भाग 24 जीवन
सूत्र 26 किसी भी परिणाम हेतु निडरता से तैयार
रहें
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।(2/38)।
इसका अर्थ है-जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान समझकर उसके
बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।
भगवान कृष्ण की
इस अमृतवाणी से हम जीवन पथ की किसी भी स्थिति को समान भाव से स्वीकार करने को एक सूत्र
के रूप में लेते हैं।वास्तव में हमारे जीवन में निर्भीकता और साहस आने के लिए यह बहुत
आवश्यक है कि हम कर्म पथ में प्राप्त होने वाले सभी परिणामों में सम रहें।भावी परिणाम
को लेकर चिंतित रहने,इसके आशा के अनुकूल नहीं आने की आशंका,स्वयं का कार्य सिद्ध होने
में अनावश्यक व्यवधान या फिर अपने सीधे सहज जीवन पथ को कठिनाइयों से बचाने की मनोवृति
के कारण हम जीवन में अनेक अवसरों पर भय ग्रस्त हो जाते हैं।इसी कारण हम किसी अनावश्यक
दबाव के आगे भी झुक जाते हैं।
यह सच है कि सत्य
की राह पर चलने वाले को जीवन में अनेक कठिनाइयों और कष्टों का सामना करना पड़ता है।कभी-कभी
उसे अपने कार्य को अकेले ही पूरा करना होता है।ऐसी स्थिति में उसका मनोबल टूटने सा
लगता है।वहीं अगर वह अपनी सत्यनिष्ठा को न छोड़े तो एक दिन जीवन की सारी परिस्थितियां
जो प्रतिकूल हो गई थीं, उसके अनुकूल होती जाएंगी।किसी अनुचित बात का उचित रीति से प्रतिकार
करने का साहस न होने के कारण मनुष्य कई बार चुप रह जाता है। उदाहरण के लिए किसी कार्यालय
में उच्च अधिकारी ने कोई ऐसा आदेश दिया जिसे मातहत कर्मचारी सही नहीं होने के कारण
उचित नहीं समझता, लेकिन इस भय में कि अधिकारी से बिगाड़ हो जाएगा, वह अनुचित कार्य
में भी साथ देने को तैयार हो जाता है।यह उसका आज्ञापालन नहीं है बल्कि कहीं न कहीं
अपने कर्तव्य पालन के प्रति कोताही है,क्योंकि उसने सत्य निष्ठा की शपथ लेकर ही नौकरी
शुरू की हुई होती है।स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता(अध्याय 2, श्लोक 3)
में कहा है:-
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।
अगर इसका सामयिक अर्थ लेकर चलें तो हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग
कर हमें कर्म पथ पर युद्ध जैसी विषम परिस्थिति का सामना करने के लिए हर क्षण तत्पर
रहना होगा।
(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत
के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन
पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ
में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध
अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक
वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण
की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख
उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम
है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने
का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
डॉ. योगेंद्र
कुमार पांडेय