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दीपक करे पहल रवींद्र परमार

दीपककरे पहल रवींद्रसिंह परमार
रामभरोसे मिश्रादीपक
रविंद्र सिंह परमार का कविता संग्रह 'दीपक करे पहल' पिछले दिनों संदर्भ प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित होकर आया है। यह कवि का पहला कविता संग्रह है । इसमें उनकी विभिन्न कविताएं और खासकर गीत शामिल है। इस संग्रह की भूमिका लिखते हुए सुप्रसिद्ध गीतकार 'विद्या नंदन राजीव' ने लिखा था 'इन गीतों के प्रसंग में हम कह सकते हैं कि सामाजिक सरोकारों से निबद्ध इन गीतों में वर्ग संघर्ष, अभावों में जी रहे जीवन की कठिनाइयों तथा मानव व्यवहार की विसंगतियों को व्यंजित करने की ओर रुझान जैसे प्रसंगों का शुभ संकेत है। हमें विश्वास है कि रवींद्र परमार का यह प्रथम संकलन अपने सार्थक गीतों के माध्यम से, पाठक वर्ग की सकारात्मक प्रतिक्रिया अर्जित करेगा। '
अपने पिता श्री रतन सिंह परमार 'रतन' से विरासत में कविता के संस्कार लिए रवींद्र परमार ने अपने इस संग्रह में हर विषय पर गीत शामिल किए हैं। प्रकृति चित्रण के गीत में वे स्वर और आवाज को शामिल कर एक दृश्य सा उपस्थित करते हुते लिखते हैं-
मांझियोंके गीत की धुन गुनगुनाती चांदनी।
नील आँचल झील में जब झिलमिलाती चांदनी।
छप छपा छप से लहर के स्वर जगाती मांझिनें।
प्यार से पतवार थामें मुस्कुराती मांझिने।।
हर लहर को मुग्ध करती खिलखिलाती चांदनी
(पृष्ठ 34)
एक अन्य कविता घुंघरू बांधकर में कवि लिखते हैं-
छनक छन छन छनक छन छन
छनक छन छन छनक छन छन
बांध घुंघरू चली राधा रिझाने श्याम मनमोहन।(पृष्ठ 57)
पानी की कमी और बदलते पर्यावरण के कारण मच रही त्राहि-त्राहि को देखकर कवि मेघों का आव्हान करता है-
मेघा बरसो रे ओ मेघा बरसो रे ।

रीती गगरी जीभ चिरावैं
कुआ बावड़ी मौ मटकावें।
सूखे खेत तके ऊपर खों
लौटा बाट पखेरू जावें
उड़वे धूरा गांव
मेघा बरसो रे मेघा बरसो रे
कवि ने तय किया है कि वह दबे कुचले लोगों की आवाज को उठाएगा। चाहे उसके पास परिनिष्ठित भाषा हो या आंचलिक, लेकिन असली उद्देश्य है बरसों से दबे कुचले लोगों की बात उठाना। देखिए-
हम तो अपनी बात कहेंगे अपनी भाषा में ।
उगलेगी अंगार कलम सच की प्रत्याशा में ।।
तुम्हें पैरवी करना तम की
बैठे हैं सूरज के हम।
तुम हो गए असुरों के मुखिया वंशज दशरथ अज के हम
अंगद सा विश्वास हमारा अपनी आशा में । (पृष्ठ 81)

गीत लिखना आरंभ करते हुए कवि घोषणा करता है कि मैं इस दुनिया से नफरत मिटा कर, आसपास के वातावरण की व्यर्थ दुश्मनी खत्म कर, सब को दोस्त बनाने के लिए ही नगमे लिखने आ गया हूं -
प्यार के नगमे सुनाने आ गया मैं साथियों ।
दोस्त दुनिया को बनाने आ गया मैं साथियों ।।
क्या मिलेगा बैठकर
सोचिए दिल से भला।
शब्द मीठे बोल कर तू
दीप खुशियों के जला।।
दायरे गम के मिटाने आ गया मैं साथियों।।
कवि आसावधान नहीं है, उसे पता है कि तमाम लोग अपनी पवित्र संसद जैसी संस्थाओं के दाएं बाएं खड़े होकर षड्यंत्र, साजिश और देश विरोध की बातें कर रहे हैं और ऐसे में विपक्ष हो या हुक्मरान सब लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ ही जा रहे हैं। देखिए-
लोकतंत्र नीलाम हो रहा संसद के गलियारों में ।
मारी मारी फिरती जनता गलियों में चौबारों में ।।
वस्त्र नहीं जो आंदोलन थी
खादी वह गुमनाम हुई ।
आजादी की द्योतक थी वह
गली-गली बदनाम हुई।।
आज उसी खादी को पहने अपराधी बाजारों में।
मारी मारी फिरती जनता गलियों में चौबारों में। (पृष्ठ 41)

कवि शब्दों से खेलता भी है तो मन की भावनाओं को बड़े गुण मंथन के बाद कम से कम शब्दों में और जनजाति भाषा में प्रस्तुति करता है-
मन है मन है मेरा मन है।
कभी हवन हैं
कभी तपन हैं
कभी प्रीति की
एक छुअन हैं
और कभी रब की चितवन है।
मन है मन है मेरा मन है...
(पृष्ठ 94)
आज गांव बदल गया है, अब गांव का वातावरण, वहां की स्थितियां और वहां का भूगोल पहले जैसा नहीं है । कवि ( प्रष्ठ 100 ) पर कविता ' गांव बदल गए' में लिखता है -
बरगद खड़ा समय सरिता में
सालों साल गए।
गांव बदल गए।।
कम है लोग पेड़ थे ज्यादा
मुस्काते थे लोग।
चौपालों पर खुशियां नाचे
बनता सुखद सुयोग।।
तूफां-झंझा के संकट भी,
यों ही निकल गए।
गांव बदल गए
कवि नायक-नायिका, बड़े लोग और प्रकृति के वर्णन के बीच एक आम आदमी की बात भी करता है। सामान्य ठेले वाले रामकिशन पर भी कवि ने गीत लिखा है ।
पौंछ रहा माथे की बूंदे
ठेलेवाला रामकिशन
रिमझिम बारिश की बूंदों में
अंधड़ आंधी चलती हो।
बरसे आग भले दुपहर में
लू से देह दहकती हो
डेढ़ पसुरिया सीने के दम
जोर लगाता रामकिशन( पृष्ठ 106) इन कविताओं को हम कवि के पहले कविता संग्रह के नजरिये में देखें तो कह सकते हैं कि कवि ने अपनी हर क्षेत्र की अलग-अलग आयामों की कविताएं व गीत इस संग्रह में सम्मिलित कर अपनी रचना कर्म की बानगी प्रस्तुत की है। कवि आसपास के बिगड़ते राजनीतिक वातावरण पर भी चिंता प्रकट करता है तो प्रकृति की मनोरमता की वह स्मृति दिला कर मन को आनंद भी कर देता है। जिन गांवों में पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा जा रहा और जहां पर्यावरण बिगड़ रहा है, वहां की कविता बारे में कविता लिखता हुआ कभी अपनी जरूरी चिंताओं से पाठक को अवगत भी कराता है। एक कवि के भीतरी आत्मविश्वास, आसपास के आंचलिक वातावरण और मन की अनेक तरह की भावनाओं को स्वर देती यह कविताएं कवि के पहले कविता संग्रह के रूप में आश्वस्त करती हैं कि उनसे आगे अच्छी-अच्छी कविताएं लिखी जाएंगी।
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पुस्तक - दीपक करे पहल
कवि-रवींद्र सिंह परमार
प्रकाशक- संदर्भ प्रकाशन भोपाल
पृष्ठ 120
मूल्य 250

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