भूतों का डेरा - 10 Rahul Kumar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भूतों का डेरा - 10

बात यह तक थी कि हजारों लुटेरों ने शहर को घेर रखा था उसके घोड़ों के पैरों से जो धूल उठ रही थी और उनके नथुनों में जो भाप निकाल रही थी, उसने धरती मानो एक स्याही के पर्दे से ढ़क दिया था और आसमान में चमकता हुआ सूरज तक भी आंखों में ओझल हो गया था लुटेरों कि फोज की पंक्तियां इतनी घनी थी कि एक भुरा खरगोश भी उनके बीच से नहीं निकाल सकता था और न बाज उनके ऊपर से उड़कर जा सकता था शहर के अंदर से रोने पर कराहने की आवाजे आ रही थी और मौत के घंटे बज रहे थे शहर के सभी लोग पत्थर के बने एक बड़े चर्च में इकट्ठे हो गये।

थे और वहां छाती पीट पीट कर रो रहे थे , भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और मारने की तैयारी कर रहे थे उनकी निराशा कारण यह था कि कली घाटी के तीनों सरदारों ने घेर रखा था और उनमें से हर एक के पास चालीस चालीस हजार फौज थी ।

यह देखकर इल्या के बदन में मानो आग सी लग गयी।

लगाम खींचकर उसने घोड़े को रोका काढ़े के हरे पेड़ को जड़ समेत जमीन से उखाड़ लिया और उसे चोटी से पकड़कर लुटेरों पर टूट पड़ा । वह अपने दुश्मनों को काढ़े के पेड़ से मार मारकर नीचे गिराने और उन्हें अपने घोड़े के पैरों के नीचे कुचलते लगा । उसने अपना पेड़ इधर घुमाया की रास्ता साफ़ हो गया , उधर घुमाया तो वहां भी गली बन गयी। इस

तरह लुटेरों को मारता गिरता हुआ इल्या आर्खिर उन तीनों सरदारों के पास पहुंच गया उसने तीनों की लाल जुल्फे पकड़कर उनसे कहा ," सुनो , ओ सरदारों ! बोलो, में तुम्हे कैदी बनाऊ या तुम्हारे सिर काट डालू ?

कैदियों के साथ माथा खपाने की मुझे फुर्सत नहीं है में अपने घर पर नहीं बैठा हूं , बल्कि सफर पर जा रहा हूं । फिर मेरे थैले में इतनी रोटी भी नहीं है कि तुम जैसे मुफ्तखोरों को खिलाऊं लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि मेरे जैसा बहादुर इल्या तुम जैसे कली घाटी के लुटेरों के सरदारों के सिर काटकर अपने हाथ गंदे करू इसलिए जाओ अपनी फौज लेकर चले जाओ और हमारे सारे दुश्मनों में यह खबर फैला दो की मेरी मातृभूमि भारत अभी वीरों से खाली नहीं है वह बहादुरों की भूमि है और उसके दुश्मन यह बात अच्छी तरह समझ लें। "

यह कहकर इल्या शहर में दाखिल हो गया । वह पत्थर के उस बड़े चर्च के अंदर गया , जहां शहर के लोग छाती पीट पीटकर रो रहे थे और मरने के पहले एक दूसरे से गले मिलकर विदा ले रहे थे ।

" चेनीर्गोव निवासियों, नमस्कार !" इल्या ने कहा " यह रोना और गले मिलना किसलिए हो रहा है और अंतिम नमस्कार क्यों किया जा रहा है?"

"रोने के सिवा हम और कर ही क्या सकते हैं , जब तीन सरदारों ने चेनिर्गोव को घेर रखा है और उनमें से हरेक चालीस चालीस हजार फौज लेकर आया है ? हमारे सिर पर मौत नाच रही है ।" वे रोते हुए बोले ।



To be continue.......