे जो मानें किन्तु इंसानों के बीच भेदभाव पैदा करने और आँगन में दीवार उठाने वाले न हो। (पृष्ठ 38) "चायना बैंक " में चायना के सामान द्वारा भारतीय मार्केट पर किया जा रहा कब्ज़ा विस्तार से आता है, जिसमें किसानों की फसल का भुगतान भी चाइना द्वारा स्थापित बैंकों में कराये जाने की विडम्बना है।
"नंदी के वंशज" कहानी में एक ऐसा किसान है जिसके बूढ़े होते बैलों को उसके बेटों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। जबकि किसान उन्हें बहुत प्रेम करता है। यहाँ तक कि शहर जाने पर वह कूड़े में से खाना ढूँढ़ रहे बैलों को तलाश लेता है। यह बात अलग है कि भूख और अकारण पिटाई से आक्रान्त बैल अपने मालिक बिना पहचाने ही सींगों पर उठाकर पटक देते हैं, तो किसान बेटे पिता को वापिस गाँव ले आते हैं।
"मिश्री धोबी फागों में' एक ऐसे होशियार आशु कवि ने पहलवान मिश्री धोबी की कथा है जो जीते जी फाग गीतों में नायक बन जाता है।
उपरोक्त सारी कहानियों के पात्र और उनके नाम बड़े सोच समझकर रचे गये हैं। अमृता दरअसल बड़ी गुणकारी औषधि गिलोय का भैषज्य रत्नावली में दिया गया नाम है। मिश्री धोबी जैसे पात्र गाँव के मेहनतकश वर्ग में कहीं भी मिल सकते हैं। नंदी के वंशज के नायक राम भरोसे न केवल नाम से बल्कि स्वभाव से आम किसान के रूप में दिख जाते हैं जो अपने पालतू पशुओं से बेतहाशा प्रेम करते हैं। नीलम और विजया जैसी सशक्त महिलाएं लेखक के मानस की उपज हैं जैसी कि लेखक समाज मे वास्तव में देखना चाहते हैं।
'सेफ डिस्टेंसिंग ऐसी कहानी है जो कोरोना के ताजा कहर के दिनों की याद दिलाती है। हालांकि इसमें भी जाति पाति मुद्दा उठाया गया हैं।

शिल्प के मामले में इस संग्रह की सबसे सशक्त कहानी नदी के वंशज हैं , वहीं मिश्री धोबी फागों में, ठसक व टूटता तारा का शिल्प रोचक है। अन्य कहानियों के शिल्प , रोचकता के सृजन तथा प्रस्तुतीकरण में भावुक उतने सफल नहीं रहे हैं। चायना बैंक, अतीत होती. परंपरा, रिश्ता, पति के पाँव, व बेहतर उम्मीद में स्त्री
के शिल्प अपेक्षाकृत कमजोर हैं। इन सब कहानियों में एक से ज्यादा कथानक तथा घटनाओं की बहुलता है।

इन कहानियों का काल वर्तमान काल है और देश हमारे आसपास का हिन्दी भाषी समाज है। इसलिए भाषा शैली, चरित्र और पहनावे-उढावे पाठक को अपने से लगते हैं।
आंचलिक बोली और संवादों की पर्याप्त गुंजायश होते हुए भी लेखक ने सधे हुए तरीके से कहानी के संवाद खड़ी बोली में रचे हैं।

इस संग्रह की सबसे बड़ी उपलब्धि है मशहूर आलोचक के बी एल पाण्डेय द्वारा लिखा गया पुस्तक का ब्लर्ब या आमुख है, जिसमें उन्होंने कुछ कहानियों को अपने आशीर्वचन से नवाजा है। कहानी की भूमिका सुप्रसिद्ध आलोचक श्री बजरंग विहारी तिवारी ने लिखी है जिन्हें यह कहानियां चरित्र और अभिव्यक्ति की दृष्टि से विशिष्ट लगी हैं। यद्यपि आत्मकथ्य में भावुक ने लेखन कला के गुर बताये है तथापि उन्हें इस संग्रह की कहानियों के किन्ही भी बिन्दुओं पर जोड़ पाना सम्भव नहीं है।

संक्षेप में बड़े उपन्यास लिखने में दक्ष रामगोवाल भावुक की कहानियों का यह दूसरा संकलन उनके कथा कौशल की अद्यतन झलक देता है।

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