गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 21 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 21

19: जीवन सूत्र 21: वीरों के सामने ही आती हैं जीवन की चुनौतियां

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-

यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।

सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।(2/32।

इसका अर्थ है-हे पार्थ ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वाररूप इस प्रकारके युद्धको भाग्यवान क्षत्रियलोग ही पाते हैं।

इस श्लोक से हम जीवन में अनायास प्राप्त युद्ध को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव में प्रत्यक्ष युद्ध भूमि तो नहीं लेकिन जीवन में युद्ध जैसी स्थितियां अनेक अवसरों पर निर्मित होती हैं।यह स्थितियां हमारे सामने आने वाली कठिनाइयों और अड़चनों के रूप में हो सकती हैं।

प्रायःहमारी असुविधा वाला और हमारे पूर्व अनुमान के विपरीत अगर कोई नया दायित्व हमें मिलता है या कोई अनिश्चित प्रकृति वाला कार्य हमें मिलता है तो हमारा मन इस नई चुनौती को एक झंझट के रूप में लेता है। यह कुछ वैसी ही स्थिति है कि आप वाहन से यात्रा कर रहे हों,किसी राजमार्ग पर और अनायास किसी एक स्थान पर पहुंचने पर आपको एक बड़ा पेड़ गिरा हुआ मिले ।तो इस तरह से आती हैं, जीवन में अड़चनें। हम इसके लिए पहले से तैयार नहीं होते हैं इसलिए हम खीझ जाते हैं कि यह क्या नयी मुसीबत आ गई।

एक उत्साही व्यक्ति यहां पर भी सूझबूझ से काम लेता है और इसे अपने लिए परीक्षा के एक अवसर के रूप में देखता है। अगर वाहन में वह अकेला भी हो तो भी इससे पार पाने का कोई न कोई रास्ता अपनी सोच से ढूंढ ही लेता है।वहीं छोटी सी परेशानी से अपने सुरक्षित क्षेत्र से बाहर नहीं आने की मानसिकता वाला सामान्य मनुष्य न जाने कितने घंटे इस अवरोध को पार करने के बारे में सोचने में ही लगा दे। इसलिए हम कह सकते हैं कि वीर व्यक्ति चुनौतियों से नहीं घबराते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो वीरों के सामने ही जीवन की चुनौतियां आती हैं।

अब यहां प्रश्न यह भी उपस्थित होता है कि क्या जीवन पथ पर स्वत: ही आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया जाए या ऐसी चुनौतियों को भी ढूंढकर स्वीकार किया जाए जो हमारे आसपास बिखरी होती हैं। वास्तव में कर्तव्य पथ पर जीवन की चुनौतियों का सम्मुख आना एक गौरव है।नियमित कर्तव्यपथ से अलग समाज के लोगों के दुख दर्द, पीड़ा और तकलीफों को दूर करने के लिए स्वयं आगे बढ़कर चुनौतियों को ढूंढना और उसे लोक कल्याण का माध्यम बना देना मानव धर्म है। ऐसा कोई भी कार्य हमारे आत्म कल्याण,विचार शुद्धिकरण और आत्म तत्व को दिव्यता तथा ऊंचाई प्रदान करने के लिए है।

ऐ मुश्किल,

तू बस रोक सकती है,

मार्ग मेरा थोड़ी देर,

लेकिन मेरे इरादे नहीं।

चुनौतियां कड़ी परीक्षा हैं,

मानव का धर्म ,

कर्तव्य यह जीवन पथ का,

इसका सामना करने

खड़े होने में ही विजय है

और इससे मुख मोड़ना है पलायन,

इसीलिए हर वह व्यक्ति योद्धा है जो

जीवन पथ पर खड़ा है और

डटा है चुनौतियों के सामने।



( इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके अर्थों को केवल एक प्रेरणा के रूप में लिया गया है।लेखक में भगवान श्रीकृष्ण की वाणी की व्याख्या या विवेचना की सामर्थ्य नहीं है।उन्हें आज के संदर्भों से जोड़ने व स्वयं के लिए जीवन सूत्र ढूंढने व उनसे सीखने का एक प्रयत्न मात्र है।वही सुधि पाठकों के समक्ष भी प्रस्तुत है।)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय