भूतों का डेरा - 9 Rahul Kumar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भूतों का डेरा - 9


"ऐसी जल्दी क्या है?" सिपाही ने कहा , "मुझे कुछ साल तो और जिंदा रहने दो अभी तो मुझे अपने बच्चों को पालना पोसना है ,अपने बेटों कि ब्याह शादी करनी है फिर अपने पोतो को देखना और कुछ दिन उनके साथ रहना है उसके बाद तुम मुझे लिवा ले जा सकती हो पर अभी तो मैं नहीं जा सकता।

"नहीं , दादा ,अब तो में तुम्हें कुछ साल तो क्या , कुछ समय भी नहीं छोड़ सकती

सिपाही ने मौत को बहुत मनाया पर वह नहीं मानी वह चुप हो गया लेकिन सिपाही हार कहाँ मानने वाला था उसकी हालत इतनी खराब थी कि वह अपना हाथ तक हिला नहीं पा रहा था फिर किसी तरह उसने वह अद्भुत झोली अपने ताकिए के नीचे से निकाल ली और फिर उसे हिलाते हुए वह चिल्लाया ,"चल अंदर !"

उसके बोलते ही मौत उसमे आ गई और सिपाही अच्छा होने लगा उसने झोली को कसकर बंद कर दिया उसकी तबीयत बिल्कुल अच्छी हो गयी यहां तक कि उसे भूख भी लग आयि वह बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया उसने मौत से कहा , "हूं, तू मेरी प्रार्थना सुनने को तैयार नहीं थी खबरदार जो अब किसी सिपाही से टक्कर लेने की हिम्मत की।"

"अब तुम मेरे साथ क्या करने बाले हो ?" झोली के अंदर से आवाज आयी । सिपाही ने जवाब दिया ,"मै तुझे कीचड़ भरे दलदल में डुबाने वाला हूं और तू जब तक जिंदा रहेगी , वहां से कभी भी नहीं निकाल पायेगी।"

मुझे छोड़ दो दादा मै तुम्हें तीस साल कि जिंदगी और दे देती हूं।"

"नहीं नहीं ,अब मै तुम्हें बिल्कुल नहीं छोडूंगा ।"

"मुझे छोड़ दो दादा,मौत गिडगीडायी । " मुझे छोड़ दोगे तो में तुम्हें तीस साल और जिंदा रहने दूंगी।"

"अच्छा ,"सिपाही ने कहा , "मै तुम्हें एक शर्त पर छोड़ सकता हूं तुम वादा करों की अगले तीस साल तक किसी कि भी जान नहीं लेगी ।

"ऐसा वादा नहीं कर सकती ,"मौत ने कहा "किसी कि भी जान नहीं लूंगी तो फिर मै जिंदा कैसे रहूंगी ।"

"तीस बरस तक जड़े ,पेड़ की ठूंठ और पत्थर खाकर जिंदा रहना

अपनी जान बचाने का कोई रास्ता न देखकर मौत ने कहा ,"अच्छा जैसी तुम्हारी मर्जी अगले तीस साल तक में किसी की जान नहीं लूंगी और जड़े, पेड़ की ठूंठ और जंगलों के पत्थर खाकर जिंदा रहूंगी तुम मुझे छोड़ दो।"
सिपाही मौत को गांव के बाहर ले गया और वहां पहुंचकर उसने झोली का मुंह खोल दिया ।

मौत अपनी दरांती लेकर जंगलों मै भाग गयी। , जहां वज जड़ों पेड़ों के ठूंठ और पत्थरों की तलाश करने लगी ताकि उन्हें खाकर जिंदा रह सके अब और चारा ही क्या था ।
वो वहां से जितना जल्दी हो सके निकल गयी और उसने पीछे मूड कर भी नहीं देखा


यहां इल्या का सफर जारी था वहां से इल्या शहर की ओर चल पड़ा ।

उसने वह सीधी सड़क चुनी

,जो शहर के पास से गुजरती थी जब वह चेनीगोवा शहर के पास पहुंचा तो उसे सुनाई दिया कि शहर की चहारदीवारी के इर्द गिर्द शोर मचा हुआ है

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