The Author Rahul Kumar फॉलो Current Read भूतों का डेरा - 4 By Rahul Kumar हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books नफ़रत-ए-इश्क - 6 अग्निहोत्री इंडस्ट्रीजआसमान को छू ती हुई एक बड़ी सी इमारत के... My Wife is Student ? - 23 स्वाति क्लास में आकर जल्दी से हिमांशु सर के नोट्स लिखने लगती... मोमल : डायरी की गहराई - 36 पिछले भाग में हम ने देखा की फीलिक्स ने वो सारी बातें सुन ली... यादों की अशर्फियाँ - 20 - राज सर का डिजिटल टीचिंग राज सर का डिजिटल टीचिंग सामाजिक विज्ञान से बोरिंग सब्जे... My Passionate Hubby - 4 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –Kayna... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Rahul Kumar द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 14 शेयर करे भूतों का डेरा - 4 (2) 4k 8k " सिपाही बोला लो फौरन इस अखरोट को तोड़ कर दिखाओ सरदार ने अखरोट समझ कर गोली मुंह में डाल ली वह उसे चबाता रहा चबाता रहा यहां तक कि गोली चपटी हो गयी मगर वह टूटी नहीं उधर सिपाही एक के बाद दूसरा ओर दूसरे के बाद तीसरा अखरोट मुंह में डाल कर कड़ा कड़ तोड़ता जा रहा था। अब सभी भूतों के अंदर मानो एक डर सा छा गया सब भूत निगाहें नीची किए हुए खड़े थे और बड़ी परेशानी और घबराहट के साथ सिपाही की तरफ देख रहे थे। कुछ देर संत रहने के बाद सिपाही बोला "मैने सुना है कि तुम लोग खूब अच्छे जादू के खेल दिखाते हो," , "तुम छोटे से बड़े ओर बड़े से छोटे बन जाते हो ओर बारीक से बारीक सुराख में से निकाल जाते हो।" "हां हां ,यह हम कर सकते है " सारे भूत चिल्लाये ।"तो आओ जरा मेरे इस झोले में तो सब के सब घुसकर दिखाओ!"सिपाही के इतना कहते ही सारे भूत प्रेत झोले पर टूट पड़े और जल्दी जल्दी एक दूसरे को धक्का देते हुए झोले में घुस गये । एक मिनट के अंदर पूरा मकान खाली हो गया अब सारे भूत झोले में बंद थे सिपाही ने झोले का मुंह बंद करके उसको फीते से कसकर बांध दिया । "अब में चेन से सो सकता हूं ।" उसने कहा।वह सिपाहियों के ढंग से अपने बड़े कोट को आधा बिछाकर , आधा ओढ़कर लेट गया और लेटते ही उसे नींद आ गई । अगले दिन व्यापारी ने अपने नौकरों से कहा, "जाओ, और जाके देखो की वह सिपाही जिन्दा भी है या मर गया अगर मर गया हो तो उसकी लाश उठा लाना "और कहीं जाकर दबा आना , व्यापारी मन ही मन ये सोच रहा था कि रात तो वो उन भूतों के हाथो से जरूर मारा गया होगा, पता नहीं कहा कहा से आ जाते है ये व्यापारी ये सब सोच ही रहा था और दूसरी तरफ जब वह नौकर हवेली में आये तो अपनी आँखों के सामने ये सब देख कर दंग रह गए उन्होंने देखा कि सिपाही अपने सिगार के कश लगाता हुआ कमरों में टहल रहा है ये सब देख कर उन नौकर के मन मे सिपाही के प्रती काफी सम्मान आ गया और जाकर सिपाही से कहा "नमस्कार सिपाही जी हमे तो उम्मीद ही नही थी कि आप जिंदा भी मिलोगे |हमे तो सहाब जी ने आपका मरा शरीर उठाने के लिए यह भेजा था और हम तो साथ में बक्शा भी लाये थे आपका मरा शरीर उठाने के लिए सिपाही ने हंसकर जवाब दिया, "मुझे मारना बच्चों का खेल नहीं है अब आ ही गए हों तो मेरी थोड़ी मदत करो जी सिपाहीजी बोलिए नौकरो ने कहा ठीक है लो इस झोले को उठा कर किसी लोहार की दुकान तक ले चलो "सिपाही ने पूछा लोहारखाना यहां से जादा दूर है क्या ?To be continue...क्या लगता है आपको क्या होगा आगे comment करके जरूर बताना और आगे जानने के लिए पढ़ते रहे भूतों का डेरा अगर आपको स्टोरी अच्छी लग रही होतो Like,Comment, Shere and follow जरूर करे Thank you ‹ पिछला प्रकरणभूतों का डेरा - 3 › अगला प्रकरण भूतों का डेरा - 5 Download Our App